पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्मरणशक्ति ५३७१ स्मरस्मरा मरणशक्ति-मज्ञा स्त्री० [स०] वह मानसिक शक्ति जो अपने घटा देखि कारी, बिहारी, विहारी, विहारी, रर जू । मई काल- सामने होनेवाली घटनाओ पोर सुनी जानेवाली बातो को वोरी सि दोरी फिरी, आजु बाढी दगा ईस का धौं कर जू । ग्रहण करके छोडती है, और आवश्यकता पड़ने, प्रमग याने या विथा में ग्रनी मो भुज- डमी मी, छरी सी, मरी सी, घरी सी, मस्तिष्क पर जोर देने से वह घटना या बात फिर हमारे मन मर जू।-राकुसुमाकर (शब्द०) । मे, स्पष्ट कर देती है। याद रखने की शक्ति । याददाश्त । स्मरनिपुण--1० [म०] कामकता में प्रवीण। रनिकुशत [फो०] । जैसे,--(क) आपकी स्मरणशक्ति बहुत तीन है। (च) स्मरपीडित--वि० [म० स्मरपोडिन] काम द्वारा पीडित या मताया अभ्यास से किसी विशिष्ट विषय में स्मरणशक्ति बहुत वहाई हुना । काम का माग फिो०] । जा सकती है। स्मरप्रिया-संज्ञा स्त्री० [म.] कामदेव की पली-रति । मरणानुग्रह-मज्ञा पुं० [स०] १ स्मरण करने की कृपा । स्मरण स्मरवाणपक्ति-सज्ञा पुं० [म० स्मरयाण पक्ति] कामदेव के पाँचो सबधी अनुकपा । २ कृपापूर्वक याद करना। अनुगहपूर्वक बारा को०] । स्मरण करना ।को०] । स्मरनासित--वि० [म०] कामव्यथित । कामतप्त । कामोतेजित [को॰] । स्मरणापत्यतर्पक-सज्ञा पुं० [म०] कछुवा । कच्छप (को०] । स्मरभू-वि० [स०] स्मरजन्य । कामजन्य । काम के कारण उत्पन्न । स्मरणासक्ति-या क्षी० [म०] भगवान के स्मरण मे होनेवाली स्मरमदिर-सय पु० [म० स्मरमन्दिर] योनि । भग । श्रासक्ति जिसके कारण भक्त दिन रात भगवान् या इष्टदेव स्म रमय--वि० [म०] जो स्मर या काम के कारण उत्पन्न हो । काम- का स्मरण करता है । उ०--(यह भक्ति) एक रूप ही होकर जन्य । स्मरजन्य को०)। गुणमाहात्मासक्ति, रूपामक्ति, पूजामक्ति, स्मरणासक्ति, टासासक्ति, सख्यासक्ति, कातासक्ति, वात्सल्यामक्ति, रूप में स्मरमुट्--सटा पु० [सं० स्मरमपु] शिव [को॰] । एकादश प्रकार की होती है। --हरिश्चद्र (शब्द॰) । स्मरमोह-सज्ञा पु० [म०] कामजन्य मूर्छ । प्रणयोन्माद [को० । स्मरणी--सज्ञा स्त्री० [स०] सुमिरिनी। जपमाला । जप करने की स्मररुक्मरा पुं०, सी० [म० स्मररुज्] कामजन्य पीडा या व्याधि (को०)। माला [को०] । स्मरणीय-वि० [स०] [वि॰ स्त्री० स्मरणीया] स्मरण रखने योग्य । स्मरलखे-सज्ञा पुं० [स०] प्रेमपन्न (को०] । याद रखने लायक । जो मूलने योग्य न हो । जैसे,—यह घटना स्मरलेखनी--सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] शारिका पक्षी । मैना । भी स्मरणीय है। स्मरवती--सज्ञा स्त्री० [सं०] प्रेमासक्त या कामलुब्धा स्त्री (को०] । स्मरता-सज्ञा स्त्री० [स०] १ स्मर या कामदेव का भाव या धर्म । स्मरवधू-सश स्री० [स०] कामदेव की पत्नी, रति । २ स्मरण का भाव या धर्म । स्मरवल्लभ--संज्ञा पुं० [स०] १ कामदेव का प्रिय मित्र, वसत (को०] स्मरदशा--सज्ञा स्त्री॰ [म.] वह दशा जो प्रेमी या प्रेमिका के न २ अनिरुद्ध का एक नाम । मिलने पर उसके विरह मे होती है। विरह की अवस्था । स्मरवोथिका-सहा सी० [स०] वेश्या । रडी। विशेप-यह दम प्रकार की मानी गई हे--असौष्ठव, ताप, स्मरवृद्वि-सज्ञा पु० [स०] १ कामभावना का अभिवर्धन या उत्तेजन। पाडुता, कृशता, अरुचि, अधृति, अनालबन, तन्मयता, २ कामवृद्धि या कामज नामक क्षुप। और मरण । स्मरशत्रु-सज्ञा पुं॰ [स०] कामदेव का दहन करनेवाले, महादेव । स्मरदहन-मञ्चया पु० [म.] कामदेव को भस्म करनेवाले, शिव । स्मरगवर--सज्ञा पुं० [म०] शबर लोगो का प्रेम । बर्बर या क्रूर प्रेम । स्मरदायी-वि० [स० स्मरदायिन्] कामोत्तेजक । स्मरशर--मज्ञा पुं० [म.] कामदेव के वारण जो मय्या मे पांच कहे स्मरदीपन--वि० [सं०] जिमसे काम का दीपन हो । जिसमे काम गए है। इसी से कामदेव का नाम पचवारण और पचगर भी है। उत्तेजित हो। कामोत्तेजक । [को॰] । स्मरदुर्मद - वि० [स०] कामोन्मत्त (को०] । स्मरशासन--सज्ञा पु० [८०] कामदेव का शानन करनेवाले, शिव (को०] । स्मरध्वज--सा पं० [म०] १ पुरुप का लिंग । २ स्त्री की योनि । स्मरशास्त्र-सपा पुं० [सं०] वह शास्त्र जिसमे कामकला का विवेचन मग । ३ वाद्य । बाजा । ४ कामदेव का चिह्न मत्स्य जो हो। कामशास्त्र। उनकी ध्वजा मे है (को॰) । स्मरसख'---वधा पु० [स०] १ चद्रमा । २ ऋतुपति वसत । (को०) । स्मरध्वजा-तज्ञा स्त्री० [सं०] १ चांदनी रात । २ कामदेव का चिह । स्मरमख-वि० [म०] जिमसे काम को उत्तेजना हो । कामोद्दीपक । काम की पताका। स्मररस--वि० [सं०] जो काम की उत्तेजना करने में समर्थ हो। जिससे स्मरना --कि०स० [सं०स्मर( = स्मरण, याद) + हिं० ना (प्रत्य०) काम का दीपन मभव हो कि०] । स्मरण करना । याद करना । उ०—तुम्हे देखि बे को महा चाह स्मरस्तभ-सला पु० [म० म्मरस्तम्भ] पुनप की इद्रिय । लिंग। बाढी, निापं, विचार, सराहै, म्मरै जू । रहे बैठि न्यारी, स्मरम्मरा-शा सी० [म.] नेवती। हिं० पा० ११-६ उन्माद