पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 11.djvu/९९

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स्वामिपाल ५४११ स्वारथ' स्वामिपाल-सज्ञा पुं० [स०] पशुप्रो का मालिक और रक्षक (को॰] । विशेष-श्रीमद्भागवत मे लिखा है कि ब्रह्मा ने इस ससार की स्वामिभक्त--वि० [स०] स्वामी के प्रति प्रेम और भक्ति रखनेवाला । सृष्टि करके अपने दाहिने अग से स्वायभुव मन की और बाएँ कर्तव्यपालक। अग से शतरूपा नाम की स्त्री उत्पन्न की थी, और दोनो मे पति-पत्नी का सबध स्थापित किया था। इनसे प्रियव्रत और स्वामिभक्ति-सज्ञा स्त्री० [स०] स्वामी के प्रति अनुराग एव भक्ति । उत्तानपाद नाम के दो पुत्र तथा प्राकृति, देवहूति और प्रसूति मालिक के प्रति वफादारी। नाम को तीन कन्याएँ उत्पन्न हुई थी। इन्ही से आगे और स्वामिभट्टारक--मज्ञा पुं० [सं०] श्रेष्ठ स्वामी (को०] । सृष्टि चली थी। स्वामिभाव--सक्षा पु० [म.] प्रभुत्व । स्वामिता [को०] । २ अनि ऋषि (को०)। ३ नारद गुनि (को०) । ४ मरीचि ऋपि स्वामिमूल-वि० [स०] १ स्वामी से उद्भूत या प्राप्त । २ जो स्वामी (को०)। ५ एक शैव तन का नाम (को०)। या पनि पर निर्भर हो (को०] । स्वायभुव-वि० १ स्वयभु सवधी । ब्रह्मा सवधी। २ स्वायभुव स्वामिवात्सल्य-सञ्ज्ञा पुं॰ [स०] स्वामी या पति के प्रति अनुरक्ति [को॰] । मनु से सवद्ध को०] । स्वामिसद्भाव-सज्ञा पुं० [म०] १ स्वामी या मालिक की सत्ता या. स्वायभुवी-सज्ञा वि० [मं० स्वायम्भुवी] ब्राह्मी । अस्तित्व । २ स्वामी या मालिक का सद्गुण या अच्छाई (को०] । स्वायभू–सचा पुं० [स० स्वायम्भुव] दे० 'स्वायभुव"। उ०-स्वा- स्वामिसेवा-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [ स०] १ स्वामी की सेवा । मालिक का यभू मनु अरु सतरूपा । जिन्हतें भै नर सृष्टि अनूपा ।—मानस, आदर । २ पति का आदर समान (को०] । १।१४२ । स्वामी'--सज्ञा पुं० [सं० स्वामिन् ] [ सज्ञा स्त्री० स्वामिनी ] १ वह स्वायत्त-वि० [स०] जो अपने आयत्त या अधीन हो। जिसपर जिसके पाश्रय मे जीवन निर्वाह होता हो । वह जो जीविका - अपना ही अधिकार हो। चलाता हो । मालिक । प्रभु । अन्नदाता । जैसे,—वे मेरे स्वायत्त शासन-सज्ञा ० [पं०] १ वह शामन या हुकूमत जो अपने स्वामी है। मैं उनका नमक खाता हूँ। उनकी प्राज्ञा का श्रायत्त या अधिकार मे हो । स्थानिक स्वराज्य। जैसे,- पालन करना मेरा परम धर्म है । २ घर का कर्ताधर्ता । म्युनिसिपैलिटी और जिला वोर्ड स्वायत्तशासन या स्थानिक घर का प्रधान पुरुप । जैसे-वे ही इस घर के स्वामी है, स्वशासन के अतर्गत है। २ लोक प्रतिनिधियो के माध्यम से उनकी प्राज्ञा के बिना कोई काम नहीं हो सकता । ३. स्वत्वाधिकारी। मालिक । जैसे,—इस नाट्यशाला के अपने देश का शामन परिचालित करने का अधिकार (अ० प्राटोनामी)। स्वामी एक बगाली सज्जन है। ४ पति । शौहर । ५ ईश्वर । भगवान् । ६ राजा । नरपति । ७ कार्तिकेय । ८ साघु, स्वायत्तशासी-वि० [सं० स्वायत्तशासिन] जिसे अपना शासन स्वय सन्यासी और धर्माचार्यो की उपाधि । जैसे,-स्वामी शकराचार्य करने का अधिकार प्राप्त हो। स्वायत्त शासन का अधिकार- स्वामी दयानद, तैलग स्वामी, श्रीधर स्वामी। सेना का प्राप्त । जैसे, राज्य, देश आदि। नायक । १० शिव । ११ विष्ण। १२ गरुड । १३ स्वार--सज्ञा पुं० [सं०] १ घोडे के घर्राटे का शब्द । २ वादल की वान्स्यायन मुनि का एक नाम । १४ गत उत्सर्पिणी के ११वे गडगडाहट । मेघध्वनि । ३ ध्वनि । स्वर (को०)। ४ स्वरित अर्हत् का नाम । १५ गुरु । प्राचार्य (को०)। १६ देवता का स्वर से समाप्त होनेवाला एक साम (को०)। विग्रह । देवमूर्ति (को०)। १७ मदिर । देवालय (को०) । स्वार'--वि० १ स्वर सबधी । २ स्वरित ध्वनि सबधी (को॰) । स्वामी--वि० जिसे स्वत्वाधिकार हो । स्वत्वप्राप्त [को०] । स्वार--सज्ञा पु० [हिं० सवार घुडमवार । असवार । सवार। स्वाम्नाय--वि० [स०] जो परपरा प्राप्त हो । परपराप्राप्त । परपरा- स्वारक्ष्य-वि० [सं०] जिसकी सुरक्षा सरलता से की जा सके [को०] । गत (को०] । स्वारथ@--सज्ञा पुं० [० स्वार्थ] दे० 'स्वार्थ' । उ०-सुर नर स्वाम्य--संज्ञा पुं० [स०] १ स्वामी होने का भाव । स्वामित्व । मुनि सबके यह रीती। स्वारथ लागि करहि मव प्रीती । प्रभुत्व । प्रभुता । मालिकपन । २ चल और अचल सपत्ति पर --मानस, ४१२। अधिकार या हक । स्वत्व (को०) । ३ राज्य । शासन (को॰) । यौ०-स्वारथजड = स्वार्थसाधन ही एकमात्न लक्ष्य होने के ४ (आत्मा और शरीर की) सवलता या दृढ स्थिति । स्वास्थ्य (को०)। कारण जो जड अर्थात् दुद्धिहीन हो गया हो। उ०--बोली सुर स्वारयजड जानी। -मानम, २।२६५ । स्वारथविवश = यौ०--स्वाम्यकारण = स्वाम्य या प्रभुत्व का कारण । जो अपने मतलब से विवश हो। जो स्वार्थ के लिये वेवम हो। स्वाम्युपकारक--सज्ञा पुं० [स.] घोडा । अश्व । उ०-स्वारथविवस विकल तुम्ह होहू । -मानस, २२२१६ । स्वायभुव'-शा पुं० [ स०] १ पुराणानुसार चौदह मनुग्रो मे से स्वारथसाधक = दे० 'स्वार्थमाधक' । उ०--स्वारथसाधक जो स्वयभू ब्रह्मा से उत्पन्न माने जाते हैं । कुटिल तुम्ह सदा कपट व्यौहार ।-तुलमी (गन्द०)। हि० श०११-११ पहले मन