पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्फोटा ५३७० स्मरण स्फोटा-महा मी० [म०] १ माँप का छन । २ मफेद अनमूल स्मरकथा--पहा स्त्री॰ [P०] स्त्रियो के नवध की या शृगार रस की ३ हाय का हिलाना (को॰) । ऐमो वातें जिनने काम उत्तेजित हो । प्रेमालाप । स्फोटायनशा पु० [३०] १ वैदिक ऋगि कमीवान् मुनि का एक स्मरकर्म-मन्ना पु० [म मचमन] कामुक पात्र व्यवहा। नाम । २ वारण के एक प्राचार जो पारिगति के पूर्ववर्ती स्मरकार-वि० [म.] जिनमे काम का उद्दीपन हो । कामोद्दीपक । थे । पाणिनि ने अपनी अष्टाध्यायो में इनका उल्लेख किया है। स्मरकूप-मचा पु० [सं०] भग । योनि । स्फोटिक-मझा ० [सं०] पत्थर या जमीन यादि को तोडने फोडने स्मरकृपक-संज्ञा पु० [सं०] भा । योनि ोिग। का काम। स्मरकूपिका--सग स्त्री० [३०] भग । योनि । म्फोटिका-पक्षा ही० [ म०] १ छोटा फोटा । फु मी । २ हापुत्रिका स्मरगुत--सज्ञा पु० [८] १ श्रीकृष्ण का एक नाम । २ वह जो नामव पक्षी । कामकला की शिगदे। स्फोटित-वि० [म.) १ जिमरा काट दिया गया हो। जो फोडा गया हो । २ जो वक्त या प्रकटिन हो किो०। स्मरगृह--सहा पुं० [म०] भा। योनि। स्फोटितर-लज्ञा पुं० फटने की क्रिया । पटना [को०) । स्मरचद्र--सहा पु० [न० म्मरचन्द्र] एक प्रकार का रतिबन्ध । स्फोटितनयन-वि० [२०] जिनकी ग्राख फोड दी गई हो या जिमकी म्मरचक्र--सज्ञा पुं० [म०] स्त्रीमभोग के लिये एक प्रकारका रतिबध । आँव फूटी हो । फूटी हुई आँखो वाला [को०) म्मरच्छत्र-मज्ञा पु० [स] भगनाना। भग की शिश्निका [को०] । स्फोटितार्गल- वि० [सं०] अर्गला नोटनेवाला। दरवाजे की कुडी स्मरच्छद-मज्ञा पुं० [म०] मग । योनि । या ताला चटकानेवाला । स्मरज्वर-सज्ञा पु० [सं०] कामवर फिो। स्फोटिनी-सजा सी० स०] कही। म्मरण-सज्ञा पु० [स०] १ रिसी देखी, नृनी बीती या अनुभव मे स्फोता--सला झो० [म०] १ अनतमूल । शारिवा । २ सफेद त्राक । बाई वान का फि. मे मन मे याना। याद आना। ग्राध्यान । सफेद मदा। जैमे,-(क) मुझे म्मरण नहीं पाता कि आपने उन दिन क्या स्फोरण--5) पुं॰ [स०] दे० 'स्फुरण' फिो०] । कहा था। (ज) वे एक एक बात भली भांनि स्मरण रखते हैं। स्पय-सज्ञा पु० [स०] १ यज्ञ में प्रयुक्त होनेवाना तलवार के मुहा०-स्मरण दिलाना = भूली हुई बात आकार का एक कारठनिर्मित उपकरण । २ नाकादड । वल्ली। याद कराना । पतवार । ३ मस्तूल का मजबूत था । वल्ली किो०] । जैने, उनके स्मरण दिलाने प. मैं सब बातें समझ गया । स्मदिभ--सदा पु० [म.] *दिक कान के एक ऋपि का नाम । २ नौ प्रकार की मतियो मे ने एक प्रकार की भक्ति सिम उपासक अपने उपास्त्रदेव को बगवर याद किया वता है। स्मय-सज्ञा पु० [म०] १ गर्व । अभिमान । शेत्री। २ विम्मय । आश्चर्य । अचमा (को०)। : मद हाम । मुनकान ।। उपास्य का अनवग्न चिनन । उ०--यण, कीतन मरणपाद- रत, अन्चन दन दास । मन और आत्मानिवेदन, प्रेम यौ०--स्मपदान = (१) गर्वक्त या घमट ने भग हुअा दान । लक्षणा जाल।- (ब्द०) : साहिब मे एक प्रकार का (२) किमी को देकर या अनुकूल भाव मे पुस्कुराना । समय- अलराः जिममे कोई दात या पदार देखरर रिनी विशिष्ट नुत्ति - गर्वहीन वरना । घमट चूर करना। पदार्थ या यात का स्मरण हो पाने का वर्णन होता है । जमे,- स्मया--वि० [म०] अद्भुत । विलक्षण । कमल को देखक, विनी के नु दर नेलो के स्मरण हो पाने का स्मयन-सहा पु० [म.] मुनकान । मदहान झिो० । वर्णन । उ०--(क) मूल होत नदीत निहगे। मोहन के मुख म्मयमान- वि० म०] नारगना हुया । उ०-1द मज म्मयमान जोग बिचारी। (च) लखि शनि म की ह त मुधि तन नुधि धन बिना, गा बिन्न बिनम्मर।-ववानि, पृ. ६४। को जोहि । ४ म्नविपरित । याददाश्त । स्मरणशक्ति (को॰) । म्मयी--वि० [म० -मपिन] १ म्नयन। अभिमानी । घमडी । २ ५ प पाताल विधान । पर५-7 विधि ( । रिसी देव मदहास ने युक्त । मुमकगता हु शि०] । का मानम्कि पाप (को०)। ७ खंद के नाथ याद करना (को०)। स्मर-सशा पु० [२०] १ बामदेव । मदन । उ-(क) मदन मनोभव म्मरणपत्र-महा पु० (स०] वह पत्र जो पिली को कोई बात मण दिलाने के लिये निवाजा। मग मथन, पचमर म्म मार। मीनवे तु कदर्प हरि व्यापक विग्ह विदा |-अनेकाय (गढ०) । (ख)-भर अना को हित स्मरणपत्रक--नशा पु० [म.] १ वह पत्र जो किसी को किनी विपन मान्न । नाको कहन विमान ।-गुमान (शब्द०)। २ =मरण । का स्मरण दिनाने के लिये निता या भेजा जान । २ वह पन्न स्मृति । याद । ३ (मगीत मे) गुद्ध राग का एक भेद । ४ जिनमे कोई बात याद रखने के लिये लिखी जाय। याददाश्त । प्रेम । प्रीति । प्रहरीको०)। ५ ज्यौतिप मे नग्न से मप्नम न्यान म्मरणपददी- [सं०] मृत्य । मौत । मरण [को०] । जो पुम्प के लिये स्म्यान और स्त्री के लिये पतिस्वान का स्मरणभ-सहा ५० [सं०] वह जो स्मरण से पैदा होता हो। द्योतक है (को०)। कामदेव को। -सा मी०