पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/७९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

स्वर स्वयवश ५३९५ करनेवाली स्त्री । पतिवरा । वर्या । उ०---ये हम लोगो के देश स्वयमागत--वि० [स०] १ बिना बुलाए दो व्यक्तियों के बीच दखल की प्राचीन स्वयवरा थी।--हिंदीप्रदीप (शब्द०)। देनेवाला । २ जो अपने आप पा गया हो [को०] । स्वयवश--वि० [म० स्वयम्वश] जो स्वाधीन हो। जिसपर किसी अन्य स्वयमानीत -वि० [स०] म्वय लावा हुा । जो किसी की सहायता का वश या अधिकार न हो। के विना खुद ब खुद लाया गया हो [को०] | स्वयवह'--संशा पु० [म० स्वयम्बह] वह बाजा जो चावी देने से प्रापसे स्वयमाहुत--वि० [म०] दे० 'स्वयमानीत' को०)। ग्राप वजे । जैसे,--परगन ग्रादि । यौल-स्वयमाहृत भोजन- स्वय ले आकर भोजन करनेवाला । स्वयवहर---वि० १ स्वयं अपने आपको धारण करनेवाला । जो अपने स्वमिंद्रियमोचन-सज्ञा पुं० [स० स्वयमिन्द्रियमोचन ] अपने पाप आपको वहन करे । २ स्वय गतिशोल । स्वय चलनेवाला। स्वय- वीर्यपात होना (को०] । चालित (को०)। स्वयमीश्वर-[स०] परमेश्वर, जो अपना ईश्वर स्वय है [को०) । स्वयवादि दोष-संज्ञा पुं० [स० स्वयम्वादि दोष] न्यायालय मे वात को बार बार दुहराने का अपराध । स्वयमीहितलब्ध--वि० [सं०] जो अपने प्रयत्न या चेप्टा द्वारा प्राप्त स्वयवादी-सञ्ज्ञा पुं॰ [स० स्वयम्वादिन् ] मुकदमे मे जिरह के समय हो । स्मृतियो के अनुसार अपने श्रम से उपजित (धन) । स्वयकृत चेष्टा से प्राप्त [को०)। किसी झूठ बात को बार बार दुहरानेवाला । स्वयविक्रीत-वि० [मै० स्वम्विक्रीत] (दाम आदि) जिसने स्वय हो स्वयमुक्ति 2-सज्ञा पु० [स०] पाँच प्रकार के साक्षियो मे से एक प्रकार अपने आपको वेचा हो। का साक्षी । वह साक्षी जो बिना वादी या प्रतिवादी के बुलाए स्वयविशीर्ण-वि० [स० स्वयम्विशीणं] अपने आप गिरा हुअा। जैसे, स्वय ही पाकर किसी घटना या व्यवहार आदि के सबध मे कुछ वृक्ष के पत्ते, फल आदि [को०] । कहे । (व्यवहार)। स्वयशृत--वि० [म० स्वयम्शृत] अपने आप पक्व [को०] । स्वयमुज्ज्वल-वि० [म०] स्वयप्रकाश (को०] । स्वयश्रेष्ठ-सशा पुं० [स० स्वयम्श्रेष्ठ] शिव । स्वयमुदित-वि० [स.] जो आपसे आप उदित हुप्रा हो किो०] । स्वयसयोग-सज्ञा पुं० [स० स्वयम्सयोग] वह सयोग या सबध जो स्वयमुद्गीर्ण-वि० [म०] जो म्यान या कोश से अपने आप बाहर पा अपने आप हो । स्वय होनेवाला विवाह प्रादि सवध (को॰] । गया हो। जैसे, असि [को०)। स्वयसिद्ध---वि० [स० स्वयसिद्ध] १ (वात) जो आप ही आप सिद्ध स्वयमुद्घाटित--वि० [स०] पाप आप खुल जानेवाला [को०] । हो। जिसकी