पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७५

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स्वपण ५३८७ स्वप्न विचार म्वपण-सज्ञा पुं॰ [म०] अपना भटार या द्रव्य [को०)। स्वप्नगृह--मज्ञा पुं० [सं०] नाने का कमग। शयनागा । शवनगृह । स्वपन--सज्ञा पुं० [सं०] १ नीद । निद्रा । २ मपना । स्वप्न । स्वाव । स्वप्नज-मज्ञा पुं० [0] स्वप्न । गपना [को० । ३ त्वचा की मज्ञाहीनता (को०)। स्वप्नज- वि० नीद मे उत्पन्न [को०] । स्वपना@f-संज्ञा पुं० [सं० स्वपन, स्वप्नन,] दे० 'सपना' या यौ०-स्वप्नज भान - दे० 'स्वप्नज्ञान' । 'स्वप्न' । उ०--स्वपना मे ताहिं राज मिलो है हाकिम हुकुम स्वप्नन--सञ्ज्ञा पुं० [सं०] स्वप्न का फल जाननेवाना। शकुनन । दोहाई । जागि पर कहूँ लाव न लसकर पलक खुले सुधि ज्योतिपी। पाई |--कबीर (शब्द०)। स्वपनीय--वि० [सं०] निद्रा के योग्य । सोने लायक । स्वप्नज्ञान--सा पुं० [सं०] स्वप्न मे होनेवाला नान या अनुभूति [को०] । स्वप्नत द्विता-तज्ञा स्त्री॰ [स० स्वप्नतन्द्रिना] निद्रा या स्वप्नजन्य बालस्य । स्वपरमडल-सशा पुं० [म० स्वपरमण्डल] अपने और शन्नु के सहायक देश या राज्य [को०)। स्वप्नदर्शन-सज्ञा पुं० [सं०] स्वप्न देख ना । स्वाब देखना (को॰] । स्वपिडा-सज्ञा स्त्री० [सं० स्वपिण्डा] पिंड खजूर । पिंड खर्जुरी। स्वप्नदर्शी-वि० [स० स्वप्नदर्शिन्] १ स्वप्न देखनेवाला । २ वडी बडी कल्पनाएँ करनेवाला । मनमोदक सानेवाला। स्वप्तव्य-वि० [सं०] निद्रा के योग्य । स्वप्न--सज्ञा पुं॰ [सं०] १ सोने की क्रिया या अवस्था । निद्रा । नीद । स्वप्नदृक्---वि० [स• स्वप्नदृश् ] १ निद्रा से जिमके नेन मुंद गए २ निद्रावस्था मे कुछ मूर्तियो, चित्रो और विचारो आदि की हो । निद्रित । निद्रायुक्त । २ जो स्वप्न देखता हो। सपना देखनेवाला किो॰] । सबद्ध या असबद्व शृखला का मन मे पाना । निद्रावस्था मे कुछ घटना आदि दिखाई देना । जैसे,--इधर कई दिनो से मैं भीपण स्वप्नदोप-सञ्ज्ञा पुं० [सं० ] निद्रावस्था मे वीर्यपात होना जो एक स्वप्न देखा करता हूँ। ३ वह घटना आदि जो इस प्रकार निद्रित प्रकार का रोग माना जाता है । अवस्था मे दिखाई दे अथवा मन मे पावे । जैसे,—उन्होने अपना विशेप-स्वप्नावस्था मन्त्रीप्रसग या कोई कामोद्दीपक दृश्य देखकर मारा स्वप्न कह सुनाया। अथवा यो ही दुर्वलेद्रिय लोगो का प्राय वीर्यपात हो जाता है। विशेप-प्राय पूरी नीद न आने की दशा मे मन मे अनेक प्रकार के यह एक भयकर रोग है जो अधिक स्त्रीप्रसग या प्रस्वाभाविक विचार उठा करते है जिनके कारण कुछ घटनाएं मन के सामने कर्म से धातुक्षीणता होने के कारण होता है। कभी कभी उपस्थित हो जाती हैं। इसी को स्वप्न कहते है । यद्यपि वास्तव बहुत गरम चीज खाने और कोप्ठवद्वता से भी स्वप्नदोप हो जाता है। मे उस समय नेत्र बद रहते है और इन बातो का अनुभव केवल मन को होता है, तथापि बोलचाल मे इसके साथ 'देखना' स्वप्नधीगम्य-वि० [स०] जो स्वप्नज ज्ञान द्वारा बोधगम्य हो । जो प्रिया का प्रयोग होता है। स्वप्न या निद्रा जैसी स्थिति मे अनुभून हो किो०] । ४ शिथिलता। अकर्मण्यता । निरुत्साह । आलस्य (को॰) । स्वप्ननशन- सशा पु० [ स० ] (निद्रा का नाश करनेवाले) सूर्य । ५ मन मे उठनेवाली ऊँची कल्पना या विचार, विशेपत ऐसी स्वप्ननिकेतन-सज्ञा पुं० [मं० ] मोने का कमरा । शयनगृह । शयनागार। कल्पना या विचार जो सहज मे कार्य रूप में परिणत न हो सके। जैसे,-पाप तो बहुत दिनो से इसी प्रकार के स्वप्न स्वप्ननिदर्शन-सज्ञा पुं० [स०] स्वप्न देखना । स्वप्नदर्शन [को०] । देया करते है। स्वप्नप्रपच-सज्ञा पुं० [सं० स्वप्नप्रपञ्च] स्वप्न मे दृश्यमान् जगत् । मुहा०-स्वप्न टूट जाना = (१) नीद से जाग उठना। (२) स्वप्न मे दिखाई पडनेवाला ससार (को०] । कल्पना लोक से यथार्थ में उतर पाना। स्वप्नभाक्--वि० [सं० स्वप्न भाज् ] स्व'न या नीद मे पडा हुया । स्वप्नक्-वि० [सं० स्वप्नज्] सोनेवाला। निद्राशील । मपना देखता या सोया हुआ। स्वप्नकर-वि० [सं०] नीद लानेवाला। जिससे नीद पाए ।को॰) । स्वप्नमाणव--मशा पुं० [मं०] स्वप्न ग निद्रापूर्ण करनेवाला मन्त्र या स्वप्नकल्प--वि० [स०] सपने के समान । सपने जैसा। स्वप्न के विधि (को०] । स्वप्नमाणवक-मज्ञा पुं० [१०] २० 'स्वप्नमाणव' । स्वप्नकाम--वि० [सं०] जो सोना चाहता हो । निद्रातुर [को०] । स्वप्नलब्ध--वि० [सं०] जो स्वप्न में प्राप्त हो। जो निद्रा में प्राप्न स्वप्नकृत्--सज्ञा पुं० [स०] स्वप्न अर्थात् नीद लानेला,वा या लन्ध हो [को०) । शिरियारी । सुनिषण्ण क शाक । स्वप्नविकार-मा पुं० [सं०] स्वप्नजनित परिवर्तन। निद्राजन्य विशेप--हते है, इस शाक के खाने से नीद आती है, इसी विकृति [को०] । से इगवा नाम स्वप्नकृत् (नीद लानेवाला) पडा। स्वप्नविचार-सा पुं० [म.सपने के शुभाशुभ विचार या स्वप्नगत-वि० [म०] मोया हया । निद्रायस्त । विवेचन करनेना ने प्रथादि । हिं० श० ११-८ मदृश [को०] ।