पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१०२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

धकवादी पंफायने लिया बकवाद । वांझ मुलावे पालना तामे कौन सवाद ।- फवीर (शब्द॰) । (ख) कहि कहि कपट संदेसन मधुकर कत वकवाद बढावत । कारो कुटिल निठुर चित अतर सूरदास कवि गावत ।- सूर ( शब्द०)। क्रि० प्र०—करना ।-मचाना।-होना । घकवादी-वि० [हिं० धकवाद + ई (प्रत्य० बकवाद करने वाला। बक बक करनेवाला। बहुत वात करनेवाला । वक्की। बकवाना-क्रि० स० [हिं० बकना का प्रेरणार्थ रू०] वकने के लिये प्रेरणा करना। किसी से बकवाद फराना । बकवास--संज्ञा स्त्री० [हिं० बकना + वास (प्रत्य॰)]१. बकवाद । व्यर्थ की बातचीत | बकबक । कि० प्र०—करना ।- मचाना । —होना । २. बक बक करने की लत । बकवाद मचाने का स्वभाव । ३. बकवाद करने की इच्छा । क्रि० प्र०-लगना। बकवृत्ति'-सज्ञा पुं० [ स० वकवृत्ति ] वह पुरुष जो नीचे ताकने- वाला, शाठ और स्वार्थ साधने मे तत्पर तथा कपटयुक्त हो । बध्यान लगानेवाला मनुष्य । बकवृत्ति-वि० कपटी। धोखेबाज । बकवती-वि० [सं० चकनतिन् ] वकवृत्तिवाला । कपटी । बकस-सज्ञा पुं॰ [अं० बॉक्स ] १. कपड़े आदि रखने के लिये बना हुमा चौकोर संदूक । २. घड़ी, गहने पादि रखने के लिये 'छोटा डिब्बा । खाना । जैसे, घड़ी का बक्स, गले के हार का बक्स। षकसनहार-वि० [हिं० धकसना + हार (प्रत्य॰)] क्षमा करनेवाला । उ०-बदा भूला बदगी, तुम बकसनहार ।- घरनी० श०, पृ० २३ । वकसना-क्रि० स० [फा० बख्श + हिं० ना (प्रत्य॰)] १. कृपापूर्वक देना। प्रदान करना। उ०-(क) प्रभु बकसत गज बाजि बसन मनि जय धुनि गगन निसान हये ।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) नासिक ना यह सुक है ध्याइ अनंग । बेसर को छवि वकसत मुकुतन संग ।-रहीम (शब्द०)। २. छोड़ देना । क्षमा करना । माफ करना । उ०—(क) तव देवकी अधीन कह्यो यह मैं नहिं बालक जायो। यह फन्या मोहि बकस वीर तू कीजै मो मन भायो।-सूर (शब्द०)। (ख) पूत सपूत भयो कुल मेरे अब मैं जानी बात । सूरश्याम अब लो तोहिं वफस्यो तेरी जानी घात ।- सुर (शब्द०)। घकसवाना -क्रि० स० [हिं० षकसना का प्ररणार्थ रू० ] दे० 'बकसाना'। चकसा-संग पुं० [दे..] एक प्रकार की घास जो पानी में या जलाशयों के किनारे होती है। चौपाए इसे बड़े चाव से बकसानाg+-क्रि० स० [हिं० बख्शना] 'वयासना' का प्रेरणार्थक रूप । क्षमा कराना । माफ कराना । उ०—(क) चूक परी मोते मै जानी मिले श्याम बकसारी। हा हा नारि दसनन तृण घरि घरि लोचन जल नि ढरा री ।-सूर (शब्द॰) । (ख) पूजि उठे जव ही शिव को तब ही विधि शुक्र बृहस्पति पाए । के बिनती मिस कश्यप के तिन देव प्रदेव सबै वक- साए ।-केशव (शब्द०)। बकसी-सज्ञा पुं॰ [फा० बख्शी ] दे० 'बख्शी'। उ० -अरु बकसी के बचन सुनि साह कियो प्रति सोच ।-ह. रासो, पृ० ८६ । चकसीला-वि० [हिं० बकठाना ] जिसके खाने में मुंह का स्वाद बिगड़ जाय और जीभ ऐंठने लगे। वकसीस -संज्ञा स्त्री॰ [फा० बखशिश] १. दान । उ०-प्रेम समेत राय सब लीन्हा । भह बकसीस जाँचकन्ह दीन्हा ।-तुलसी (शब्द०)। २. इनाम । पारितोपिक । उ०-(क) केशोदास तेहि काल करोई है पायो काल सुनत श्रवण बसीस एक देश की । -केशव (शब्द॰) । (ख) निवले असीस दै दै के लै बकसीसे देव पंग के वसन मीन मोती मिले मेले ले। -देव (शब्द०)। ३. प्रदान । देना। उ० --पिछले निमक की दोस्ती, करी जान बकसीस-ह. रासो, पृ० ११३ । बकसुआ, बकसुवा-सञ्ज्ञा पु० [ हिं• ] /५० 'बकलस' । वकसैया-वि० [हिं० यकसना + ऐया (प्रत्य॰)] वरुणनेवाला । देनेवाला । उ०-समर के सिंह 'सत्रुसाल के सपूत, सहजहि वकसैया सदसिंधुर मदध के ।-मति० पं० पृ० ३६६ । बका-संज्ञा स्त्री० [अ० वका ] अस्तित्व । अनश्वरता । जिंदगी। उ०-नहिं काम पाएगा यह हिसं आखिर, वका जान फानी तेरा यो समझ घर ।-दक्खिनी०, पृ० २५५ । बकाइन-शा पुं० [हिं० ] दे० 'बकायन' । बकाउल-शा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'बकावली' । उ०-सुनु बकाउ तजि चाह न जूही ।—जायसी (शब्द०)। बकाउर-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'वकावली'। वकाची-सज्ञा स्त्री० [सं०] एक प्रकार की मछली [को०] । बकाना-क्रि० स० [हिं० चकना का प्रेरणार्थक रूप ] १. वर वक करने पर उद्यत करना। बक बक कागना। २. वाहलाना । रटाना । उ०-बार वार वकि श्याम सो बछु वोल बकावत । दुर्दुघा = दंतुली भई प्रति मुख छवि पावत । -सूर (शब्द०)। वकायन-संशा पुं० [हिं० घडका + नीम ? ] नीम की जाति के एक पेड़ का नाम जिसकी पत्तियां नीम की पत्तियों के सदृश पर उनसे कुछ बड़ी होती हैं। पर्या०-महानिव। ट्रेका । कामुक । फैटर्य । केशमुष्टिक । पवनेष्ट । रम्यकपीर । काकेड़ । पावंत । महातिक्त । विशेष-इसका पेड़ भी नीम के पेड़ से बड़ा होता है। फन नीम की तरह पर नीलापन लिए होता है । इसकी लाली हलकी मौर सफेद रंग की होती है। इससे घर के संगहे और मेज 1 खाते है।