पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बखान ३५४५ बखोरना. जिन बखसीसति सदा घमंडहि मूरखताई।-श्रीधर पाठक हम बड़े ही बखेड़िए होवें । आप यों मत उखेडिए बखिए ।- (96570 ) 1 चुभते०, पृ०२। बखान-संज्ञा . [ सं० विपाण] सींग। शृंग । संगी। उ० यौ०-बखियागर = बखिया करनेवाला । बंसी बेत वखाँन बन गेंद हींगुरी जोरि ।-पृ० रा०, २५५० । घखियाना-क्रि० स० [हिं० घखिया+ना (प्रत्य॰)] किसी चीज बखान-तज्ञा पुं॰ [सं० व्याख्यान, पा० बक्खान] १. वर्णन । कथन । पर वखिया की सिलाई करना । बखिया करना । उ.- वपु जगत काको नाउ लीजै हो जदु जाति गोत न वखीरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० खीर का अनु० ] वह खीर जिसमें दूध जानिए । गुणरूप कछु अनुहार नहिं फहि का बखान के स्थान पर गुड या चीनी या ईख का रस डाला गया हो। बखानिए।- सूर (शब्द०)। २. प्रशंसा । गुणकीर्तन । मीठे रस में उबाला हुआ नावल । स्तुति । बड़ाई। उ०-(क) तेहि रावन कह लघु बखील-वि० [अ० बखील ] [ संज्ञा वखीली ] कृपण। सूप । कहसि, नर कर करसि वखान । रे कपि बर्बर खर्व खल कंजूस । उ०-के बदा है जिस दर का हातिम सखी। वखीलों अब जाना तव ज्ञान ।—तुलसी (शब्द०)। (ख) दिन को जग से किया है नफी।-दक्खिनी०, पृ० २१२ । दस प्रादर पाय के फरि ले पापु बखान । -विहारी (शब्द०)। बखुदा -क्रि० वि० [ फ़ा० घखुदा ] १. ईश्वर के लिये । २. ग्युदा की सौगंध। बखानना-क्रि० स० [हिं० वखाम+ना (प्रत्य॰)] १. वर्णन करना । कहना। उ०—(क) ताते मैं अति अल्प वखाने। वखुशी-कि० वि० [ फा० यखुशी ] खुशी से। प्रसन्नतापूर्वक । थोरहिं मह जानिह सयाने ।- तुलसी (शब्द०) । (ख) बखूबी-क्रि० वि० [ फा बखूबी ] अच्छे प्रकार से । भली भांति । यहि प्रकार सुक कथा वखानी। राजा सो बोले मृदु बानी । अच्छी तरह से । जैसे,—कागज भेजने के पहले आप उसे -(शब्द०)। २. प्रशंसा करना । सराहना । तारीफ करना। वखुवी देख लिया करें । २. पूर्ण रूप से । पूर्णतया । पूरी तरह उ०-(क) नागमती पपावति रानी । दोक महा सतसती से । जैसे,—यह दावात वखूबी भरी हुई है। वखानी ।-जायसी (शब्द॰) । (ख) ते भरतहि भेटत बखेड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० यखेरना ] १. उलझाव । झझट उलझन। सनमाने । राज सभा रघुवीर वखाने ।—तुलसी (शब्द०)। जैसे,—इस काम में बहुत बखेड़ा होगा। २. झगड़ा । टंटा । ३. गाली गलौज देना । बुरा भला कहना । जैसे,—वात विवाद । जैसे,—अव उन लोगों में भारी बखेड़ खड़ा होगा। छिड़ते ही उसने उसके सात पुरखा बखान कर रख दिए । ३. कठिनता । मुशकिल । ४. व्यर्थ विस्तार । आडंबर । वखारी-संज्ञा पु० [सं० प्राकार] [स्त्री० अल्पा० घखारी] दीवार भारो प्रायोजन । या टट्टी प्रादि से घेरकर बनाया हुआ गोल और विस्तृत क्रि० प्र०—करना ।-फैलाना ।-मचाना । —होना । घेरा जिसमें गावों में अन्न रखा जाता है। यह कोठिले से बख्नेडिया-वि० [ हिं• बखेड़ा+इया (प्रत्य॰)] बखेड़ा करनेवाला । भाकार का होता है पर इसके ऊपर पाट नहीं होता और जो बखेडा या झगड़ा खड़ा करे । झगड़ालू । उ०-हम बड़े यह बिल्कुल खुले मुह का होता है । हो बखेडिए होवें | आप मत यों उखेडिए बखिए।-चुभते०, वखारी'-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बरवार ] छोठा वखार । पृ०२। वखारी'-संज्ञा स्त्री० [ देश० ] एक प्रकार की रागिनी जिसे कुछ बखेरना-क्रि० स० [सं० विकिरण ] चीजों को इधर उधर या लोग मालकोस राग की रागिनी मानते हैं। दूर दूर रखना। फैलाना । छितराना । जैसे, खेत में बीज वखिया-सज्ञा पुं० [ फा० बस्यह ] एक प्रकार की महीन और बखेरना। उ०-(क) कहो दससीस भुज बीसन बखेरों प्रागे मजबूत सिलाई। कहो जाय धेरो गढ़ विनती पतीजिए। हनुमन्नाटक विशेप-इसमे सुई को पहले कपड़े में से टाँका लगाकर आगे (शब्द॰) । (ख) काटि दस सीस भुज बीस सीस धरि राम यश निकालते हैं, फिर पीछे लौटाकर भागे की ओर टोक मारते दसो दिसि सौगुनों बखेरिहै । हनुमन्नाटक (शब्द०)। (ग) है जिससे सुई पहले स्थान से कुछ प्रागे बढ़कर निकलती तमाशा है मजा है सैर है क्या क्या अहा! हा! हा! है। इसी प्रकार बार वार सीते हैं। चखिया दो प्रकार का मसबिर ने अजब कुछ रंग कुदरत का बखेरा है। नजीर होता है-(१) उस्तादाना या गांठी जिसमें ऊपर की लौठ (शब्द०)। सिलाई के टीके एक दूसरे से मिले हुए दानेदार होते हैं और बखेरी-संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] छोटे कद का एक प्रकार का कंटीला (२) दौड़ या वया जिसमें दो चार दानेदार उस्तादी बखिया वृक्ष जिसके फल रंगने और चमड़ा सिझाने के काम में प्राते के अनतर कुछ थोड़ा अवकाश रहता है। हैं। यह पूर्वीय बंगाल, प्रासाम और बर्मा मादि में होता है। मुहा०-वखिया उधेरना = भेद खोलना । कलई खोलना । भंडा इसे कुंती भी कहते हैं। फोड़ना । वखिए उखेड़ना = दे० 'बखिया उधेड़ना' । ३० बखोरना -क्रि० स० [हिं० बक्कुर ] टोकना । छेड़ना ७-१२ उ०-