सिद्धि के लिये और किसी तर्क, प्रमाण या उप स्वयमुपगत--सज्ञा पुं० [सं०] वह जो अपनी इच्छा से किसी का दास करण आदि की आवश्यकता न हो। जैसे,--याग से हाथ हो गया हो। जलता है, यह तो स्वयसिद्ध वात है । २ जिसने आप ही सिद्धि स्वयमुपस्थित-वि० [स०] जो स्वय उपस्थित हो। अपनी इच्छा से प्राप्त की हो। जो बिना किसी की सहायता के सिद्ध या सफल आया हुमा (को० ॥ स्वयमुपागत'- वि० [सं०] स्वेच्छा से आया हुआ [को०] । स्वयसेवक-सज्ञा पु० [ स० स्वयम्सेवक ] [स्त्री० स्वयसेविका] वह जो स्वयमुपागत:--सन्दा पुं० वह लडका जो स्वय दत्तक वन जाने के लिये विना किसी पुरस्कार या वेतन के किसी कार्य मे अपनी इच्छा कहे [को०। से योग दे। स्वेच्छासेवक । स्वयमुपेत--वि० [स०] दे० 'स्वयमुपस्थित' । स्वयसेविका--सज्ञा स्त्री॰ [स० स्वयम्सेविका] महिला स्वेच्छासेवक । स्वयमेव-कि० वि० [मं०] आप ही आप । खुद ही । स्वय ही। स्वयहारिका--संज्ञा स्त्री० [स० स्वयम्हारिका] पुराणानुसार दु सह की स्वयोनि-वि० [१०] जो अपना कारण अथवा अपनी उत्पत्ति का पत्नी निर्माष्टि के गर्भ से उत्पन्न आठ कन्यानो मे से एक । स्थान आप ही हो। विशेष-कहते है, यह भोजनशाला मे से अधपका अन्न, गौ के स्वर-संज्ञा पु० [सं०] १ स्वग। २ परलोक । ३ आकाश । अत- स्तन मे से दूध, तिलो मे से तेल, कपास मे से सूत आदि हरण रिक्ष। ४ तीन महाव्याहृतियो मे एक । तृतीय महाव्याहृति कर ले जाती है, इसी से इसका यह नाम पडा । (को०)। ५ सूर्य के ऊपर और ध्रुव के मध्य का स्थान । सूर्य स्वयमधिगत-वि० [स०] जिसे स्वय प्राप्त किया गया हो को०)। तथा ध्रुव का मध्यवर्ती क्षेत्र (को०)। ६ दीप्ति । प्रोज्वलता। स्वयमजित-सज्ञा पु० [म०] स्मृतियो के अनुसार वह धन सपत्ति काति । प्रकाश (को०)। ७ जल । सलिल (को०)। जो स्वय उपाजित की गई हो और जिसमे अपने किसी सबधी स्वर-मचा पु० [स०] १ प्राणी के कठ से अथवा किसी पदार्थ पर आघात या दायाद आदि को कोई हिस्सा न देना पड़े। खास अपनी पडने के कारण उत्पन्न होनेवाला शब्द, जिसमे कुछ कोमलता, कमाई हुई दौलत । तीव्रता, मृदुता, कटुता, उदात्तता, अनुदात्तता आदि गुण हो । स्वयमजित-वि० जिसका उपार्जन स्वय किया गया हो (को०] । जैसे,—(क) मैंने आपके स्वर से ही प्रापको पहचान लिया था। स्वयमवदीर्ण--सज्ञा पुं० [स०] १ वह जो अपने आप फट गया हो । (ख) दूर से कोयल का स्वर सुनाई पडा। (ग) इस छड को २ अपने पाप धरती फट जाने के कारण बना हुआ छिद्र या ठोकने पर कैसा अच्छा स्वर निकलता है। उ०-लै लै नाम रन (को० ॥ सप्रेम सरस स्वर कौसल्या कल कीरति गावै ।---तुलसी हुआ हो।