पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 6.djvu/५२६

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प्रावारक ३२३५ प्राशित्र वनता था और बहुमूल्य होता था। २ उत्तरीय वस्त्र । प्रावृण्य-सज्ञा पुं॰ [सं०] १. ईति । २. क्दैव । ३. धारा कदंव । ३. प्रच्छादन । माच्छादन प्रावरण (को०)। ४. एक जनपद ४ वह कर जो वर्षाऋतु में दिया जाता हो। ५ फुटज । का नाम (को०)। कुरैया। ६ प्रचुरता । अधिकता। प्रावारफ-सज्ञा पुं॰ [स०] ऊपर से प्रोदने का वस्त्र । प्रावार [को०] । प्रावृपेण्य–वि० वर्षाकाल में उत्पन्न । वर्षाकाल का। वर्षा ऋतु प्रावारफर्ण-सशा पु० [स०] एक प्रकार का उल्लू । सबधी । २ वर्षा मे देय (को०)। प्रावारकीट-सज्ञा पुं० [सं०] कपडे मे लगनेवाला एक प्रकार का प्रावृपेण्या-सञ्ज्ञा स्त्री० [म० ] १ फेवाच । २. लाल पुनर्नवा । श्वेत कीटा। प्रावृपेय'-गज्ञा पुं० [म.] एक देश का नाम । प्रावारिक-सज्ञ पु० [सं०] प्रावार या उत्तरीय बनानेवाला [को०] । प्रावृपेय'- वि० [स्त्री॰ प्रावृपेयी ] वर्षाकाल मे होनेवाला । प्रावालिक-वि० [सं०] प्रवाल या मूगे का व्यापारी [को०] । प्रावृष्य'-वि० [सं०] जो वर्षाकाल में हो। प्रावासिक-वि० [स०] [ वि० स्त्री० प्रावासिकी ] प्रवास के प्रावृष्य-सशा पुं० १ वैदूर्य । २. कुटज । ३ धाराकदडा । ४. उपयुक्त [को०] । विकटक । प्राविट-सञ्ज्ञा स्त्री० [ स० प्रावृट् ] पावस । वर्षाऋतु । उ०- प्रावेण्य-सज्ञा पुं॰ [ स०] एक प्रकार का ऊनी वस्त्र । प्राविट सरद पयोद घनेरे । लरत मनहूँ मारुत के प्रेरे ।- प्रावेशन-सञ्ज्ञा पु० [सं०१ वह जो प्रवेश के अवसर पर दिया या मानस, ६.४५ किया जाय | २ प्रवेशन का कार्य । प्रवेश करना। ३. कार- प्रावित्र-सज्ञा पुं० [स०] किसी के आश्रम मे रहना । रक्षण का खाना । संस्थान (को०)। प्राश्रय प्राप्त करना। प्राविष्ट्य-सशा पुं० [सं०] क्रौचद्वीप के एक खड का नाम । (केशव)। प्रावेशिक-वि० [सं०] [वि० सी० प्रावेशिकी ] १ प्रदेश का साधनभूत । जिसके कारण प्रवेश मिले। प्रवेश करने में प्रावीण्य–सञ्चा ० [स०] प्रवीणता । फुशलता । नैपुण्य । सहायता देनेवाला । २ प्रवेश सवधी (को०) । ३. प्रवेश करना प्रावृट-सञ्ज्ञा पुं० [सं० प्रावृप्] वर्षा ऋतु । पावस । उ०—प्रावृट् जिसका स्वभाव हो (को०)। में तव प्रागण घन गर्जन से हर्षित ।-ग्राम्या, पृ० ५७ ।' प्राव्रज्य---सज्ञा पुं॰ [सं०] " 'प्रावाज्य' [को०] । प्राट्काल-सज्ञा पुं० [स०] वर्षाकाल [को०] । प्रावास्य-वि० [ स०] प्रव्रज्या सवधी। प्रावृडत्यय-सचा पुं० [सं०वर्षा का समाप्तिकाल । शरद ऋतु । प्रात्राज्य-सज्ञा पुं० १. सन्यास जीवन । सन्यास । २ इतस्तत. चक्र- प्रावृत-सञ्चा पुं० [सं०] प्रोढने का कपडा । आच्छादन । मण या परिभ्रमण (को०] । प्रावृतर-वि० १ अच्छी तरह प्रावृत या घिरा हुमा । पाच्छादित । प्राश-सहा खो [ सं० ] भोजन। पाहार [को०] । प्रावृति-सञ्ज्ञा स्त्री० [म०] १ प्राचीर । घेरा । २. मल जो प्रात्मा प्राश-सचा पु० ( स०] १ भोजन करना। स्वाद लेना । चखना। की दृक् और एक्शक्ति को माच्छादित करता है । ( जैन )। २. भोजन । आहार [को०] । ३ पाडरोक। प्राशक-सशा पुं० [स०] भोजन करनेवाला । भोक्ता । भक्षक । प्रावृत्तिक'-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] [खी० प्रावृत्तिका ] वह दूत जो एक खानेवाला [को०]। स्थान के समाचार को दूसरे स्थान में पहुँचाने का काम करता प्राशन-मशा पु० [मं०] १. खाना। भोजन । २ चखना । जैसे, हो । एलची। पन्नप्राशन । ३ खिलाना । चखाना (को॰) । प्रावृत्तिकर-वि० १. अमुख्य । गौण । २ जिसे पूर्णत. सुचित हो। प्राशनीय'-वि० [सं०] प्राशन के योग्य । खाने के योग्य । चखने जानकार [को०] । प्रावृप-शा मी० [सं०] प्रावृटू । वर्षा ऋतु । प्राशनोय-सशा पु० पाहार । भोजन [को०] । पावृपा-सञ्चा नो॰ [स०] दे० 'प्रावृष' । प्राशस्त्य-सचा पु० [सं०] १ प्रशस्तता। प्रशस्त होने का भाव । प्रावृपाययो-सञ्ज्ञा सी० [सं०] १. केवाच । २. विपखोपरा । २ वैशिष्टय । विशिष्टता (को०)। प्रावृपिक'-सञ्चा पु० [सं०] मयूर । मोर । प्राशास्ता-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. प्रशास्ता नामक ऋत्विज का काम । प्रावषिक-वि० १. जो वर्षाऋतु में उत्पन्न हो। २. वर्षाऋतु २ प्रशास्ता का भाव । सवधी। प्राशास्त्र-सपा पुं० [सं०] १ दे० 'प्राशास्ता'। २ सरकार । प्रावृषिज'-सक्षा पु० [ स०] वह तीक्ष्ण वायु जो वर्षाऋतु मे चलती शासन [को०] । है। झझाधात । प्राशित-वि० [स०] भक्षित । साया हुमा । चखा हुमा । प्रावृपिज :--वि० जो वर्षा ऋतु मे उत्पन्न हो [को०] । प्राशित-सज्ञा पु०१ पितृयज्ञ । तर्पण । २. भक्षण। प्रावृषीण-वि० [स०] १ वर्षाकाल में उत्पन्न होनेवाला । २ वर्षा- प्राशिव-संशा पु० [ सं०] १. यज्ञो में पुरोटाश प्रादि में से काटकर काल सबंधी। निकाला हुमा वह छोटा टुकडा जो ब्रह्मोद्देश से अलग करके के योग्य ।