पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४८

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स्निग्धदृष्टि स्नेहपान स्निग्धदृष्टि--वि० [स०] १ स्थिर निगाहो से देखनेवाला। २ मृदु स्नुहा--सज्ञा स्त्री॰ [सं०] स्नही । यूहड । या तरल दृष्टिवाला । ३ जिसकी दृष्टि स्नेहयुक्त हो। स्नुहि, स्नुही-सज्ञा स्त्री० [म०] दे० 'म्नुहा' । स्निग्धनिर्मल-सज्ञा पु० [म०] काँसा नामक धातु । स्नुहीक्षीर-मन्ना पु० [म०] थूहड का दूध। स्निग्धपव-सज्ञा पु० [सं०] १ घृतकरज। धीरज । २ गुच्छकरज। स्नुहीवीज-सझा पुं० [सं०] थूहट का बीज । ३ भगवतवल्ली। पावर्तकी लता। ४ मज्जर या माजुर नाम स्नुह्य-सञ्ज्ञा पुं० [म०] उत्पल । कमल । की घास । स्नेय-वि० [स०] १ स्नान करने के योग्य । नहाने लायक । २ जो स्निग्धपत्रक-सज्ञा पुं० [सं०] दे० 'स्निग्धपत्न' (को०] । नहाने को हो। स्निग्धपत्रा--सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ वेर । बदरी। २ पालक का साग । स्नेह-सज्ञा पुं० [स०] १ प्रेम । प्रणय । प्यार। मुहव्वत । २ ३ लोनी का साग । ४ गभारी । काश्मरी । खुमेर । चिकना पदार्थ । चिकनाहटवाली चीज। जैने, घी, तेल, स्निग्धपत्री--सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'स्निग्धपत्रा' । चरबी आदि, विशेपत तेल। ३ कोमलता। ४ एक प्रकार का स्निग्धपर्णी-मशा स्त्री॰ [१०] १ पृश्निपर्णी । पिठवन । २ मूर्वा । राग जो हनुमत के मत मे हिंडोल राग का पुन है। ५ सरमो। मरोडफली। ६ सिर के अदर का गूदा। 'भेजा। ७ दूध पर की माडी। स्निग्धपिडीतक-मज्ञा पुं॰ [म० स्निन्धपिण्डीतक] एक प्रकार का मलाई। ८ आर्द्रता । नमी (को०)। ६ शरीर के भीतर का मनफल का वृक्ष । कोई प्रवाही द्रव्य । जैसे, वीर्य (को०) । स्निग्धफल-सज्ञा पु० [स०] गुच्छकरज । स्नेहक-वि० [स०] १ स्नेह या प्रेम करनेवाला। स्नेही । २ कृपायुक्त। स्निग्धफला-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ फूट नामक फल । फूट । २ नकुल- कृपालु (को०)। कद । नाकुली। स्नेहकर-सज्ञा पु० [स०] अश्वकर्ण या शाल नामक वृक्ष। स्निग्धवीज--सज्ञा पु० [स०] यशवगोल । ईसपगोल । स्नेहकर्ता-वि० [स० स्नेहकतृ ] प्यार करनेवाला। स्निग्धमज्जक-सज्ञा पु० [स०] वादाम । स्नेहकुभ [-सज्ञा पुं॰ [ स० स्नेहकुम्भ ] तेल का घडा। स्निग्ध मुद्ग--सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार की मूंग । स्नेहकेसरी -मज्ञा पुं॰ [ स० स्नेहकेमरिन् ] रेडी । एरड । स्निग्धराजि--सशा पुं० [म०] एक प्रकार का सांप जिसकी उत्पत्ति, स्नेहगर्भ-सज्ञा पुं० [सं०] तिल । सुश्रुत के अनुसार, काले सॉफ् और राजमती जाति की सांपिन स्नेहगुरिणत-वि० [स०] स्नेहयुक्त । प्रेमाविष्ट (को०] । से होती है। स्नेहगुरु--वि० [सं०] प्रेम या स्नेह के कारण जो गुरुता को प्राप्त हो। स्निग्धवर्ण--वि० [स०] जिसका वर्ण या काति स्निग्ध हो किो०] । प्रेम से भरा हुआ। स्निग्धा ---सचा स्त्री० [सं०] १ मेदा नामक अष्टवर्गीय प्रोपधि । २ स्नेहघट–सशा पुं० [स०] दे० 'स्नेहकुभ' । मज्जा। अस्थिसार । ३ विककत । वइची । स्नेहघ्नी -सभा सी० [सं०] एक पौधा [को०। स्निग्धा'--वि० सी० जिसमे स्नेह हो । स्नेहयुक्त । स्नेहिल । स्नेहच्छेद-सज्ञा पु० [स०] परस्पर स्नेह न रहना। स्नीहा-सज्ञा स्त्री० [स०] नाक का मल । पोटा (को०] । स्नेहद्विट-वि० [सं० स्नेहद्विप् ] जिसे स्नेह नापसद हो [को०] । स्नु'-सशा पु० [सं०] १ पहाड का ऊपरी समतल भूखड । २ कूट। स्नेहन् -सा पु० [म०] १ मिन्न । दोस्त। सखा । २ चद्रमा । सुधाशु । शृग। चोटी [को०)। ३ एक प्रकार का रोग (को०] । स्नु'-सञ्ज्ञा स्त्री० स्नायु । पेशी (को॰) । स्नेहन'-सज्ञा पु० [१०] १ चिकनाहट उत्पन्न करना। चिकनाई स्नुक-पज्ञा पुं० [स०] स्नुही । यूहड । लाना। २ शरीर मे तेल लगाना । कफ। श्लेष्मा। स्नुकच्छद-सशा पु० [स०] क्षीरकचुकी, क्षीरी या क्षीरसागर बलगम । ४ मक्खन । नवनीत । ५ उद्वर्तन द्रव्य । उबटन नामक वृक्ष। (को०) । प्रेम ६ प्रेम या स्नेहयुक्त होना । प्रेमाविष्ट होन। (को०)। स्नुकच्छदोपम-सज्ञा पुं॰ [स०] वाराही कद । गेठी। ७ शिव (को०)। स्नुग्दल-सशा पुं॰ [स०] स्नुही । थूहड । स्नेहन' १ शरीर मे सेल लगानेवाला। २ चिकनाई या स्निग्धता स्तुघ्निका-सञ्ज्ञा सी० [सं०] खनिज क्षार। सर्जिका क्षार [को०] । लानेवाला। ३ विनाशक । विध्वसक [को०] । स्नुत-वि० [सं०] क्षरित । रिसता हुआ [को०)। स्नेहनीय-वि० [स०] स्नेह करने या नेह लगाने योग्य [को०) । स्नुषा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] १ पुत्रवधू । लडके की स्त्री। २ स्नुही । स्नेहपक्व-वि० [स०] तेल मे पकाया हुआ (को०] । थूहड। स्नेहपान-पद्या पु० [म०] १ वह जिसके साय प्रेम किया जाय । यौ०-स्नुपाग = जिसका पुत्रवधू से अवैध सवध हो । प्रेमपान । प्यारा । प्रिय । २ तेलपान । ३