पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/११३

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वचका ३२५२ बचाना मूत्रशोधक और कंठ को हितकर माना है, तथा शूल, -शोथ, विपत्ति प्रादि से अलग रहना। रक्षित रहना । संभावना होने वातज्वर, कफ, मृगी और उन्माद का नाशक लिखा है। पर भी किसी बुरी या दुःखद स्थिति में न पड़ना । जैसे, शेर यह गठिया मे ऊपर से लगाई भी जाती है। भावप्रकाश में से बचना, गिरने से बचना, दंड से बचना । उ०-(क) अक्षर वच तीन प्रकार की लिखी गई है-(१) बच, (२) खुरासानी त्रास सबन को होई। साधक सिद्ध बचै नहि कोई।- वच और (३) महाभरी बच । खुगसानी बच सफेद होती कबीर (शब्द॰) । (ख) घन घहराय घरी घरी जब करिहै है। इसे मीठी बन भी कहते हैं। यह मति और मेघावर्धक झरनीर । चहुँ दिसि चमक चंचला क्यो वचिहै बलवीर ।- तथा प्रायुवर्धक होती है। महाभरी को फुलीजन भी कहते शृं० सत० (शब्द०)। २. किसी बुरी आदत से अलग रहना । हैं। यह कफ और खांसी को दूर करती है, गले को साफ जैसे, वुरी संगत से बचना । ३. किसी के अंतर्गत न आना । करती है, रुचि को बढाती तथा मुख को शुद्ध करती है । छूट जाना । रह जाना । जैसे,—वहाँ कोई नही बचा जिसे बचका-सज्ञा पु० [ देशज ] १. एक प्रकार का पकवान जो किसी रग न पड़ा हो। ४. खरचने या काम में आने पर शेष रह प्रकार के साग या पत्तो मादि को बेसन में लपेटकर और जाना । वाकी रहना । उ०-मीत न नीत गलीत यह जो घी या तेल में छानकर बनाया जाता है। २. एक प्रकार का घरिए धन जोरि । खाए खरचे जो बचे तो जोरिए करोरि । पकवान जो बेसन और मैदे को एक में मिलाकर पोर जलेबी - बिहारी (शब्द०)। ५. अलग रहना । दूर रहना । परहेज की तरह टपकाकर घी में छाना जाता है तब दूध में करना । जैसे,—तुम्हें तो इन बातों से बहुत बचना चाहिए । भिगोकर खाया जाता है । उ० - खंडरा बचका पो डुभ- ६. पाछे या अलग होना । हटना । जैसे, गाड़ी से बचना । कोरी । बरी एकोतर सौ कोहड़ौरी।-जायसी (शब्द०)। पचना-क्रि० स० [सं० वचन ] कहना। उ०—प्रबल प्रहलाद बचकाना -वि० [हिं० बच्चा + काना (प्रत्य॰)] [स्त्री० बचकानी] बस देत मुख ही वचत दास ध्रुव चरण चित्त सीस नायो । १. बच्चों के योग्य । बच्चो के लायक । जैसे, बघाना पाइ सुत विपतमोचन महादास लखि द्रोपदी चीर नाना जूता । २. बच्चों का सा । थोड़ी अवस्था का । बढ़ायो ।—सूर (शब्द०)। वचन-संज्ञा पुं॰ [सं० वचन ] दे॰ 'वचन' । उ०—येह वचन्न बचत-सज्ञा स्त्री० [हिं० बचना] १. बचने का भाव । बचाव । प्रभु उच्चरे; भए सु अंतरध्यान !