पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१२२

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बट्टी ३३६१ बड़म 1 नहीं है, किसी जगह बहुत ऊंची हो गई है।-शिवप्रसाद बड़दंता--वि० [हिं० बहा + दॉत ] बड़े बड़े दांतोंवाला । (शब्द०)। बड्दुमा--संज्ञा पुं० [हिं० बड़ा+फ़ा० दुम ] वह हाथी जिसकी पूछ बट्टी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बट्टा] १. छोटा बट्टा । पत्थर मादि का गोत्र की कंगनी पांव तक हो । लंबी दुम का हाथी । छोटा टुकड़ा । २. कूटने, पीसने का पत्थर । लोहिया । ३. चड़प्पन--संज्ञा पु० [हिं० बड़ा + पन ] बड़ाई। श्रेष्ठ या बड़ा समडोल कटा हुअा टुकड़ा। बड़ी टिकिया। जैसे,—साबुन होने का भाव । महत्व । गौरव । जैसे,—तुम्हारा बड़प्पन की बट्टी, नील की बट्टी । ४. ( गुड की ) भेली। इसी मे है कि तुम कुछ मत बोलो। बट्ट-सञ्ज्ञा पुं॰ [ देशज ] १. धारीदार चारखाना । २. ताली । विशेप-वस्तुओं के विस्तार के संबंध में इस शब्द प्रयोग बजरबट्टू । एक प्रकार का ताड़ जो सिंहल में और मलाबार नहीं होता। इससे केवल पद, मर्यादा, अवस्था आदि की के तट पर होता है। श्रेष्ठता समझो जाती है। बह २- ज्ञा पुं० [सं० पर्वट ] बजरवटू । बोड़ा । लोविया । बड़फनी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बड़ा + फन्नी] बहुत चौड़ी मठिया । वट्ट बाज-वि० [हिं० बट्टा+ फ़ा बाज़ ] १. नजरबंद का खेल करने- वाला । जादूगर । २. धूर्त । चालाक । बड़बट्टा-संज्ञा पुं० [हिं० बड + बहा ] बरगद का फल । बठाना -क्रि० सं० [हिं० बैठाना ] दे॰ 'बैठाना' । उ०-कोसा बड़बड़--सज्ञा स्त्री० [अनुध्व० ] बकवाद । व्यर्थ का बोलना । कोस ऊपरि डाक्छाने से बठाया। -शिखर०, पृ० १४ । फिजूल की बातचीत । प्रलाप | बठिया -संज्ञा स्त्री॰ [ देशज ] पाथे हुए सूखे कंडों का ढेर । उपलों क्रि० प्र०-करना ।-मचाना ।—लगाना । का ढेर। बड़बड़ाना-क्रि० प्र० [अनुध्व० वड़बड़ ] १. बक बक करना । बढ़चना-क्रि० अ० [हिं० वैठना ] बैठना । (दलाल)। वरुवाद करना । व्यर्थ वोलना। प्रलाप करना। २. ढीग वठूसना-क्रि० प्र० [हिं० वैठना ] बैठना । (दलाल)। हांकना । शेखी बघारना । ३. कोई वात बुरी लगने पर मुह वडंगा--संज्ञा पुं० [हिं० वडा + अग] लंवा बल्ला जो छाजन के में ही कुछ बोलना । खुलकर अपनी अरुचि या क्रोध न प्रकट बीचोबीच लंवाई के वल आधार रूप में रहता है । बड़ेरी। करके कुछ अस्फुट शब्द मुंह से निकालना । बुडबुड़ाना । बड़गी -संज्ञा पुं० [हिं० वड़ा+अंग] घोड़ा । ( डि०)। जैसे,-मेरे कहने पर गया तो, पर कुछ बड़बड़ाता हुमा। बड़गू-संज्ञा पुं० [ देशज ] दक्षिण