पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/४९

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हुग्रा किो०] । स्नेहपान ५३६१ स्नेही नेहपान-सज्ञा पु० [म०] वैद्यक के अनुसार एक प्रकार की क्रिया रोगी के शरीर मे प्रविष्ट किया जाता है। प्राय अजीर्ण, जिसमे कुछ विशिष्ट रोगो मे तेल, घी, चरवी आदि पीते है । उन्माद, शोक, मूळ, अरुचि, एवास, कफ और क्षय आदि इससे अग्नि दीप्त होती है, कोठा साफ होता है और शरीर के लिये यह वस्ति उपयुक्त कही गई है । इसका व्यवहार कोमल तथा हलका होता है। प्राय वायु का प्रकोप शात करने और कोप्ठशुद्धि के लिये किया जाता है। विशेप-हमारे यहाँ स्नेह चार प्रकार के माने गए है-तेल, घी, वसा पौर मज्जा । खाली तेल पीने को साधारण पान कहते स्नेहविद्ध -सका पुं० [स०] देवदारु वृक्ष । है । यदि तेल और घी मिलाकर पीया जाय तो उसे यमक, इन स्नेहविमदित--वि० [सं०] जिसकी देह मे तेल मला गया हो [को०] । दोनो के साथ यदि वसा भी मिला दी जाय तो उसे त्रिवृत, स्नेहवृक्ष--समा पु० [ स०] देवदारु । और यदि चारो साथ मिलाकर पीए जायें तो उसे महास्नेह स्नेहव्यक्ति--सज्ञा स्त्री० [म०] अपना प्रेम व्यक्त करना [को०] । कहते हैं। स्नेहपिडीतक-सञ्चा पुं० [स० स्नेहपिण्डीतक ] मैनफल । स्नेहसभाप-सहा पु० [स० स्नेहसम्भाप] स्नेहालाप (को॰] । स्नेहपूर-सञ्ज्ञा पु० [स०] तिल । स्नेहसस्कृत-वि० [स०] स्नेह द्वारा निर्मित । तेल प्रादि का बना स्नेहप्रवृत्ति 1-सचा सी० [स०] प्रेम या प्रेम की अभिवृद्धि (को०] । स्नेहसार-रामा पु० [स०] मज्जा नामक वातु । स्नेहप्रसर-- --सया पु० [स०] प्रेम का प्रवाह (को०] । स्नेहस्राव--मज्ञा पु० [स० स्नेह + स्राव ] प्रेम का प्रवाह । प्रेमाधिक्य । स्नेहप्रिय-सञ्ज्ञा पु० [म०] वह जिसे तेल प्रिय हो, दीपक (को०] । उ०--खुल गया हृदय का स्नेह स्राव ।---अपरा, पृ० १८१ । स्नेहफल-सशा पुं० [म०] तिल । स्नेहाकन--सञ्ज्ञा पुं॰ [स० स्नेहाड्कन] स्नेह का अकन। प्रेमचिह्न [को०] । स्नेहबध [-सज्ञा पु० [ स० स्नेहयन्ध ] स्नेह का बधन (को॰] । स्नेहा-सज्ञा पुं० [सं० स्नेहन्] दे० 'स्नेहन्' [को०)। स्नेहबद्ध -वि० [स०] प्रेम मे बंधा हुआ [को०) स्नेहाकुल-वि० [स०] प्रेमाकुल । प्रेमविह्वल (को०] । स्नेहवीज -सचा पु० [स०] चिरोजी। स्नेहाकूट-सज्ञा पुं० [स०] प्रेम या स्नेह का भाव। स्नेह या प्रेम की स्नेहभग-संज्ञा पुं० [स० स्नेहभङ्ग ] नेह टूटना। स्नेहच्छेद । अनुभूति [को०]। स्नेहभू -सज्ञा पुं० [स०] कफ । श्लेष्मा । बलगम । स्नेहाक्त-नि० [सं०] १ तैल से सिक्त । चिकना किया हुआ । २ स्नेह स्नेहभूमि [-सच्चा स्त्री॰ [स०] १ वह जिससे स्नेह प्राप्त हो । तेल, या प्रेमयुक्त । प्रेम से भरा हुमा [को०] । घी आदि देनेवाली वस्तु । २ वह वस्तु या व्यक्ति जिससे स्नेहालिंगन---सज्ञा पु० [सं० स्नेह + प्रालिङगन ] प्रेमपूर्ण आलिंगन । प्रेम किया जाय । प्रेम की वस्तु (को॰] । प्रगाढ आलिंगन । उ०-है बँधे विछोह मिलन दो, देकर चिर स्नेहमुख्य-सज्ञा पु० [स०] तेल । रोगन । स्नेहालिंगन ।--गुंजन, पृ० १० । स्नेहरग-सझा पु० [स०स्नेहरङ्ग ] तिल । स्नेहालु-वि० [ सं० स्नेह + आलु ( प्रत्य० ) ] स्नेह से पूरित । प्रेम- युक्त। प्रेमी । उ०-कोमल नीडो का सुख न मिला, स्नेहालु स्नेहरसन -सज्ञा पुं० [स७ ] मुख [को॰] । दृगो का रुख न मिला।-एकात सगीत, पृ० ३४ । स्नेहरेकभू [-सचा पुं० [सं०] चद्रमा (को०] । स्नेहाश-सज्ञा पुं॰ [स०] दीपक । चिराग। स्नेहल-वि० [स०] १ प्रेमपूर्ण । २ मृदु । कोमल (को०] । स्नेहासव-सज्ञा पुं० [ स० स्नेह + प्रामव ] प्रेम की मदिरा। प्रेम- स्नेहवर-सञ्ज्ञा पुं० [म०] वमा । चर्वी । (को०] । रूपी पासव । प्रेम की मादकता। उ०-अतर के घर का स्नेहवती 1-सज्ञा स्त्री० [स०] मेदा नामक अष्टवर्गीय अोपधि । स्नेहासव, पिला रहा हूँ, इस दीपक को अधवार से जूझ रहा जो । स्नेहवर्ति --सशा स्त्री॰ [स०] घोडो को होनेवाला एक रोग । घोडो की --दीप०, पृ० १६५। एक प्रकार की व्याधि । २ स्नेहयुक्त वर्तिका । तैलपूरित स्नेहित-वि० [सं०] १ जिसमे स्नेह हो या लगाया गया हो। वत्ती (को०] । चिकना । २ जिसके साथ स्नेह या प्रेम किया जाय। प्रेमी। स्नेहवर्धन -सदा पुं० [ मै० स्नेह + वर्द्धन ] प्रेम की वृद्धि । उ०- वधु । मित्र । ३ अनुकपा से युक्त । दयालु (को०) । अपने अपने आग्रह को शिथिल करके परस्पर स्नेहवर्धन मे स्नेहित-मज्ञा पु० प्रेमी मित्र । प्रिय व्यक्ति [को०)। यत्नवान् होना चाहिए।-मधन०, भा॰ २, पृ० २५० । स्नेहिल-वि० [स० स्नेह + इल] स्नेहयुपत । प्रेमयुक्त । स्नेहवस्ति-सज्ञा सी० [सं०] वैद्यक के अनुसार दो प्रकार की वस्ति स्नेही'-- --सज्ञा पु० [ स० स्नेहिन् ] १ वह जिसके माय म्नेह या प्रेम या पिचकारी देने की त्रियाओ मे मे एक । किया जाय । प्रेमी। मित्र । २ तल लगाने या मालिश करने- विशेष -इस निया मे पिचकारी मे तेल भरकर गदा के द्वारा वाला व्यक्ति (को०) । ३ नितेरा । चित्रकार (को॰) ।