पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/६५

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स्यालकटा ५३७७ स्यो कलम स्यालकटा-सज्ञा पुं० [म्याल+ म० कण्टक] ३० 'म्याराटा' । पाता है। लिगने पाछापने की रोशनाई। ममि । 30-हरि स्यालक-पहा पु० [म.] पत्नी का माई । साला । जाय चेत चिा मूग्नि स्याही भरि जाट, करि जाय कागद स्याला'-मज्ञा पुं॰ [देश॰] बहुतायत । अधिकता। ज्यादती । टॉफ जरि जाय ।--काव्यर नाधर (गन्द०)। स्याला'--मक्षा पुं० [म० शीतकाल] शीतकाल । जाडे का मीसिम । २ कालापन । कालिमा । 30--माही बारन ते गई मन ने स्यालिका--सज्ञा स्त्री० [स० } पत्नी को छोटी बहन । साली। भई न दूर । समुझ चतुर चित बात यह रहत विनूर विमूर।-- रसनिधि (गन्द०)। स्यालिया-मज्ञा पुं० [हिं० सियार] मियार । गोठः । शृगाल । उ.--श्रीकृष्ण के पुत्र ढढण मुनि को स्यालिया ले गया। मुहा०-स्याहो जाना=बानो वा कालापन जाना । जवानी का --मत्यार्थप्रकाश (शब्द०)। बीतना । उ०-म्याही गई मफेदी पाई दिल नफेद अजहूँ न हुना ।--कवीर (शब्द०)। स्यानी-सज्ञा स्त्री० [-०] पत्नी की वहन । माली । श्यालिका । ३ बदनामी का टीका । कनक । कानिय । कालिमा । जैसे,--उमने स्यालू--+ मया पुं० [हिं० मालू] स्त्रियो के प्रोडने की चादर । अपने बाप दादा के नाम पर स्याही पोत दी। प्रोढनी । उपरैनी। क्रि० प्र०-पोतना।--फेग्ना ।--लगना ।—लगाना ।--लेपना । स्यालो-सज्ञा पुं० [म० स्यालक, हिं० साला] पत्नी का भाई । • कड वे तेल के दीए में पारा हुअा एक प्रकार का काजन जिममे साला । (डिं०)। गोदना गोदते है । ५ अवकार । अंधेरा । ६ दाग । दोप। ऐव । स्यावज-मज्ञा पुं० [हि० सावज] दे० 'सावज' । स्याही -सन्चा मी० [सं० गल्यकी, हि० म्याही माही। शल्यकी। स्याह'-वि० [फा०] काला । कृष्णा वर्ण का। सह । विणेप ० 'साही'। स्याह- -- सजा ० घोडे की एक जानि । उ०--सिरण समदा म्याह स्याहीचट-- सझा पु० [फा० स्याही + हि० चाटना) सोरना। सेलिया सूर सुरगा। मुमकी पंचकल्यानि कुमेता केहरि रगा। स्याहोचूस-मचा पं० [फा० म्याही + हिं० चूमना] मोता। म्याही -सूदन (शब्द०)। मोख । उ०--परतु मिसल के बजाय म्याहीन्स पर दस्तखत स्याह करवा गुलकट--मझा पुं० [2] लकडी का बना हुअा एक प्रकार कर बैठते । -वो दुनिया, पृ० ३४ । का ठप्पा जिससे कपडो पर बेल बूटे छापे जाते है । स्याहीदान--सा पुं० [फा०] दावात । ममिपान [को॰] । स्याह कॉटा--सज्ञा पुं० [फा० स्याह + हिं० काँटा] किंगरई नाम का कटीता पौधा । पाल । विशेप दे० 'किंगरई' । स्याहीमाज-सज्ञा पु० [फा० स्याहीमाज] स्याही बनानेवाला कारीगर (को०] । स्याहगोसर-सक्षा पु० [फा० सियाहगोश] दे० 'सियाहगोश' । उ०-- चीते सुरोझ मावर दवग । गैडा गलीन डोलत अभग। अरु स्याहीसोख-ज्ञा पु० 'फा० म्याहीसोज] मोजा । स्याहगोमर विशृग अग । रिच्छादि खैरिहा छुटे अग। स्युवक--संज्ञा पुं० [म०] विणपुराण में वरिणत एक प्राचीन जनपद । सूदन (गन्द०)। स्यू---सया रस्त्री० [म०] सूत । सून्न । स्याह जवान-सया पु० [का० स्याह+जवान] वह हाथी या घोडा स्यूत'-वि० [स] १ बुना हुया । २ सीया हुया । मूनित । ३ विद्ध । जिसकी जबान स्याह हो। बीधा या भिदा हुआ (को०)। ४ मशिनष्ट। मपृक्न (को० । विशेष-स्याह जवानवाले हाथी घोडे ऐबी समझे जाते है । स्यूत-सज्ञा पृ० मोटे कपडे का थैला । येली। स्याह जीरा--संज्ञा पु० [फा० म्याह + हि० जीग] काला जीग। स्यूति-समा सी० [स०] १ मीना। सीवन । २ बुनना। वयन । विशेप दे० 'काला जीरा'। ३ थैला। ४ सतति । मतान । औताद । ५ पगावनी । स्याह तालू-सज्ञा पुं॰ [फा० स्याह+ हि० तालू] वह हाथी या घोडा परिवार (को०)। जिमका तालू विलकुल स्याह हो । विशेष दे० 'स्याह जवना' । स्यूत्न-सज्ञा पुं० [मं०] आनद । पं पो]। स्याहदिल-वि० [फा०] जो दिल का काला हा। खाटा । दुष्ट । स्यून-मरा पुं० [म०] १ किरण । रश्मि । २ सूर्य । ३ यता । स्याह भूरा-वि० [फा० स्याह + हि० भूग] काला । (रग) । स्यूना--पशा को [म०] १ किरण । मरीचि । रश्मि । २ काची । स्याहा-सा पुं० [फा० सियाह] दे० 'सियाहा' । उ०--प्रभु जू मै मेखला । नानी [को०] । ऐसो अमल कमायो । साविक जमा हुती जो जोगे मित जानिक स्यूम--सज्ञा पुं० [२०J१ किरण । रश्मि । २ जल । मलिल। तल गायो। वासिलबाकी स्याहा मुजमिल राब अधर्म को ३ अानद । सुध । हप (को०)। वाकी । चित्रगुप्त होत मुग्नीफी गरण गहूँ मै काकी।- सूर (शन्द०)। स्यूमक-सा पु० [-] गुप्त । प्रमन्नता । हपं (को॰) । स्याही'-रारा पी० [1101 १ क प्रसिद्ध गीन तरल पदाथ जो म्यूमरश्मि-सज्ञा पुं० [०] एक वैदिक ऋषि का नाम । प्राय काला होता है पीर जो लियने, जग आदि के काम म स्यो-अव्य० [० सह) २० 'स्यो '।