पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/६९

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स्लिप स्रुतिमाय ५३६१ कीति' । उ०—माडवी युतिकीत्ति उर्मिला कुरि लई हँकारि स्रोतयापत्ति-सशा स्त्री० [स०] बौद्ध शास्त्र के अनुमार निर्वाण माधना के।—तुलसी (शब्द०)। की प्रथम अवस्था जिसमे सासारिक वधन शिथिल होने सुतिमाथ-सचा पु० [स० श्रुति + मस्तक] विष्णु । उ०-छीर- लगते है। सिंधु गवने मुनिनाथा। जहँ बस श्रीनिवास स्रुतिमाथा। स्रोतग्रापन्न- वि० [सं०] जो निर्वाण साधना की प्रथम अवस्था पर तुलसी (शब्द०)। पहुँचा हो। स्रुव-सञ्ज्ञा पु० [स०] ३० 'नुवा' । स्रोतईश-सञ्ज्ञा पुं० [स०] नदियो का स्वामी, समुद्र । सागर । वतरु--सज्ञा पु० [सं०] विककत वृक्ष । स्रोतनदीभव-सञ्ज्ञा पु० [स०] यमुना मे उत्पन्न अजन । सुरमा [को०] । स्रवदड-सज्ञा पुं॰ [स० स्रुवदण्ड] स्रुवा का दड या हत्या। स्रोतपत-सज्ञा पु० [स० स्रोत + पति] समुद्र। (डि०) । स्रवद्रुम-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'दृवतरु' । स्रोतस्य--सज्ञा पु० [स०] १ शिव का एक नाम । २ चोर । चौर । स्रुवप्रग्रहण-वि० [म०] जो सब कुछ अपने लिये रख ले । सब कुछ स्रोतस्वती-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स०] नदी । स्वय ले लेनेवाला [को०) । स्रोतस्विनी--सज्ञा स्त्री० [स०] नदी। स्रुवहस्त-सज्ञा पुं० [स०] शिव को । स्रोतजान-सज्ञा पुं॰ [म० स्रोताञ्जन] दे० 'स्रोतोऽजन' । स्रुवहोम -सञ्ज्ञा पुं० [स०] स्रुवा द्वारा किया हुआ हवन या आहुति । स्रोता--सञ्ज्ञा पु० [स० श्रोता] दे॰ 'श्रोता' । उ०-ते स्रोता वकता सुवा-सधा-स्त्री॰ [स०] लकडी की बनी हुई. एक प्रकार की छोटी समसीला । समदरसी जानहिं हरिलीला।—तुलसी (शब्द०)। करछी जिससे हवनादि मे घी की आहुति देते है । सुरवा । उ० स्रोतापत्ति-मज्ञा श्री० [सं०] दे० 'स्रोतआपत्ति' । चाप उवा सर आहुति जानू । कोप मोर अति घोर कृसानू ।-- स्रोतोऽजन-सञ्ज्ञा पु० [म० स्रोतोऽञ्जन] अाँखो मे लगाने का एक तुलसी (शब्द०)। प्रकार का सुरमा। विशेष—इस अर्थ मे हिंदी मे यह शब्द प्राय पुल्लिग बोला स्रोतोनुगत-सज्ञा पु० [स०] एक प्रकार की समाधि । (बौद्ध)। जाता है। स्रोतोज-सज्ञा पुं० [स.] अाँखो मे लगाने का सुरमा । २ झरना । निर्भर (को०) । ३ सलई । शल्लकी वृक्ष । ४ मरोड- स्रोतोजव-सञ्ज्ञा पुं० [२०] स्रोत का वेग । धारा का बहाव । फली । मूर्वा । स्रोतोद्भव-सज्ञा पुं॰ [स०] सुरमा । सुवा वृक्ष-सज्ञा पु० [स०] विककत वृक्ष [को०] । स्रोतोनदीभव-सज्ञा पुं० [स०] दे० 'स्रोतनदीभव' । -सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] १ लकडी की बनी हुई एक प्रकार की छोटी स्रोतोवह-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] नदी। करछी जिससे हवनादि मे घी की आहुति देते है । स्रुव स्रोतोवहा -सञ्ज्ञा स्त्री॰ [म०] नदी। सुवा । सुरवा । २ झरना । निर्भर । स्रोन'--सञ्ज्ञा पु० [स० श्रवण]' । दे० 'श्रवण' । उ०--जीह कहै 2-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० श्रेणी] दे० 'श्रेणी' । उ०--देव दनुज किन्नर बतियाँई कियो करी स्रोन कहै, उनही की सुनीजै ।- नर स्रनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी। —तुलसी (शब्द॰) । रसकुसुमाकर (शब्द०)। स्रय-सज्ञा पुं० [स० श्रेय] दे॰ 'श्रेय' । उ०--जदपि स्रोन--सबा . [२] रवत । शोणित । सहि, चहत जासु जग त्रेय । तदपि धरम धुर धरन को, लहि स्रोनित-पक्षा पु० [सं० श्रोणित] रयत । दे० 'शोणित'। उ०-मारि कछु अहै अदेय ।--पोद्दार अभि० ग्र०, पृ० ४६१ । तरवारि प्रान पर के निकारि लेत, भल्ल डारि भर भूमि स्रोनित सेनी- -सज्ञा श्री० [स० श्रेणी] दे॰ 'श्रेणी' । उ०-बन्यो हे जलज के ठोप सो।--गोपाल (शब्द०)। नैनी खेला छुटी हे रग की धार ।-नद० ग्र०, पृ० ३६५ । सौग्मत-मना पु० [स०] एक साम का नाम । स्रोत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] झरना । सोता। जलप्रवाह । दे० 'स्रोत" । स्रौघ्निका-मचा स्त्री॰ [स०] सज्जी। सर्जिका क्षार । स्रोत'-सञ्ज्ञा पुं० [सस्रोतस्] १ पानी का बहाव या झरना। स्रोत-सञ्ज्ञा पुं० [स०] एक साम का नाम । जलप्रवाह । धारा । २ नदी। ३ वैद्यक के अनुसार शरीरस्थ सौतिक-सज्ञा ॰ [स०] सीप । शुक्ति । छिद्र या मार्ग जो पुरुषो मे प्रधानत ६ और स्त्रियो मे ११ स्रोतोवह--वि० [स०] धारा या नदी सवधी को०] । माने गए है। इनके द्वारा प्राण, अन्न, जल, रस, रक्त, मास, मेद, मल, मूत्र शुक्र और आर्तव का शरीर में सवार होना स्रौन'--सज्ञा पु० [स० श्रवण] श्रवण। कान । उ.--पूरन न होत स्रीन वाकी सुन बात ते ।-नट०, पृ० ६२ । माना जाता है । ४ वशपरपरा । कुलधारा । ५ मि । तरग । स्रौन-सज्ञा पुं० [स०] शोणित । रक्त । लहर (को०)। ६ जल (को०)। ७ ज्ञानेद्रिय (को०)। ८ हाथी स्रौव-वि० [स०] १ यज्ञ सवधी । २. जुवा का । नुवा सबंधी । की सूंड (को०)। ६ तीव्र गति या वेग (को०) । १० पशुप्रो के शरीर का छेद (को०) । ११ गति । गमन (को०) । स्लिप-सञ्ज्ञा स्त्री० [अ०] १ परचा । चिट । २. कागज का लवा टुकड़ा 1 स्रेनी वल्लभ