पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७७

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स्वभू स्वयंप्रकाशमान विशेप-किसी की जाति, गुण, क्रिया के अनुसार उसके स्वभाव स्वयजात-वि० [स० स्वयम्जात] जो स्वय उदभूत हो। अपने आप के वर्णन को स्वभावोक्ति अलकार कहते है । इसके दो भेद उत्पन्न होनेवाला (को०] । कहे गए हैं--सहज और प्रतिज्ञाबद्ध । जहाँ किसी विषय का स्वयज्योति'-सया पुं० [सं० स्वयम्ज्योतिस्] परमेश्वर । परमात्मा । विलकुल सहज और स्वाभाविक वर्णन होता है, वहाँ सहज स्वयज्योति'-वि० अपने आप प्रकाशित होनेवाला [को०] । स्वभावोक्ति अलकार होता है और जहाँ अपने सहज स्वभाव के स्वयदत्त'-सज्ञा पुं० [सं० स्वयम्दत्त] वह पुत्र जो अपने मातापिता के अनुसार प्रतिज्ञा या शपथ आदि के साथ कोई बात कही जाती मर जाने अथवा उनके द्वारा परित्यक्त होने पर अपने आपको है, वहाँ प्रतिज्ञाबद्ध स्वाभावोक्ति होती है । उ०--(क) सीस किसी के हाथ सौप दे और उसका पुन वन जाय। मुकुट कटि काछनी कर मुरली उर माल । यहि बानक मो उर सदा बसी विहारीलाल । (सहज)। (ख) तोरौ छनक दड जिमि स्वयदत्त'-वि० अपने को स्वय दे देनेवाला (को॰) । तुव प्रताप बलनाथ । जो न करो प्रभु पद सपथ पुनि न धरौं स्वयदान-मज्ञा पुं० [सं०स्वयम्दान] स्वेच्छामूलक दान । जैसे-विवाह मे कन्या का दान [को०] । धनु हाथ । (प्रतिज्ञावद्ध)। स्वभू 1-सज्ञा पुं० [स०] १ ब्रह्मा का एक नाम । २ विष्णु का एक स्वयदूत-सञ्ज्ञा पुं० [स० स्वयम्दूत] वह नायक जो अपना दूतत्व आप ही नाम ।३ शिव का एक नाम । करे । नायिका पर अपना कामवासना स्वय ही प्रकट करनेवाला स्वभू २--सज्ञा स्त्री० अपना देश । स्वदश (को०] । नायक । उ०-जपत हूँ ता दिन सो रघुनाथ की दोहाई जा दिन सो स्वभू'---वि० जो अपने आपसे उत्पन्न हुआ हो । आपसे आप होनेवाला। सुन्यो है मैं प्यारी तेर नाम को । सोई भयो सिद्धि आजु औचक मिलो हौ मोहि ऐमी दुपहरी मे चलो हो काहू काम को। यह स्वभूति-सज्ञा स्त्री॰ [स०] अपना ऐश्वय । अपना कल्याण [को०] । वर माँगत हौं मेर पर कृपा करि मेरी कहो कीजै सुख दीजें स्वभूमि----सञ्ज्ञा पुं० [सं०] विष्णु पुराण के अनुसार उग्रसेन के एक तन छाम का । यह सुख ठाम को आराम को निहारो नेक मेरे पुत्र का नाम । कहे घरिक निवारि लार्ज घाम को।-रघुनाथ (शब्द०)। स्वभूमि २--सञ्ज्ञा स्त्री० स्वभू । अपना देश (को०] । स्वयदूती--सञ्चास्त्री॰ [८० स्वयमदूतो] वह परकोया नायिका जो अपना दूतत्व स्वमनीषा-सञ्ज्ञा स्त्री० [स०] अपनी बुद्धि, मत या विचार (को०] । आप ही करतो हो । नायक पर स्वय ही वासना प्रकट करने- स्वमनीषिका-सक्षा स्त्री॰ [स०] उदासीनता । नि सगता। तटस्थता [को॰] । वाली नायिका । उ०--ऐसे