पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५४

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स्पध' स्प्रिगदार पृथ्'-या t० [म०] शत्रु । वैरी [को०] । स्पृहणीय--वि० [स०] १ जिसके लिये अभिलापा या कामना की स्पृध्---मका पी० युद्ध । लडाई । संघर्ष (को०] । जा सके। वाछनीय। उ०---यह कितनी स्पृहणीय बन गई, स्पृ--वि० [०] १. स्पग करनेवाला। छूनेवाना । जैसे, मर्मस्पृश् । मधुर जागरण सी छविमान |--कामायनी, पृ० २७ । २ २ पहुंचनेवाला [को०] 1 गौरवशाली। गौरव या वडाई के योग्य । ३ रमणीय । मोहक (को०) । ४ ईर्ष्या करने योग्य (को॰) । स्पृश'---समा पुं० [सं०] म्पर्श । सपर्क (को०)। यौल-स्पृहणीयवीर्य = जिसका पराक्रम स्पृहणीय या वाछनीय स्पृश'--वि० छूनेवाला । म्पर्श करनेवाला। हो। स्पृहणीयशोभ - जो अपनी शोभा ग सौदर्य के कारण स्पृशा-मधा मो० [म०] १ मपिणी । सर्पकालिका । २ कटकारी। कंटाई। रेंगनी। स्पृहा करने योग्य हो। स्पृहयालु--वि० [स०] १ जो स्पृहा या कामना करे। स्पृहा करनेवाला। स्पृशी -सशास्री० [म०] कटकारी। केंटाई । २ लोभी। लालची। स्पृश्य-वि० [401 [वि० सी० स्पृश्या] १ जो स्पर्श करने योग्य हो। छूने के लायक । उ०--होगा कोई इगित अदृश्य, मेरे स्पृहा--सज्ञा सी० [स०] १ अभिलापा । इच्छा । कामना। ख्वाहिश । हित ह हित यही स्पृश्य ।--अपरा, पृ० १८१ । २ अधिकृत २ न्यायदशन के अनुसार किसी ऐसे पदार्थ की प्राप्ति की करने योग्य (को०)। कामना जो धर्म के अनुकूल हो । ३ ईर्ष्या (को०)। स्पृहालु--वि० [स०] दे० 'स्पृहयालु' । यो०-स्पृश्यास्पृश्य = स्पृश्य और अस्पृश्य । छूने लायक और न छूने के योग्य। स्पृहित-वि० [स०] १ जिसकी स्पृहा या कामना की गई हो । २ जो ईर्ष्या का विषय हो (को०] । स्श्या-शा प्री० [म०] एक प्रकार की समिधा [को॰] । स्पृही--वि० [स० स्पृहिन्] १ कामना या इच्छा करनेदाला उ०- स्पृश्यास्पृश्य विवेक-सज्ञा पुं॰ [स०] छूने और न छूने योग्य वस्तुप्रो गृह योग्य बने है वन स्पृही, वन योग्य हाय' हम बने गृही।- या पदार्यों का विचार । साकेत, पृ० १५६ । २ स्पर्धा करनेवाला। स्पृष्ट-वि० [सं०] १ जिसने स्पर्श किया हो। २ छूया हुआ। हाय स्पृहया--सज्ञा पुं॰ [स०] विजौरा नीबू । से स्पर्श किया हुआ । ३ सपक मे पाया हुआ (को०)। ४ ग्रस्त । प्रभावित (को०)। ५ दूपित । कलुपित । कलकित । जैसे, स्पृह्य-वि० जिसके लिये कामना या स्पृहा की जा सके । स्पृहणीय । वाछनीय। स्पृष्टमैथुना (को०)। ५ पहुँचनेवाला। उपयोग करनेवाला (को०)। ६ जिहा के या उच्चारण अवयवो के पूण स्पश से स्पेशल'---वि० [अ०] १ जिममे औगे की अपेक्षा कोई विशेषता बना हुप्रा (मो०।। हो । विशिष्ट । खास । २ जो विशेष रूप से किसी एक व्यक्ति या काम के लिये हो । जैसे,-स्पेशल गाडी। ३ जो साधारण स्पृष्ट'--सरा पुं० व्याकरण के अनुसार 'क्' से 'म्' तक के वर्णो के न हो । अमाधारण। उच्चारण में प्रयुक्त प्राभ्यतर प्रयत्ल (को०] । स्पेशल'--सज्ञा स्त्री॰ [स०] वह रेल गाडी जो किसी विशिष्ट कार्य, स्पृष्टक-समा पुं० [F] चलते समय किसी पुरुष और स्त्री के अगो उद्देश्य या व्यक्ति के लिये चले । जैसे,-लाट साहब की स्पेशल, का परस्पर हलका स्पर्श । एक प्रकार का प्रालिंगन [को०) । वारात की स्पेशल । स्पृष्टमैथुन--वि० [स०] [वि० सी० स्पृष्टमैथुना] मैथुन के कारण जो स्पेशलिस्ट--सञ्ज्ञा पु० [अ०] वह जिसे किसी विपय का विशेष अपवित्न या दूपित हो गया हो [को०] । ज्ञान हो। वह जो किसी विषय मे पारगत हो । विशेषज्ञ । स्पृप्टरोदनिका-सया सी० [सं०] लजालू या लाजवती नाम की लता। जैसे,--बे आँख के इलाज के स्पेशलिस्ट है। स्पृष्टास्पृष्ट-सरा पुं० [सं०] छूग्राछूत । स्पृष्टास्पृष्टि । स्प्रष्टव्य-वि० [स०] १ छूने लायक । स्पर्ण करने योग्य । २ जिसका स्पृप्टस्पृप्टि-सज्ञा सी० [सं०] परस्पर एक दूसरे को छूने की क्रिया। ज्ञान स्पर्श से किया जाय (को०] । स्प्रष्टा-वि० [सं० स्पप्ट] छूनेवाला या स्पश करनेवाला (को०] । स्पृष्टि :-मरा पी० [सं०] १ छूने की क्रिया। स्पर्श । २ सयोग । स्प्रष्टा-सज्ञा पुं० स्पर्शजन्य रोग । व्याधि [को०) । लगाव । सपक (को०)। स्प्रिंग-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] लोहे की तीली, पत्तर, तार या इसी प्रकार स्पृष्टिका--मज्ञा पी० [म०] १ दे० 'स्पृष्टि' । २ शपथ ग्रहण के की और कोई लचीली वस्तु जो दाव पड़ने पर दब जाय और समय अगो का म्पर्श। दाव हटने पर फिर अपने स्थान पर या जाय । कमानी। स्पृष्टी-वि० [म० स्पृष्टिन्] स्पश करनेवाला [को०] । विशेप दे० 'कमानी'। स्पृहण-गरा पुं० [सं०] [वि० स्पृहणीय] अभिलापा । स्पृहा । इच्छा । स्प्रिंगदार-वि० [अ० स्प्रिंग+ फा० दार (प्रत्य०)| जिसमे स्प्रिंग या कमानी लगी हो । कमानीदार। । छूमाछूत । कामना।