पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४३

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स्थिरीकार ५३५५ स्थूलचाप शाल्मलि। स्थिरीकार--सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्थिरीकरण' (को॰] । सामान्य । साधारण (को०)। ६ आलसी । काहिल । सुस्त (को०)। स्थिरीभाव-सज्ञा पुं० [स०] अचलता (को०] । १० अवास्तविक । भौतिक । जैसे,—स्थूल जगत् । स्थुरी-सशा पुं० [स० स्थुरिन्] दे॰ 'स्थूरिन्' (को०] । स्थूल'--सज्ञा पुं० १ वह पदार्थ जिसका साधारणतया इद्रियो द्वारा स्थुल-सञ्ज्ञा पुं॰ [म०] एक प्रकार का लबा तबू । पट्टवास । ग्रहण हो सके। वह जो स्पर्श, घ्राण, दृष्टि आदि की सहा- यता से जाना जा सके । गोचर पिंड । उ०--जो स्थूल होने स्थूण-सबा पु० [स०] १ महाभारत के अनुसार विश्वामित्र के एक पुत्र के प्रथम देखने मे आकर फिर न देख पडे, उसको हम विनाश का नाम। २ एक यक्ष का नाम (को०) । ३ खभा । स्तभ । कहते है ।-दयानद (शब्द०) । २ विष्णु। ३ समूह । राशि । स्थाणु (को०)। ढेर। ४ कटहल । ५ प्रियगु। कॅगनी। ६ एक प्रकार का | स्थूणकर्ण-सज्ञा पु० [स०] एक ऋपि । कदब । ७ शिव के एक गण का नाम। ८ अन्नमय कोश । ६ | स्थूणा-या स्त्री॰ [स०] १ घर का खभा । थूनी। २ पेड का तना वैद्यक के अनुसार शरीर की सातवी त्वचा। १० तूद या तूत या लूंठ। ३ लोहे का पुतला। ४ निहाई । थूमि। ५ एक का वृक्ष । ११ ईख । ऊख । १२ पहाड की चोटी। कूट । शृग प्रकार का रोग। (को०) । १३ दधि या मट्ठा (को०) । १४ तबू । शिविर (को॰) । स्थूणाकर्ण- --सज्ञा पु० [स०] १ एक प्रकार का व्यूह । २ महाभारत स्थूलकगु-सज्ञा पु० [स० स्थूलकङ्ग,] वरक धान्य । चेना। मे वर्णित एक यक्ष का नाम । ३ हरिवश पुराण के अनुसार एक स्थूलकटक-सञ्ज्ञा पु० [स० स्थूलकण्टक] बबूल की जाति का एक प्रकार रोगग्रह का नाम । ४ एक प्रकार का वारण। ५ रुद्र का एक का पेड जिसे 'जाल बङ्घरक' या 'आरी' भी कहते है । रूप (को०)। स्थूलकटकिका-सज्ञा स्त्री० [स० स्थूलकण्ट किका] सेमल का वृक्ष । स्थूणाखनन न्याय-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक दृष्टातवाक्य या न्याय । जैसे खभा गाडने मे उसे दृढ करने के लिये युक्ति की जाती है, स्थूलकटफल-सज्ञा पु० [स० स्थूलकण्टफल] पनस । कटहल । अपने पक्षसमर्थन मे वैसा करना। विशेष दे० 'न्याय'-४(१०६)। स्थूलकटा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्थूलकण्टा] वडी कटाई । बनभटा । वृहती। स्थूणानिखनन न्याय-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्थूणाखनन न्याय' । स्थूलकद'-सधा पुं० [स० स्थूलकन्द] १ लाल लहसुन । २ जमीकद । स्थूणागर्त-सज्ञा पुं० [सं०] खभा गाडने के लिये खोदा हुआ गर्त या सूरन । अोल । ३ जगली सूरन । बनसोल । ४ हाथीकद । ५ मानकद । ६ मडपारोह । मुखालु । स्थूणापक्ष-महा पुं० [सं०] सेना का एक प्रकार का व्यूह । मानकद । स्थूलकद'--वि० जिसके कद बडे बडे हो । वडे कदवाला (को०] । स्थूणाभार-सज्ञा पुं० [स०] खभा या धरन आदि का वजन (को॰] । स्थूलकदक-सज्ञा पुं० [स० स्थूलकन्दक] मानकद । कच्चू (को०] । स्थूणाराज-सज्ञा पुं॰ [स०] प्रधान खभा। मुख्य स्तभ (को०] । स्थूलक'-सज्ञा पुं० [सं०] एक प्रकार का तृण । उलप । उलूक । स्थूणाविरोहण-मज्ञा पुं० [स०] खभे से अकुर फूटना (को०] । स्थूलक-वि० स्थूल स्थूणीय--वि० [स०] थूमि सबधी । स्तभ सबधी (को०] । स्थूलकरणा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] मैंगरैला। स्थूम-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ दीप्ति । प्रकाश । २ चद्रमा । स्थूलकर्ण-सञ्ज्ञा पु० [स०] महाभारत मे वर्णित एक प्राचीन ऋषि का स्थूर-सञ्ज्ञा पु० [स०] १ मनुष्य । आदमी । २ साँड । वृक्ष । नाम। स्थूरिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] वांझ गाय का नथना । घूरिका । खुरिका । स्थूलका-सज्ञा स्त्री॰ [स०] आंबा हलदी। स्थूरी-सज्ञा पु० [स० स्थूरिन्] बोझ लादनेवाला पशु । लद्द घोडा स्थूलकाय--वि० [सं०] मोटे शरीरवाला। या वैल। स्थूलकाष्ठ-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] अग्नि मे प्रज्वलित वृक्ष का तना या विशाल स्थूरीपृष्ठ-सज्ञा पु० [स०] वह अश्व जिसपर सवारी न की गई कुदा (को०] । हो [को०)। स्थूलकुमुद-सज्ञा पुं० [स०] सफेद कनेर । स्थूल-वि० [स०] १ जिसके अग फूले हुए या भारी हो। मोटा। स्थूलकेश--सञ्ज्ञा पु० [सं०] महाभारतोक्त एक प्राचीन ऋषि का नाम । पीन । जैसे,--स्थूल देह । उ०--देप्यो भरत तरुण अति सुदर। स्थूलखेड, स्थूलक्ष्वेड--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] वाण । तीर । स्थूल शरीर रहित सब द्वदर ।--सूर (शब्द॰) । २ जो यथेष्ट स्थूलग्रथि-सज्ञा पुं० [स० स्थूलग्रन्थि] कुलजन । महामदा । स्पष्ट हो। जिसकी विशेष व्याख्या करने की आवश्यकता न हो। स्थूलग्रीव-वि० [सं०] जिसकी ग्रीवा स्थूल या मोटी हो (को०] । सहज मे दिखाई देने या समझ मे पाने योग्य । सूक्ष्म का उलटा । जैसे,-स्थूल सिद्धात, स्थूल खडन । ३ मूर्ख । अज्ञ । जड । ४ स्थूलचचु-सक्षा पुं० [म० स्थूलचञ्च] महाचचु नामक साग । वडा चें। जिसका तल सम न हो। ५ विस्तृत । वडा (को०)। ६ पुष्ट । स्थूलचपक-सज्ञा पुं० [स० स्थूलचम्पक सफेद चपा। मजबूत । शक्तिशाली (को०)। ७ बेडौल । भद्दा (को०) ८, स्थूलचाप--सञ्ज्ञा पुं० [स०] रूई धुनने की धुनकी । हिं० श० ११-४ गड्ढा [को०] । मोटा (को०)।