पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/९४

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स्वास ५४०६ स्वाति - स्वाँस-सझा मी० [ स० श्वान, हिं० मांस ] दे॰ 'साम' । उ०-पकज स्वागतप्रिया-सज्ञा पुं० [स० ] वह नायक जो अपनी पत्नी के परदेश मो मुख गो मुरझाइ लगी लपट मिस स्वास हिया की।-रमखान से लौटने से उत्साह पूण और प्रसन्न हो । (शब्द०)। स्वागतभापरण-सचा पुं० [स०] किसी विशिष्ट सामाजिक प्रायोजन स्वॉमा--सहा पुं० [देश॰] वह सोना जिसमे तावे का खोट मिला हो । के अवसर पर गठित स्वागतकारिणी सभा या समिति के ताँबे का खोट मिला हुमा मोना । अध्यक्ष का भापण (को०] । स्वाँसा-सदा पुं० [हिं० साँस ] दे० 'सांस' । उ०-स्वांसा सार स्वागतवचन--सज्ञा पुं॰ [सं०] किसी के आगमन पर स्वागत अर्थात् रच्यो मेरो साहब |--कवीर (शब्द॰) । 'स्वागत है' कहना किो०] । स्वाकार--मया पुं० [सं०] प्रकृति । स्वभाव [को०) । स्वागतसमिति-सच्चा स्त्री० [स० स्वागतसमिति ] दे० 'स्वागत- स्वाकार---दि० अपने स्पवाला । जिसका अपना रूप हो। २ सौम्य कारिणी सभा । प्राकृतिवाला। जो देखने मे शिष्ट एव प्रिय हो [को०] । स्वाकृति-वि० [ स० ] देखने मे सु दर । प्रियदर्शन (को०) स्वागता-सज्ञा सी० [ म० ] एक वृत्त का नाम जिमके प्रत्येक चरण मे (र, न, भ, ग, ग) is + Im+sil+ss होता है । यथा- स्वाक्त-संज्ञा पुं० [ स०] अाँख मे लगाने उत्कृष्ट अजन (को०] । रानि | भोगि गहि नाथ कन्हाई। साथ गोपजन प्रावत स्वाक्षपाद-सा पुं० [म० ] न्यायदर्शन को माननेवाला व्यकित फो०] । धाई । स्वागताय सुनि अातुर माता । धाइ देखि मुद सु दर स्वाक्षर-मन्ना ० [ म० ] हस्ताक्षर । दस्तखत । जैसे,-(क) उन्होने गाता। - छद प्रभाकर (शब्द॰) । उसपर स्वाक्षर कर दिए। (ख) उनके स्वाक्षर से एक स्वागतिक-वि० [ स० ] स्वागत करनेवाला । पानेवाले की अभ्यर्थना सूचना निकली है। या सत्कार करनेवाला। स्वाक्षरयुक्त-वि० [स०] दे० 'स्वाक्षरित' । स्वागम--सक्षा पुं० [ स०] स्वागत । अभिनदन । स्वक्ष राकित-वि० [सं० स्वक्ष राड्वित] १ दे० 'स्वाक्षरित' । २ अपने हाथ से लिखा हुआ । स्वाचरण-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सु दर व्यवहार या आचरण । अच्छी चालचलन (को०)। स्वाक्षरित-वि० [ स० ] अपने हस्ताक्षर से युक्त । अपना हस्ताक्षर किया हुआ । अपना दस्तखत किया हुआ । जैसे,--उनके स्वाक्ष- स्वाचरण:--वि० जिसका प्राचार व्यवहार सु दर हो (को०] । रित सूचनापत्न से सारी बातो का पता लगा है। स्वाचात--वि० [स० स्वाचान्त] सम्यक् रूप से अचमन करनेवाला [को०] । स्वाख्यात-वि० [स० ] जो अच्छी तरह व्यक्त, सुस्पष्ट एव प्रकट स्वाच्छद्य-सज्ञा पु० [ स० स्वाच्छन्द्य ] दे० 'स्वच्दता । हो । जैसे-धम (को॰] । स्वाजन्य-सञ्ज्ञा पुं० [ स. ] दे० 'स्वजनता'। स्वागत--सक्षा पुं० [सं०] १ किसी अतिथि या विशिष्ट पुरुप के पधारने स्वाजीव, स्वाजीव्य-वि० [ स० ] (वह स्थान या देश आदि) जहाँ पर उमका सादर अभिनदन करना। समानार्थ प्रागे बढकर लेना। कृपि, वाणिज्य आदि जीविका का साधन सुलभ हो । जैसे,- अगवानी । अभ्यथना। पेशवाई। जैसे,—उनका स्वागत लोगो स्वाजीव्य देश। ने बडे उत्साह और उमग से किया । २ एक बुद्ध का नाम । स्वाढयकर-वि॰ [ स० स्वादयङ्कर ] जो सरलता से असपन्न व्यक्ति स्वागत'-वि०१ सम्यक् रूप से स्वय पाया हुआ । २ सु अर्थात् को सपन्न वना दे (को०)। मु दर या विविसमत उपायो से प्राप्त । जैसे,--धन, द्रव्य आदि (को०)। स्वातत्र--सज्ञा पु० [ स० स्वातन्त्र्य ] दे० 'स्वातत्य'। स्वागतकारिणी सभा-सज्ञा स्त्री० [सं० ] स्थानीय लोगो की वह स्वातत्य-सज्ञा पु० [ स० स्वातन्त्र्य ] १ स्वतन का भाव या धर्म। समा जो उस स्थान मे निमन्नित किसी विराट सभा या समेलन स्वतन्त्रता। स्वाधीनता । अाजादी। जैसे,—उस देश मे भापरण आदि का प्रबंध करने और पानेवाले प्रतिनिधियो के स्वागत, और लेखन स्वातन्य नहीं है। २ स्वेच्छा । स्वतन्त्र इच्छा अथवा निवासस्थान, भोजन आदि की व्यवस्था करने के लिये सकल्प (दर्शन)। सघटित हो। स्वात-सज्ञा सी० [ स० स्वाति ] दे० 'स्वाति' । उ०--स्वात बूद स्वागतकारिणी समिति--सज्ञा स्त्री॰ [स०] दे० 'स्वागतकारिणी सभा'। चातक मुख परी । सीप समुंद मोती बहु भरी ।-जायसी स्वागतकारी--वि० [स० स्वागतकारिन् ] स्वागत या अभ्यर्थना (शब्द०) करनेवाला। पेशवाई करनेवाला। स्वाति'-सज्ञा स्त्री० [स०] १ पद्रहवां नक्षन जो फलित ज्योतिप के स्वागतपतिका-सा स्त्री० [स०] अवस्थानुमार नायिका के दस भेदो अनुसार शुभ माना गया है। उ०—(क) जेहि चाहत नर मे मे एक । वह नायिका जो अपने पति के परदेश से लौटने से नारि सव अति प्रारत एहि भाँति । जिमि चातक चातकि प्रसन्न हो । प्रागतपतिका । त्रिपित वृष्टि सरद रितु स्वाति । —तुलसी (शब्द०) । (ख) रवागतप्रान-सज पु० [ म०] किसी से मिलने पर कुशल प्रश्न भेद मुकता के जेते, स्वाति ही मे होतु तेते, रतनन हूँ को कहूँ पूछना [को०) । भूलिहू न होत भ्रम ।--रसकुसुमाकर (शब्द॰) ।