पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/१९१

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पशू २६०० पश्चिमोत्तर पशू-सच्चा पुं० [सं०] दे० 'पशु' । पश्चार्द्ध-सा पुं० [सं०] १ पीछे का अर्थ भाग। पिछला हिस्सा । पश्च-वि० [सं०] १ वाद का । पीछे का । २ पश्चिमीय (को०)। २ पश्चिमी भाग। पश्चिमी हिस्सा। ३ बचा हुआ या वाद- पशेमा-वि० [फा० पशेमान ] दे० 'पशेमान'। उ०--रहे सूब मन वाला हिस्सा [को०] । मे प्रो सुल्ताने जा हो पशेमाँ।-दक्खिनी०, पृ० ३७५ । पश्चाद्वात-सग पुं० [सं०] पश्चिग की हवा । पछा (को०)। पशेमान-वि० [फा०] १ मिदा । लज्जित । २ पश्चात्ताप पश्चिम'- राज्ञा पुं० [म.] यह दिशा जिनमें सूर्य अस्त होता है। पूर्व करनेवाला । पछतानेवाला [को०] । दिशा के सामने की दिशा । प्रतीची। वारुणी। पच्छिम । पशोपेशा-सञ्ज्ञा पुं० [फा० पेशोपस ] आगा पीछा । सोच विचार । पश्चिम'-०१ जो पीछे से उत्पन्न हुना हो। २ प्रतिम । दुबिधा । प्रदेशा । उ०—पहलवान पशोपेश में पड़े, देखा, यहाँ पिछला। प्रत का । ३ पश्चिम दिशा ना। भी राज देना है। -काले०, पृ० ४७ । पश्चिमकिया-सजा सी० [म.] प्रेत किया । मृतक यर्म [को० । पश्चात् अव्य० [सं०] पीछे । पीछे से । वाद । फिर । अनतर । पश्चिमघाटमा पु० [i० पश्चिम + घाट ( = पर्वत ) ] दे० यौ०-पश्चादुक्ति = पुन कथन । फिर कहना । पश्चात्कृत = 'पश्चिमीघाट'। पीछे किया या छोडा हुमा । पश्चाद्घाट = गला । गरदन । पश्चिमदिक्पति-संशा पुं० [मं०] वरुण जो पश्चिम दिशा के स्वामी पश्चात्ताप । पश्चाभाग = पिछला हिस्सा । पश्चिमी भाग । कहे गए हैं [फो०] । पश्चाद्भावी । पश्चाद्वर्ती । पश्चाद्वात । पश्चिमप्लव-नशा पुं० [सं०] वह भूमि जो पश्चिम की पोर पश्चात्-सशा पुं० [सं०] १ पश्चिम दिशा। प्रतीची। २ शेप । ढालुई या झुकी हो। प्रत । ३ अधिकार। पश्चिमयामकृत्य-सज्ञा पुं० [स०] बौद्धो के अनुसार रात के पिछले पश्चात्कर्म--सज्ञा पुं॰ [ स० पश्चात्कर्मन् ] वैद्यक के अनुसार वह पहर का कृत्य या पर्तव्य । कर्म जिमसे शरीर के वल, वर्ण और अग्नि की वृद्धि हो । पश्चिमरात्र-सा पुं० [सं०] रात्रि का प्रतिम भाग [को०] । विशेष-ऐसा कर्म प्राय रोग की समाप्ति पर शरीर को पूर्व पश्चिमवाहिनी-क्रि० [सं०] पश्चिम दिशा की मोर बहनेवाली । और प्रकृत अवस्था में लाने के लिये किया जाता है। पश्चिम तरफ वहनेवाली (नदी आदि) । भिन्न भिन्न रोगो के लिये भिन्न भिन्न प्रकार के पश्चात् कर्म पश्चिमसागर-सज्ञा पुं० [ 10 ] आयरलैट और अमेरिका के बीच होते हैं। का समुद्र । ऐटलाटिक महामागर । पश्चात्ताप-सज्ञा पुं० [सं०] वह मानसिक दुख या चिता जो किसी पश्चिमाश-मग पुं० [सं०] पिछला हिम्सा। पिछला काल । वाद अनुचित काम को करने के उपरात उसके अनौचित्य का का प्राधा काल । पश्चाद्वर्ती भाग। उ०-ऋग्वेदीय युग के ध्यान करके अथवा किसी उचित या अावश्यक काम को न पश्चिमांश में ऋपियों का बहुदेववाद एक्देववाद की पोर करने के कारण होती है । अनुताप । अफसोस । पछतावा । अग्रसर हो चला था ।-स० दरिया (भू०), पृ०५३ । पश्चात्तापी-सज्ञा पुं० [सं० पश्चातापिन् ] पछतावा करनेवाला। पश्चिमा-सक्षा ग्री० [सं०] सूर्यास्त की दिशा । प्रतीची। वारुणी । पश्चापी-वि० [सं० पश्चापिन् ] सेवक । दाम । टहलुवा [को०] । पश्चिम । पश्चाद्भावी-वि० [सं० पश्चात+भाविन् ] पीछे होनेवाले। बाद पश्चिमाचल-सज्ञा पुं॰ [ म० ] एक कल्पित पर्वत जिसके सवध मे में या अनतर होनेवाले। उ०-राणाडे के शब्दों मे हम उन्हें लोगो की यह धारणा है कि अस्त होने के समय सूर्य उसी पश्चाद्भावी भारतीय दार्शनिक विचारधारानो की उद्गम की माड मे छिप जाता है। अस्ताचल । भूमि कह सकते हैं । -स० दरिया (भू०), पृ० ५६ । पश्चिमार्घ-संज्ञा पुं० [सं०] दे॰ 'पश्चाघं' [को॰] । पश्चाद्वर्ती- वि० [स० पश्चात् + वर्तिन् ] १ पीछे रना गया। पश्चिमी-वि० [सं० पश्चिम + हिं० ई ( प्रत्य॰)] १ पश्चिम बाद का। बाद में अस्तित्व में आनेवाला। उ०—सर्वात्म- की ओर का। पश्चिमवाला । २ पश्चिम सवधी। जैसे, वाद का यह वीज पश्चाद्वर्ती वैदिक साहित्य में विकसित पश्चिमी हिंदी। होकर वेदात दर्शन में अपने चरम रूप को प्राप्त हुआ। पश्चिमी घाट-सज्ञा पुं० [हिं० पश्चिमी + घाट] ववई प्रात के -स० दरिया (भू०), पृ० ५३ । २ पीछे रहनेवाला । अनु- पश्चिम पोर की एक पर्वतमाला जो विंध्य पर्वत की सरण करनेवाला। पश्चिमी शाखा की प्रतिम सीमा से, समुद्र के किनारे पश्चानुताप-सञ्च' पुं० [सं०] पश्चात्ताप । अनुताप । पछतावा । किनारे ट्रावकोर (तिरुवाकुर) की उत्तरी सीमा तक चली पश्चारुज-सज्ञा पुं० [सं०] वैद्यक के अनुसार एक रोग जो कदन्न गई है। पश्चिम घाट। खानेवाली स्त्रियों का दूध पीनेवाले वालकों को होता है। पश्चिमेतर-वि० [सं०] १ पूर्व का। पूर्वी । २ पश्चिम से विशेष- इस रोग मे बालकों की गुदा में जलन होती है, उनका भिन्न (को०)। मल हरे या पीले रंग का हो जाता है और उन्हें बहुत तेज पश्चिमोत्तर'—वि० [सं०] उत्तरपश्चिमी । पश्चिम और उत्तर ज्वर आने लगता है। कोण का को०] ।