पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/६७

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स्रजा ५३७६ स्रस्तगान श्वमेध (शब्द॰) । (ख) धरि सत रज तम रूप सजति पालति स्रवद्मध्य-सज्ञा ५० [स०] १ वह रत्न जिसमे से अपने आप जल सघारति । -सूदन (शब्द॰) । का स्राव हो । २ चद्रकात मरिण [को०] । स्रजा-सज्ञा स्त्री० [स० लज्] फूलो की माला । उ०—पहनाती स्रवद्रग-सञ्ज्ञा पु० [स० स्रवद्रग] १ मेला । प्रदर्शनी । नुमाइश । वह ज्येष्ठ माँ स्रजा ।-साकेत, पृ० ३४० । २ बाजार। हाट । स्रज्वा'-सक्षा पुं० [स० स्रज्वन्] १ माला बनानेवाला। माली। स्रवन-सज्ञा पु० [स० श्रवण] स० 'श्रवण' । उ०—(क) रामचरित- मालाकार । २ रस्सा । रज्जु । ३ प्रजापति । ४ एक प्रकार मानस एहि नामा। सुनत स्रवन पाइय विस्रामा।--तुलसी का वस्त्र । (को०)। (शब्द॰) । (ख) स्रवन नाहि, पै सब किछु सुना । हिया नाहिं स्रज्वार-सज्ञा स्त्री॰ [स०] रस्सी। रज्जु । पै सब किछु गुना । —जायसी (शब्द०) । स्रणिका-वि० [स० शोणित] लाल । (डिं०) । स्रवना-कि० अ० [स० स्रवण] १ बहना । चूना। टपकना । स्रद्धा-सज्ञा स्त्री० [सं० श्रद्धा] दे॰ 'श्रद्धा' । उ०--स्रद्धा विना उ०-(क) कुछ काल के पीछे हम उस ढेर को टीला बना धरम नहिं होई । विन महि गध कि पावइ कोई। देखते है और वहाँ से जल स्रवने लगता है ।-श्रद्धाराम तुलसी (शब्द०)। (शब्द॰) । (ख) प्रेम विवस जनु रामहिं पायौ । स्त्रवत भयहु सधू-सज्ञा स्त्री० [स०] अपना वायु का त्याग [को॰] । पय उर जन छायो।-पद्माकर (शब्द०) (ग) लज्जावश नहि रहेउ सँभारा । स्रवत नयन मग ते जलधारा ।--सवल. त्रपाटी-सज्ञा स्त्री॰ [देश० १] पक्षी की चोच । (डि०) । (शब्द॰) । २ गिरना । छूट जाना। उ०-अति गर्व गनइ स्रम-सज्ञा पु० [मं० श्रम] दे० 'श्रम' । उ०- -(क) स्वारथ न सगुन असगुन स्रवहिं आयुध हाथ ते ।--तुलसी (शब्द॰) । सुकृत न स्रम वृथा देखि विहग विचार । वाज पराये पानि परि स्रवना-क्रि० स १ बहाना । टपकाना उ०-(क) अमृत हू तू पछी हि न मार ।-विहारी (शब्द॰) । (ख) रामचरित सर विन अन्हवाये । सो बम जाइन कोटि उपाये।-- अमल अति गुन स्रवति निधि आनद । सूर नीनो लोक परस्यो तुलसी (शब्द०)। सुर असुर जस छद । —सूर (शब्द॰) । (ख) गोद राखि पुनि हृदय लगाये । स्रवत प्रेमरस पयद सुहाये । -तुलसी (शब्द०)। स्रमकन-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० श्रमकण] पसीने की बूद। उ०---अति २ गिराना । उ०-चलत दसानन डोलति अवनी। गर्जत गर्भ मुचत स्रमकन मुखनि ।-गीता०७।१८ । स्रवहिं सुररवनी।-तुलसी (शब्द०)। समविदु -सज्ञा पुं० [स० श्रमविन्दु] दे० 'स्रमकन' । उ०--स्रमविंदु स्रवा-सज्ञा स्त्री० [२०] १ मरोडफली । मुरहरी। मूर्वा । २ डोडी। मुख राजीव लोचन अरुन तन सोनित कनी।--मानस, ६।७० । जीवती। स्रमित-वि० [स० श्रमित] दे० 'श्रमित' । उ०-ब्रह्म धाम सिवपुर स्रष्टव्य-वि० [म०] सृष्टि करने के योग्य । सृष्टि करने या रचने के सवलोका। फिरे स्रमित व्याकुल भय सोका।--तुलसी (शब्द०)। लिये उपयुक्त । जिसकी सृप्टि की जा सके। स्रवती-सज्ञा स्त्री० [स० स्रवन्ती] १ नदी । दरिया । २ प्रवाह । धारा स्रष्टा'--सज्ञा पुं॰ [स० स्रष्ट] १ सृष्टि या विश्व की रचना करनेवाले, ३ एक प्रकार की वनस्पति । ४ प्लीहा का क्षेत्र । यकृत् ब्रह्मा । २ विष्णु । ३ शिव । प्रदेश (को०)। स्रष्टा--वि० १ सृष्टि करनेवाला । निर्माता । रचयिता । टपकने या स्रव-सज्ञा पुं० [स०] १ वहना। वहाव । प्रवाह । २ झरना। चूनेवाला २ स्राव करनेवाला (को॰) । निर्भर । प्रस्रवण । ३ मन । प्रस्राव । पेशाब । ४ क्षरण। स्रष्टार--पज्ञा पुं० [म०] सृष्टिकर्ता । दे० 'स्रष्टा' [को०] । स्राव (को०)। स्रव'-सज्ञा पुं॰ [स० श्रवण] दे० 'श्रवण' । स्रष्ट्रता--सज्ञा स्त्री० [सं०] दे० स्रष्ट्रत्व' । स्रवण'-सज्ञा पुं॰ [स०] १. वहना । वहाव । प्रवाह । २ कच्चे गर्भ स्रप्ट्रत्व--सहा पु० [स०] स्रष्टा का कार्य । सृष्टि करने या रचने का गिरना । गर्भपात । गर्भस्राव । ३. मूत । मूत्र । पेशाब । ४. पसीना । प्रस्वेद । धर्मविंदु । स्रसतर-सञ्ज्ञा पुं० [सं० स्रस्तर] घास पात का विछावन । (डिं०) । स्रवण-सज्ञा पुं० [स० श्रवण] दे० 'स्रवन' । स्रस्त--वि० [स०] १ गिरा हुप्रा । पतित । च्युत । २ शिथिल । स्त्रवत्-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] वहता हुआ । चूता हुआ [को॰] । ढीलाढाला। ३ हिलता हुआ । ४ धंसा हुआ, जैसे-त्रस्त स्रवत्तोया- या-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं०] रुदती । रुद्रवती । नेन । ५ अलग किया हुआ। स्रवत्पाणिपादा---सशास्त्री० [स०] वह स्त्री जिसके हाथ पैर (पसीने से) सस्तकर-वि० [स०] १ जिसकी सूंड हिल रही हो २ जिसका हाथ गीले रहते हो [को०] । हिल रहा हो [को०)। स्रवद्गर्भा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] वह स्त्री या गाय आदि पशु जिसका गर्भ स्रस्तगात्र-वि० [सं०] १ जिसके शिथिल अग हो । ढीले अगोवाला गिर गया हो। २ मूछित । बेहोश (को०] । का काम।