-५० रासो, पृ० १० । रक्षा । उ०-होती जो पै बचत है, धीरज ढालन पोट । चतुरन हिये न लागती नैन बान की चोट । -रसनिधि बचपन, बचपना -संज्ञा पु० [हिं० बच्चा+पन (प्रत्य॰) ] १. लड़कपन । बाल्यावस्था। २. वच्चा होने का भाव । ( शब्द०)। २. बचा हुमा अश। वह भाग जो व्यय होने से बच रहे । शेष । ३. लाभ । मुनाफा । बचवा -सज्ञा पुं० [हिं० बच्चा+वा (प्रत्य०) ] १. प्यार से छोटे बचन -- मशा पु० [ स० वचन ] १. वाणी । वाक् । उ०- बच्चे का संबोधन । २. पुत्र के लिये प्रयुक्त । वत्स । पुत्र । तुलसी सुनत एक एकनि सों जो चलत विलोकि निहारे । उ०-वचवा का व्याह तो प्रबके साल न होगा।-प्रेमघन०, मूकनि वचन लाहु मानो अंधन गहे हैं बिलोचन तारे ।- भा० २, पृ० १८६ । तुलसी (शब्द॰) । २. वचन । मुह से निकला हुमा सार्थक बचवैया -संज्ञा पुं॰ [ हिं० बचाना + वैया (प्रत्य॰) ] बचाने- शब्द । उ०-(क) रघुकुल रीति सदा पलि पाई । प्राण वाला। रक्षक। जाहु बरु वचन न जाई ।-तुलसी शब्द०)। (ख) फत बचाए-मज्ञा पुं० [फा० बचह, तुल० सं० वत्स, प्रा. वच्छ, हिं० कहियत दुख देन को, रचि रचि बचन प्रलोक । सवै कहाउर बच्चा ] [ स्त्री० बची ] लडका । बालक । उ०-(क) तुलसी हैं लखे, लाल महाउर लीक ।-विहारी (शब्द०)। सूर सराहत हैं जग में वलसालि है बालि वचा।-तुलसी मुहा०-बचन दालना = मांगना | याचना करना । बचन तोड़ना (शब्द॰) । (ख) दस पान और तुम दविले, मे चंद वचा वा छोडना = प्रतिज्ञा से विचलित होना । कहकर न करना । तुम ते डरों।-पृ०, रा०, ६४।१४० । (ग) मारू देस उप- प्रतिज्ञा भंग करना । बचन देना = प्रतिज्ञा करना । वात न्निया तिहाँ का दंत सुसेत । कूझ वची गोरंगियाँ खजर जहा हारना । उ०-निदान यशोदा ने देवकी को वपन दे कहा कि नेत ।--ढोला०, दू० ६६६ । २. लघुत्व एवं उपेक्षासूचक तेरा वालक मैं खूगी। -लल्लू (शब्द०)। यचन पालना संबोधन । उ०-क्रुद्धित हों तो कह दें कि बचा तुम जानते वा निभाना = प्रतिज्ञा के अनुसार कार्य करना । जो कुछ नही। --प्रेमघन०, भा०२, पृ० ७६ । कहना वह करना। बचन बँधाना= प्रतिज्ञा कराना । वचन बचाउg+-संप्पा पु० [हिं०] दे० 'बचाव' । उ०-द्रुम लतानि तर बद्ध करना । उ०—नद यशोदा बचन बंधायो। ता कारण ठाढे, भयो है बचाउ पातनि में -छीत०, पृ० २६ । देही धरि प्रायो।- सूर (शब्द०)। वचन लेना = प्रतिज्ञा बचाना-क्रि० स० [हिं० षचना] १. धापत्ति या कष्ट में न पडने कराना । वचन हारना = प्रतिज्ञाबद्ध होना । वात हारना । देना । रक्षा करना । उ०—(क) बिन गुरु अक्षर कौन छुड़ावै, वचनविदग्धा-सा झो[ स० वचनविदग्धा ] एक प्रकार की अक्षर जाल ते कौन वचावै ।—कबीर (शब्द०)। (ख) लाठी मे नायिका । दे० 'वचनविदग्धा'। गुण बहुत है सदा राखिए संग । गहरी नदि नारा जहां तहाँ बचना'-क्रि० प्र० [स० वञ्चन (= न पाना)] १. कष्ट या बचावे पंग ।-गिरधर (शब्द॰) । (ग) चहूँ ओर अवनीस 14