पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७४

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स्वधर्माभिमानी स्वपच स्वधर्माभिमानी--वि० [स० स्वधर्म + अभिमानिन्] जिसे अपने धर्म स्वधीत'-स्था पुं० अच्छी तरह पढा हुआ शास्त्र किो०) । पर अभिमान हो । उ०-तो किमी स्वदेश, स्वजाति व स्वधर्मा- स्वधीति- सज्ञा पुं० [सं०] १ उत्तम वेदपाठी या ब्रह्मचारी [को॰] । भिमानी आर्य सनान की ममझ मे ।-प्रेमघन० भा०२, स्वधीनg-वि० [स० स्वाधीन] दे० 'स्वाधीन' । उ०-भूमि सकि पृ०२५६। स्वधीन पुन्य तनय देवा रहस्य मन ।-पृ० रा०, ११४७८ । स्वधा'-अव्य० [सं०] एक शब्द या मन जिमका उच्चारण देवताओ स्वधुर्-वि० [सं०] जो पराधीन न हो । स्वाधीन किो०] । या पितरो को हवि देने के समय किया जाता है। स्वनदा-सज्ञा स्त्री॰ [स० स्वनन्दा] दुर्गा । विशेप-मनु के अनुसार श्राद्ध के उपरात स्धा का उच्चारण स्वन-सज्ञा पुं० [स०] १ शब्द । ध्वनि । आवाज । जैसे, शख स्वन। श्राद्ध कर्ता के लिये बडा आशीर्वाद है। उ०-सुरगन मिलि जय जय म्वन कीन्हा। असुरहि कृष्ण परम स्वधा--सज्ञा स्त्री०१ पितरो को दिया जानेवाला अन्न या भोजन । पद दीन्हा ।--गोपाल (शब्द०) २ एक प्रकार की अग्नि (को॰] । पितृ अन्न । उ०—मेरे पीछे पिड का लोप देख मेरे पुरखे स्वधा इकट्ठी करने मे लगे हुए, श्राद्ध मे इच्छापूर्वक भोजन नही स्वन-वि० बुरा शब्द करनेवाला (को०] । करते । लक्ष्मण (शब्द॰) । २ दक्ष की एक कन्या जो पितरो स्वनचक्र-सज्ञा पुं० [४०] एक प्रकार का सभोग आसन या रतिवध । की पत्नी कही गई है। ३ अपनी प्रकृति या स्वभाव । अपनी स्वनाभक-सज्ञा पुं० [स०] एक प्रकार का अस्त्र-सचालन-मन [को०] । इच्छा या रुचि (को०)। ४ अन्न या पाहुति (को०)। ५ पितरो स्वनाम–सञ्चा पु० [सं० स्वनामन्] अपना नाम या अभिधान । को दी जानेवाली आहुति या हवि (को०)। ६ अपना अश या स्वनामधन्य-वि० [स०] अपने नाम के कारण धन्य होनेवाला । जो भाग (को०)। ७ श्राद्ध। मृतककर्म (को०)। ८ सासारिक अपने नाम के कारण धन्य हो। जैसे,—स्वनामधन्य ५० वाल भ्रम । माया (को०)। गगाधर तिलक। स्वधाकर-वि० [स] श्राद्ध करनेवाला । श्राद्धकर्ता। स्वनामा--वि० [स० स्वनामन्] जो अपने नाम के कारण प्रसिद्ध हो । स्वधाकार'-वि० [स०] दे० 'स्वधाकर'। अपने नाम से विख्यात होनेवाला। स्वधाकार-सज्ञा पु० स्वधा शब्द का उच्चारण । स्वनाश-सज्ञा पु० [सं०] अपना नाश । अपने पक्ष का विनाश [को॰] । स्वधानिनयन-सज्ञा पुं० [सं०] पितरो के निमित्त हवि बनाते समय प्रयोग मे आनेवाला सून या सूक्त मन (को॰] । स्वनि-सज्ञा पुं० [स०] १ शब्द । आवाज । २ अग्नि। आग । स्वधाधिप-सज्ञा पुं॰ [स०] अग्नि । स्वनिक-वि० [सं०] ध्वनि या शब्द करनेवाला । जैसे, पाणिस्वनिक = स्वधाप्रिय-संज्ञा पुं० [सं०] १ अग्नि । २ काला तिल । ३ पितृगण । हथेलियो को बजाने वाला (को०] । पितर जिन्हें स्वधा प्रिय हैं (को०)। ४ पितृलोक (को॰) । स्वनिघ्न-वि० [०] अपने तई रहनेवाला । अपने भरोसे रहनेवाला । स्वधाभुक्-पज्ञा पु० [अ० स्वधाभुज्] १ पितर । २ देवना । आत्मनिर्भर (को॰] । स्वधाभोजी-सज्ञा पुं० [स० स्वधाभाजिन्] १ पितर । पितृगण । स्वनित'--वि० [स०] ध्वनित । शब्दित । २ देवता । देवगरण (को०)। स्वनित-सज्ञा पु०१ शब्द । ध्वनि । आवाज । २ मेघगर्जन। वादलो स्वधामन्-सधा पुं० [स०] १ भागवत के अनुसार सूनृता के एक पुत्र की गडगडाहट । ३ गर्जन । गरज । का नाम । २ तृतीय मन्वनर का एक देवगण [को०] । स्वनिताह्वय-सज्ञा पु० [सं०] चौलाई का शाक । तडुलीय शाक । स्वधाशन- सञ्ज्ञा पु० [स०] पितर । पितृगण । स्वनिर्मित--वि[म.] स्वय का बनाया हुआ। जिसे खुद निर्मित स्वधित वि० [स०] दृढ। ठोस (को०] । किया गया हो। उ०--जब आकर्षक बहुत न थे प्रासाद स्वधिति-सज्ञा पुं०, स्त्री॰ [म०] १ कृत्हाडी। कुठार । २ वज्र । ३ मनोहर, जब प्रिय थे अत्यत स्वनिर्मित बालू के घर।- आरा (को०)। ४ कडी लकडियोवाला एक विशाल वृक्ष (को॰) । स्वधितिहेतिया--सज्ञा पु० [८०] परशुधारी योद्धा। कुठार धारण स्वनोत्साह सज्ञा पु० [म०] गैडा। गडक। करनेवाला सैनिक। स्वन्न--मधा पुं० [स० सु+ अन्न] सुग्रन्न अच्छा । भोजन । अच्छा स्वधिती-समा स्त्री० [न०] दे० 'स्वधिति' (को० । आहार [को०)। स्वधिष्ठान-वि० [स०] जो अच्छी स्थिति मे हो । जो अच्छे स्थान स्वपक्ष-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १ अपना पक्ष । अपना दल । २ मित्र । से युक्त हो। जैसे, युद्धरय । दोस्त । ३ किसी विषय पर अपना विचार या पक्ष किो०] । स्वधिष्ठित-वि० [म.] १ जो ठहरने या रहने के लिये उत्तम हो । स्वपक्षीय-वि० [म०] जो अपने दल या विचार का हो । २ मित्र । २ अच्छी तरह सधाया वा मिखाया हया [को०] । सखा। सहाय। स्वधीत'-वि० [मं०] गच्छी तरह पढा हुग्रा । सम्यक् रूप से अध्ययन स्वपच--सज्ञा पु० [स० श्वपच] दे० 'श्वपच' । उ०-स्वपच सवर खम जमन जड पावर कोल किरात । राम कहत पावन परम होत भुवन विख्यात ।-तुलसी (शब्द॰) । सागरिका, पृ० २१ । किया हुआ।