का एक जंगली पेड़ । बड़बड़िया-वि० [अनुध्व० बड़बड़ ] बड़बड़ानेवाला | वकवादी । विशेष—यह पेड कोंकन, मलाबार, त्रावकोर आदि की पोर घड़वेरी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घड़ी + बेरी ] जगली बेर । झड़बेरी। बहुत होता है । इसमें से एक प्रकार का तेल निकलता है। उ०-जो कटहर बड़हर बड़बेरी। तोहि अस नाही कोका- बड़ा-संज्ञा स्री० [अनुध्व० बड़ बड़] वकवाद । प्रलाप । पैसे, बेरी। जायसी (शब्द०)। पागलों की बड़। बड़बोल - वि० [हिं० घड़ा+घोल ] १. बहुत बोलनेवाला । मनगर बड़ा-सशा पु० [ सं० बट ] बरगद का पेड़ । प्रलाप करनेवाला । बोलने में उचित पनुचित का ध्यान र यौ०-घडकोला । बड़बट्टा । रखनेवाला । उ०—का वह पखि कूट मुंह फोटे । पस बड़बोल बड़ा-वि० [हिं०] दे० 'घसा' । उ०-को बड़ छोउ कहत अपराधु । जीभ मुख छोटे ।-जायसी (शब्द०)। २. बढ़ बढ़कर --मानस। बोलनेवाला । शेखी हाकनेवाला । सीटनेवाला । बड़कघो-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० बड़ी+ कंघी ? ] दो तीन हाथ ऊंचा बड़बोला-वि० [हिं० बढ़ा+घोल ] बड़ी बड़ी बातें करनेवाला। एक प्रकार का पौधा जो प्रायः सारे भारत में पाया जाता है। बढ़ बढ़कर बातें करनेवाला। लंबी चौड़ी होकनेवाला। विशेष—इसकी टहनियों पर सफेद रंग के लंबे रोएँ होते हैं। सीटनेवाला। शेखी बघारनेवाला। उ०-उनका तो ख्याल इसके पौधे में से कड़ो दुर्गंध पाती है। इसके तने से एक है कि मैं बडबोला पोर काहिल हूँ।-वो दुनियाँ, पृ० १५८ । प्रकार का रेणा निकलता है पोर जड़, पत्तियों तथा वीज बड़भाग-वि० [हिं०) दे० 'वड़मागी' । उ०--अहो अमरवर हो वड़- प्रोपषि रूप मे काम में पाते हैं । भाग । मैं मेटयो जु रावरी जाग । -नंद० अंक, पृ० ३१३ । घड़का-वि० [हिं० बड़ + का (प्रत्य०)] [भी घड़की] दे० 'घड़ा। बड़भागो-वि० [हिं० बढ़ा+भागी<सं० भागिन् ] [स्त्री० घड़- उ०-ले जाती है मटका बड़का ।-फुकुर०, पृ० ३२ । भागिन, बड़भागिनि ] बड़े भाग्यवाला। भाग्यवान् । उ०-- बड़कुइयाँ-सञ्ज्ञा पुं० [ देशज ] कच्चा कुमा। अहह तात पछिमन बहभागी। राम पदारविंद पनुरागी। यहकौला-संज्ञा पुं० [हिं० बड़ + कोपल ] बरगद का फल । --तुलसी (शब्द०)। बड़गुल्ला-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० वह + घगुला ] एक प्रकार का बगला । बड़ा--वि० [हिं०] वड़ा। श्रेष्ठ । उ०--(क) वेजवंत उद्दार बड़त्तनु-सज्ञा पुं० [वै० वृद्धत्वन् ] दे० 'बड़प्पन' । उ०--सोइ वहम विवहार ग्रंथ भर ।-पृ. रा०, १४१७८ । (ख) वड़म भरोस मोरे मन भावा । केह न सुसंग मत्तनु पावा।- विदेह री जी बेल कुशलात पूछी बेस ।--रघु० ०, मानस, १।१०॥ पृ०६१।