बने रघुनाथ कहै हरि कामकलानिधि स्वमेक-~-सञ्ज्ञा पुं० [स०] सवत्सर वर्ष । के मद गारे । झाँकि झरोखे सो आवत देखि खरी भई ग्राइक स्वय-प्रव्य० [स० स्वयम् १ खुद । आप । उ०- -(क) मैं स्वय आपने द्वारे। रीझि सरूप सो भीजी सनेह सो बोली हरें रस तुम्हारे साथ चलकर देखूगा कि इस पहली परीक्षा मे कसे आखर भारे । ठाढ़ हो तासो कहोगी कछू अरे ग्वाल बडो बडी उतरते हो।-अयोध्या० (शब्द०)। (ख) आप स्वयं अपनी ऑखिनवारे ।--सुदरोसवस्व (शब्द०)। कृपा से सब जीवो मे प्रकाशित हूजिए।--दयानद (शब्द०)। स्वयदृक्-वि० [सं० स्वयम्दृश् ] अपने आप व्यक्त या प्रकट होने- २ आपसे आप। अपने ही से । खुद वखुद । जैसे,—आपके वाला (का० । सब काम तो स्वय ही हो जाते है। स्वयदेव-सबा पुं० [सं० स्वयम्देव] साक्षात् या प्रत्यक्ष देवता (को०] । स्वयकृत'--वि० [सं० स्वयम्कृत, १ स्वय या खुद किया हुआ । प्रात्मकृत। स्वयपतित--वि० [• स्वयम्पतित जो आपसे आप गिरे। जेस- २ प्राकृतिक । स्वाभाविक । ३ गोद लिया हुआ [को०)। वृक्ष मे पककर (आपस आप) गिरा हुआ फल । स्वयमृत'-सज्ञा पुं० गोद लिया हुआ लडका [को०] । स्वयपाको--० [स० स्वयम्पाकिन्] जा अपना भोजन स्वय बनाता स्वयकृती-वि० [स० स्वयम्कृतिन्] स्वभावत काम करनेवाला [को०] । हा। किसा दूसरे का बनाया हुआ भोजन न करनेवाला [को०] । स्वयकृष्ट-वि० [स० स्वयम्कृष्ट] स्वयकर्पित । खुद जोता हुआ [को०] । स्वयपाठ-संज्ञा पु० [सं० स्वयम्पाठ मूल पाठ (को०] । स्वयगुप्ता-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० स्वयम् गुप्ता] कौछ। केवाच । स्वयप्रकाश-सज्ञा पुं० [सं० स्वयम्प्रकाश] १ वह जो आप ही आप स्वयग्रह, स्वयग्रहण-सञ्ज्ञा पुं० [सं०स्वयम् ग्रह, स्वयम्ग्रहण] बलपूर्वक बिना किसी दूसरे को सहायता के प्रकाशित हो। उ०-(क) ग्रहण । वलात् ले लेना [को०) । जो आप स्वयप्रकाश और सूर्यादि तेजस्वी लोको का प्रकाश स्वयग्राह-वि० [स० स्वयम्ग्राह] १ बलात् ग्रहण करनेवाला । २ करनेवाला है, इससे उस ईश्वर का नाम 'तेजस' है।-सत्यार्थ० स्वय या इच्छानुसार चुननेवाला [को०] । (शब्द०) । (ख) सो उस परम शक्तिमान सवज्ञ स्वयप्रकाश स्वयग्राह-सञ्ज्ञा पुं० स्वय चुन लेना । स्वय ग्रहण करना (को॰] । परमात्मा के समीप जाते ही प्रश्न शक्ति से रहित काष्ठवत् मौन स्वयग्राहदान-सञ्ज्ञा पुं० [स० स्वयम्ग्राहदान] कौटिल्य के अनुसार सेना होके खड़ा रहा। केनोपनिषद् (शब्द०)। २ परमात्मा। आदि के द्वारा आपसे आप सहायता पहुंचाना । परमेश्वर । स्वयचालित-वि० [स० स्वयम्चालित] जो अपने आप सचालित हो। स्वयप्रकाश-वि० जो अपने आप प्रकाशित या ज्योतिर्मय हो। जैसे, स्वयचालित मशीन आदि । स्वयप्रकाशमान-सबा पु०, वि० [सं० स्वयम्प्रकाशमान] दे० 'स्वयप्रकाश'।