पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७१

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स्वकीय स्वच्छंदतावादी स्वकीय-वि० [स०] १ अपना । निज का । २ अपने कुटु व स्वगोचर-वि० [स०] अपना विषय [को०] । या गोन का। स्वगोप--वि० [स०] अात्मरक्षित [को०] । स्वकीया--सज्ञा मी० [स०] १ अपनी विवाहिता स्त्री । पत्नी । २ स्वग्रह--सक्षा पु० [स०] बालको को होनेवाला एक प्रकार का रोग । साहित्य मे नायिका के दो प्रधान भेदो मे से एक । वह नायिका स्वचर-वि० [स०] अपने आप चलनेवाला (को॰] । या स्त्री जो अपने ही पति मे अनुराग रखनेवाली हो। स्वचित्तकारु-सज्ञा पुं० [स०] कौटिल्य के अनुसार वह शिल्पी जो विशेष--स्वकीया दो प्रकार की कही गई है--१ ज्येष्ठा और किसी श्रेणी के अतर्गत होते हुए भी स्वतत्र रूप से काम करता २ कनिष्ठा । अवस्थानुसार इनके तीन और भेद किए गए है- हो । स्वतन्त्र कारीगर । (को०)। मुग्धा, मघ्या और प्रौढा । (विशेष दे० ये शब्द)। स्वच्छद'--वि० [स० स्वच्छन्द] १ जो किसी दूसरे के नियन्त्रण मे न हो स्वकुल-सज्ञा पुं० [म०] अपना कुल, खानदान या वश । और अपनी ही इच्छा के अनुसार सब कार्य करे। स्वाधीन । स्वकुलक्षय--सज्ञा पुं० [स०] मत्स्य । मछली (जो अपने वश का स्वतन्त्र । आजाद । उ०--(क) सवहि भांति अधिकार लहि आप ही नाश करती है)। अभिमानी नृप चद । नहिं सहिहै अपमान सब, राजा होइ स्वकुल्य-वि० [स.] अपने खानदान या वश का [को०] । स्वच्छद ।- हरिश्चद्र (शब्द॰) । (ख) सुख सो ऐसो मोद रमै रीते मन माही । विघ्न, ईरषा, अवधि रहित स्वच्छद स्वकृतभुक्--वि॰ [स० स्वकृतम्भुज] अपने किए को, प्रारब्ध को भोगने वाला (को०] । सदाही ।--श्रीधर (शब्द०) । (ग) कुतुबुद्दीन ऐवक के समय तक यह स्वच्छद राज्य था । बालकृष्ण (शब्द०)। स्वकृत--सज्ञा पुं० [स०] अपना कर्तव्य । अपना काम (को०। २ अपने इच्छ नुसार चलनेवाला । मनमाना काम करनेवाला। स्वक्त--वि० [स०] अच्छी तरह लिप्त (को०] । निरकुश । ३ (जगलो आदि मे) अपने आपसे होनेवाला। स्वक्ष@--वि॰ [स० स्वच्छ) दे० 'स्वच्छ' । उ०--अति स्वक्ष सुदर जगली (पौधा या वनस्पति)। हेम फटिक की शिला गसि के गली ।--गुमान (शब्द०) । स्वच्छद-सज्ञा पुं० १ स्कद का एक नाम। २ अपना मनोरथ । स्वक्षा--वि० [स] १ सुदर आँखोवाला। २ जिसका अक्ष या धुरा अपनी पसद (को०)। सुदर हो। ३ जिसके अवयव पुष्ट एव पूर्ण हो (को०] । स्वच्छद-क्रि० वि० मनमाना। बेधडक । निर्द्वद । स्वतन्त्रतापूर्वक । स्वक्ष--सशा पु० १ एक प्राचीन जाति । २ वह रथ जिसका धुरा उ०—(क) बालक रूप ह के दसरथसुत करत केलि स्वच्छद । अच्छा हो किो०]। --सूर (शब्द॰) । (ख) इस पर्वन की रम्य जटी मे मैं स्वक्षत्र-वि० [स०] १ जिसमे सहजात या प्राकृतिक शक्ति हो। स्वच्छद विचरता हूँ।--श्रीधर (शब्द)। २ जो स्वाधीन हो । [को०। स्वच्छदचर--वि० [स० स्वच्छन्दचर ] आजाद । स्वतन्त्र [को०] । स्वगत'-सज्ञा पु० [सं०] दे० 'स्वगतकथन' । स्वच्छदचारिणी-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० स्वच्छन्दबारिणी) वारस्त्री। स्वगत'- वि०१ अपने आपमे या अपने प्रति कहा हुआ । २ गणिका । वेश्या। रडी। निजी। व्यक्तिगत । ३ ग्रात्मीय । अपना। स्वच्छदचारी--वि० [स० स्वच्छन्दचारिन् ] [ वि० सी० स्वच्छद- स्वगत'-क्रि० वि० आप ही आप (कहना या बोलना) । इस प्रकार चारिणी ] अपने इच्छानुसार चलनेवाला । स्वेच्छाचारी। (कहना या बोलना) जिसमे और कोई न सुन सके । अपने मनमौजी। आपसे । स्वच्छदता-सज्ञा स्त्री॰ [ १० स्वच्छन्दता ] स्वच्छद होने का भाव । स्वगतकथन-सञ्ज्ञा पु० [स०] नाटक मे पान का आप ही आप स्वतन्त्रता। आजाद।। बोलना। स्वच्छ्दतावाद--सञ्ज्ञा पु० [स० स्वच्छन्दता + वाद (अ० रोमाटिसिज्म)] विशेप--जिस समय रगमच पर कई पात्र होते हैं, उस समय यदि नवीनता, वैयक्तिकता, असाधारणता, भव्यता आदि के चित्रण उनमे से कोई पान अन्य पात्रो से छिपाकर इस प्रकार कोई को काव्य का प्रधान लक्षण मानने का सिद्धात जिसके बात कहता है, मानो वह किसी को सुनाना नही चाहता और अनुसार रचना मे परपरा और नियम का विरोध तथा न कोई उसकी बात सुनता ही है, तो ऐसे कथन को स्वगत, अस्पष्टता को प्रश्रय दिया जाता है । उ.--काव्य की स्वगतभाषण, अश्राव्य या आत्मगत कहते है। पुरानी बँधी रूढियो को हटाकर केवल मुक्त कल्पना और स्वगति--सज्ञा स्त्री० [स०] एक प्रकार का छद [को॰] । भावो की अप्रतिबद्ध गति को लेकर योरप मे स्वच्छदतावाद स्वगुप्त-वि० [पु०] आत्मरक्षित [को० । ( रोमाटिसिज्म ) का प्रचार हुा ।--चिंतामणि, भा० २, स्वगुप्ता--सचा त्री० [स०] १ कोछ। केवांछ । २ लजालू । लज्जालू । पृ० १०८। स्वगृह-सहा पुं० [सं०] १ कलिकार नामक पक्षी । २ अपना गृह । स्वच्छदतावादी--वि० [म० स्वच्छन्दता + वादिन् ] स्वच्छदतावाद अपना घर (को०)। का सिद्धात माननेवाला ।