पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५१

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स्पर्शक ५३६३ स्पर्शहानि पीडा। रोग । कण्ट । व्याधि । ५ दान । भेंट । ६ स्पर्णनेद्रिय--संज्ञा स्त्री० [सं० म्पर्शनेन्द्रिय] वह इद्रिय जिमसे स्पर्श वायु । ७ एक प्रकार का रतिबध या प्रामन । ८ व्याकरण किया जाता है । छूने की इद्रिय । त्वगिद्रिय । त्वचा । मे उच्चारण के आभ्यतर प्रयत्न के चार भेदो मे मे 'स्पृष्ट' स्पर्शमणि-सना पु० [स०] पारस पत्थर जिसके स्पर्श से लोहे का नामक भेद के अनुसार 'क' से लेकर 'म' तक के २५ व्यजन मोना होना माना जाता है। जिनके उच्चारण मे वागिद्रिय का द्वार व द रहता है । ६ स्पर्शमणिप्रभव--सञ्ज्ञा पु० [स०] सोना । स्वर्ण (को०] । आकाण । व्योम (को०) । १० गुप्तचर । गूढ गुप्तचर । स्पर्शयन-सगा पु० [स०] महाभारत के अनुसार एक यज्ञ जिममे प्रच्छन्न जासूस। छिपा हुमा भेदिया (को०) । ११ ग्रहण या प्रत्येक देय वस्तु का स्पर्श किया जाता है (को०)। उपगग मे सूर्य अथवा चद्रमा पर छाया पडने का प्रारभ । स्पर्णरसिक-सशा पुं० [सं०] कामुक । लपट । स्पर्शक--वि० [म०] १ स्पर्श करने या छूनेवाला । २ अनुमत स्पर्ण रेखा--सञ्ज्ञा स्त्री॰ [पुं०] गणित मे वह सीधी रेखा जो किसी करनेवाना। अनुभवकर्ता [को०) । वृत्त की परिधि के किसी एक विंदु को म्पर्श करती हुई खीची स्पर्शकोण-सज्ञा पुं० [स०] गणित मे वह कोण जो किसी वृत्त पर जाय । जैसे,-- खीची हई स्पर्शरेखा के कारण उस वृत और स्पर्णरेखा के मे क, ख, ग अर्धवृत्त है, बीच मे बनता है । जैसे,-- च और उसके खविंद को स्पर्श करती हुई जो घ च रेखा ख ख घ' घ क ग क ग वह रेखा स्पर्शरेखा कही जाती है। मे क ख ग अर्धवृत्त पर खीची हई घ च रेखा के कारण स्पर्णलज्जा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] लजालू या लाजवती नाम की लता। घ ख क और च ख ग कोण स्पर्शकोण है। स्पर्णवज्रा-सज्ञा स्त्री॰ [स०] बौद्धो की एक देवी का नाम । स्पर्श क्लिष्ट--वि० [स०] जिसे छूने मे पीडा हो । जिमका स्पर्श स्पर्शवर्ग--सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] व्याकरण मे क से म तक के वर्णों का कष्टप्रद हो। वर्ग [को०। स्पर्शक्षम-वि० [स०] छूने के लायक । स्पर्श के योग्य (को०] । स्पर्शवेद्य---वि० [स०] जो स्पर्श द्वारा ज्ञात हो। जिसका ज्ञान स्पर्श स्पर्शगुण--वि० [सं०] जिसका गुण म्पर्ण हो । जैसे, वायु (को०] । के द्वारा हो (को०] । स्पर्शज--वि० [सं०] स्पर्श से होनेवाला । स्पर्शजन्य (को०] । स्पर्शवान्--वि० [स० स्पर्शवत्] १ जिसका स्पर्ण सभव हो। २ जो म्पर्णजन्य--वि० [स०] जो स्पर्श के कारण उत्पन्न हो । सत्रामक । स्पर्श गुण से युक्त हो, जैसे, वायु । ३ जो छूने मे सुखद हो। छुतहा । जैसे,--कुप्ठ, शीतला, हैजा आदि स्पशजन्य रोग है। मृद् । कोमल (को०)। स्पर्शतन्मात्र--सज्ञा पु० [स०] स्पर्शभूत का आदि, अमिथ और स्पर्णशुद्ध--सज्ञा सी० [सं०] शतावर । सूक्ष्म रुप । विशेष दे० 'तम्मान'। स्पर्शसकोच--सज्ञा पुं० [ स० स्पर्शसङ्कोच ] लजालू या लाजवती स्पर्णता--सञ्ज्ञा सी० [स०] स्पर्श का भाव या धर्म । स्पर्शत्व । नाम की लता। स्पर्शदिशा--मज्ञा श्री० [म०] वह दिशा जिधर से सूर्य या चद्रमा यौ०--स्पर्शमकोचपरिणका = लजालू लता जिमकी पत्तियाँ छूने को ग्रहण लगा हो । चद्रमा या मूर्य पर गहण की छाया मे सिमट जाती है। पाने की दिशा । स्पर्णमकोची-सला पुं० [सं० स्पर्शसडोचिन्] पिंडालू । स्पर्श द्वेप--सज्ञा पुं० [स०] स्पर्श के प्रति अति मवेदनशील । वह स्पर्शसचारी?--सहा पुं० [सं० स्पर्शसञ्चारिन् ] शूक रोग का जिसपर स्पश का शीघ्र पभाव होता हो [को०] । स्पर्शन'--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ छूने की किया। स्पर्श करना । २ म्पर्णसचारी--वि० सक्रामक । छुतहा । स्पर्श या सपर्क के कारण एक दान । देना । ३ सबध । लगाव । ताल्लुक । ४ वायु । से दूसरे मे सक्रमण करनेवाला [को०)। हवा । ५ मवेदन । भावना । (को०) ६ स्पर्श द्रिय या स्पर्णसुख--वि० [सं०] जिसका स्पर्श सुखद हो (को॰] । स्पर्शसाधन (को०) । स्पर्शमुख-सशा पु० म्पर्शजन्य अानदानुभूति । स्पर्शन--पी० [वि० सी० स्पर्शनी] १ छूोवाला । स्पर्श करनेवाला । स्पर्शस्नान-सचा पुं० [स०] सूर्य या चद्रग्रहण के समय का वह स्नान २ ग्रस्त, प्रभावित या अनुकूल करनेवाला (को०] । जब सूर्य या चद्र पर छाया का पडना प्रारभ होता है (को०)। स्पर्शनक-सशा पुं० [म.] माय्य दर्शन के अनुसार त्वचा जिनसे स्पर्णरपद--मज्ञा पुं० [स० स्पशस्पन्दन] मेटक । म्पर्श होता है (को०] । स्पर्णस्यद--सहा पुं० [स० स्पर्शम्यदन] मटूक (को०] । स्पर्णना--सग खो० [स०] छूने की शक्ति या भाव । स्पर्शहानि [---सस सी० [सं०] शूक रोग मे रुधिर के दूपित होने के स्पर्शनीय--वि० [सं०] स्पर्श करने योग्य । धूने के लायक । कारण लिंग के चमडे मे स्पर्शजान न रह जाना। हिं० श० ११-५ एक भेद।