पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५०

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का नाम । स्नेही ५३६२ स्पर्श म्नेही-१ जिनमे स्नेह हो। नेहयुक्त । चिकना । २ प्रीतियुक्त । प्रेम स्पदोलिका--सज्ञा स्त्री० [सं० स्पन्दोलिका] ( भृले आदि पर) भाव मे युक्त (को॰) । झूलते हुए पेंग मारने की क्रिया । झूले पर पेंग मारकर आगे पीछे आने जाने की क्रिया (को०] । स्नेहु -संशा पुं० [स०] १ रोग । व्याधि । वीमारी। २ चद्रमा। स्पर-सञ्ज्ञा पुं० [म.] एक साम का नाम। स्नेहोत्तम-सदा पुं० [सं०] तिल का तेल । म्नेहय-वि० [२०] १ जिसके माथ स्नेह किया जा सके। स्नेह या स्परणी-सशाली० [म०] वैदिक काल की एक प्रकार की लता प्रेम करने के योग्य । २ जो तेन लगाने या चिकना करने योग्य हो (को०)। स्पराटो-सच्चा स्त्री० [अ० एस्पराटो ] एक कल्पित भाषा। दे० 'एस्पराटो'। स्नग्ध्य--सा पुं० [स०] १ चिकनाहट । तेलियापन । २ स्नेहिलता। स्परिता-वि० [ स० स्परितृ ] दुखदायी । दुख देनेवाला । जैसे, रोग, स्नेह या प्रेम करने का भाव । अनुगगिता। ३ कोमलता । शत्रु आदि (को॰] । मृदुता । मार्दव (को०)। स्पर्द्ध, स्पर्ध-वि० [३०] लाग डाट या होड करनेवाला। २ ईर्ष्या स्नैहिक-वि० [म०] १ चिकना। तैलयुक्त। २ रोगनी । रोगनदार। करनेवाला। ईष्यालु [को०] । स्पज-सज्ञा पुं० [अ०] झांवे की तरह का एक प्रकार का बहुत स्पर्धन, स्पर्धन-सशा पु० [स०] १ लाग डाट । होड । स्पर्धा। मुलायम और रेशेदार पदार्थ जिसमे बहुत से छोटे छोटे छेद २ ईर्ष्या । द्वेप किो०] । होते हैं। स्पर्धनीय, स्पर्धनीय-वि० [सं०] १ सघपण के योग्य । २ स्पर्धा पर्याo-मुरदा बादल । के योग्य । जिसके साथ स्पर्धा की जा सके । ३ नाकाक्षा विशेप-इही छेदो मे यह पदार्थ बहुत सा पानी सोख लेता है, या अभिलाषा करने योग्य (को॰) । और जब इमे दबाया जाता है, तब इसमे का साग पानी बाहर स्पर्धा, स्पर्धा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] १ सघर्ष । रगड। २ किसी निकल जाता है। इसीलिये प्राय लोग स्नान आदि के समय के मुकाबले मे आगे बढने की इच्छा । होड । ३ साहस । शरीर मलने के लिये अथवा कुछ विशिष्ट पदार्थों को धोने या हौसला। ४ साम्य । वरावरी । ईर्ष्या । द्वेष । भिगोने के लिये अथवा गीले तल पर का पानी सुखाने के स्पद्धित, स्पर्धित--वि० [स०] १ जिसके साथ स्पर्धा की गई हो। लिये इमे काम मे लाते हैं । यह वास्तव मे एक प्रकार के निम्न जिसे चुनौती दी गई हो । २ विरोधी । प्रतिस्पर्धी । कोटि के समुद्री जीवो का प्रावाम या ढाँचा है जो भूमध्य सागर ३ कलहशील (को०] । और अमेरिका के आमपास के समुद्रो मे पाया जाता है । इसकी स्पर्डी,स्पर्धी ---वि० [स० स्पढिन् ] [वि० सी० स्पद्धिनी] १ कइ जातियां और प्रकार होते है। जिसमे स्पर्धा हो । स्पर्धा करनेवाला । २ ईायुक्त । स्पद-ससा पुं० [सं० स्पन्द] दे॰ 'स्पदन' । ईर्ष्यालु (क०' । ३ गर्वयुक्त । गर्वीला । घमडी (को०] । स्पदन-सा पु० [स० स्पन्दन] १ किसी चीज का धीरे धीरे हिलना। स्पर्डी, स्पर्धी --सज्ञा पु० [स०] ज्यामिति मे किसी कोण मे की कपन । कांपना । २ (अगो आदि का)प्रस्फुरण । फडकना। ३ उतनी कमी जितनी की वृद्धि से वह कोण १८० अश का गभस्थ शिशु का स्फुरण उद्दीपन । अभक मे जीव का प्रस्फुरण अथवा अधवृत्त होता है । जैसे,-- (को०)। ५ तीव्र गति या शीघ्र गमन (को०)। ६ एक प्रकार का वृक्ष (को०)। स्पदित'-वि० [स०स्पन्दित] स्पदनयुक्त । गतिमय । प्रस्फुरित । क ग हिलता डोलता हुआ । उ०-विषमता की पीडा से व्यस्त, हो रहा स्पदित विश्व महान ।--कामायनी, पृ०५४ । २ जो गत मे घ क ख कोण ख क ग का स्पर्धी है २ स्पर्धा करने योग्य व्यक्ति । प्रतिस्पर्धी व्यक्ति (को०)। हो । गया हुअा (फा०। स्पर्य, स्पधर्य--वि० [म०] १ कामना, स्पर्धा या स्पृहा करने स्पादित'--मग पुं० १ सदन । फरकना। कपना । २ बुद्धि या मन की रियात्मकता [को०)। लायक।२ मूल्यवान् (को०। स्पर्श-सज्ञा पु० [सं०] १ दो वस्तुअो का आपस मे इतना पास स्पदिनी-नशा सी० [सं० मन्दिनी] १ रजम्बला। रजोधर्मवाली पहुँचना कि उनके तलो का कुछ कुछ अश प्रापस मे सट या स्त्री। २ वह गो जो बराबर दूध देती रहे। सदा दूध देनेवाली लग जाय। छूना । २ त्वगिद्रिय का वह गुण जिसके कारण गी। कामधेनु । ऊपर पडनेवाले दवाव या किसी चीज के सटने का ज्ञान स्पदी-वि० [सं० म्पन्दिन् ] स्पदनयुक्त। जिसमे स्पदन हो। हिलने होता है। नैयायिको के अनुसार यह २४ प्रकार के डुलने, काँपने या फडकनेवाला। गुणो मे से एक है। ३ त्वगिद्रिय का विषय। ४, ख घ