पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१३७

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वधिया ३३७६ बनकठा फंडा। हत्यारा । २. प्राणदंड पाए हुए का प्राण निकालनेवाला। सिंधु वारीश । तुलसी (शब्द०)। ४. बगीचा । वाग। जल्लाद | ३ व्याघ । बहेलिया। उ०-वासव वरुण विधि बन ते सोहावनो, दसानन को बधिया-संचा पु० [हिं० बध (=मारना)+ इया (प्रत्य॰)] १. वह कानन वसंत को सिगार सो।-तुलसी (शब्द०)। ५. निराने वैल या और फोई पशु जो प्रडकोश कुचल या निकालकर 'पंड' या नोंदने की मजदूरी। निरौनी । निंदाई । ६. वह अन्न जो कर दिया गया हो। नपुंसक किया हुआ चौपाया। खस्सी। किसान लोग मजदूरो को खेत काटने की मजदूरी के रूप पास्ता । चौपाया जो प्रांडू न हो। उ०--दौलत दुनिया माल में देते हैं। ७. कपास का पेड़। कपास का पौधा । उ०- खजाने बधिया बैल चराई।-कबीर० श०, पृ० १५ । सन सूख्यो वीत्यो बनौ ऊखौ लई उखार । अरी हरी अरहर क्रि० प्र०—करना ।होना । अजौं घर घरहर जियनार ।-विहारी (शब्द०)। ८. वह भेंट जो किसान लोग अपने जमीदार को किमी उत्सव के मुहा०-घधिया बैठना = (१) घाटा होना । टोटा होना । उपलक्ष मे देते हैं। शादियाना । ६. दे० 'वन' । दिवाला निकलना । (लश०) । (२) हिम्मत पस्त होना । कमर टूटना। उ०-ईश्वर न करें कि रोज पाएँ, यहाँ तो बनाल - संज्ञा पुं० [हिं० बन+पालू ] पिंडालू और जमीकंद एक ही दिन में बधिया बैठ गई ।--मान०, भा० ५, प्रादि की जाति का एक प्रकार का पौवा जो नेपान, सिकिम, पृ०१६२। बंगाल, वरमा और दक्षिण भारत में होता है। यह प्रायः २. एक प्रकार का मीठा गन्ना । जंगली होता है और वोया नहीं जाता इसकी जड़ प्राय: जगली या देहाती लोग अकाल के समय खाते हैं। वधियाना-क्रि० स० [हिं० घधिया+ना (प्रत्य॰)] यघिया फरना | बधिया बनाना । वनउरा-संज्ञा पुं० [हिं०] १. दे० 'बिनौला' । २. दे० 'प्रोला'। बधिर-संज्ञा पुं० [सं०] जिसमें श्रवण शक्ति न हो। जिसमें सुनने बनकंडा-संज्ञा पु० [हिं० बन+कंडा] वह कंडा जो बन में पशुओं की शक्ति न हो। बहरा। के मल के प्रापसे आप सूबने से तैयार होता है। परना बधिरता-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] श्रवण शक्ति का प्रभाव । बहरापन । बधिरित-वि० [सं०] जिसे वहा किया या बनाया गया हो [को॰] । बनक-संशा स्त्री० [हिं० बनना ] १. बनावट । सजावट । सज- घज । उ०-द्विजदेव फी सौ ऐसी वनक निकाई देखि, राम बधिरिमा-संञ्चा स्त्री॰ [ स०] दे० 'बधिरता' [को॰] । की दुहाई मन होत है निहाल मम । -द्विजदेव (शब्द॰) । वधू-संज्ञा स्त्री० [सं० वधु ] दे० 'वधू' । २. वाना। वेष । भेस । उ०-परुन दील पियरे लसत बधूक-मंशा पु० [सं० बन्धक ] दे० 'बंधूक' । अंकन सुमन समाज । परी प्राज रितुराज की वनक बने बधूटी-संज्ञा स्त्री० [ सं० वधूटी ] १. पुत्र की स्त्री । पतोहू । २. व्रजराज ।-स० सप्तक, पृ० ३७५। ३. मित्रता। दोस्ती । सुवासिनी। सुहागिन स्त्री। सौभाग्यवती स्त्री। उ०-भई उ०-जासो अनबन मोहि, तासों बनक बनी तुम्हे । - मगन सब गाम बघूटी।-मानस, २२११७ । ३. नई आई घनानंद पृ० २०६। बनकर-सज्ञा स्त्री० [सं० वन+क (पत्य०) ] वन की उपज । बधूरा-संज्ञा पुं० [हिं० बहु + धूर ] मंधन । घगूला। घवंटर । जंगल की पैदावार । जैसे, गोंद, लकड़ी, शहद आदि । चक्रवात । उ०—(क) ज्यों धपूरा वाव मध्य मध्य बधूरा बनकल३-संज्ञा पुं० [सं० वर्णक] वर्ण। रंग । उ०-केसरि कनक बाव । त्योंही जग मध्ये ब्रह्म है ब्रह्म मध्ये जगत सुभाव । कहा. चंपक बनक कहा ? दामिनी यो दुरि जात देह की -कबीर (शब्द॰) । (ख) चढ़ बबुरे चंग ज्यों ज्ञान ज्यौं दमक त ।-मति० ग्रं॰, पृ० ३०७ । सोक समाज । करम धरम सुख संपदा, त्यौं जानिबे कुराज । —तुलसी (शब्द०)। वनककड़ी-संशा खी० [हिं० बन+ककड़ी ] पापड़े का पेड़ । बधैया-मज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे॰ 'बधाई' । विशेप-यह सिकिम से लेकर शिमले तक पाया जाता है। बधैयार-वि० [हिं० बधाई] बधाई देनेवाला । बधाईदार । उ०- इस पौधे से एक प्रकार का गोद और एक प्रकार का रग भी निकाला जाता है। इसका गोद दवा के काम आता है। तब पहिले ही नारायणदास के पास श्री गुसाईं जी को बधैया पायो।-दो सौ वावन०, भा॰ २, पू १०६ । बनकचूर-संज्ञा पुं० [हिं० वन+कचर ] एक पौधा । दे० 'कचूर'। बध्य-वि० [सं० ] मारने के योग्य । वध के योग्य । बनकटी'-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] पफ प्रकार का बास जिससे पहाड़ी लोग टोकरे बनाते हैं। बनक-संज्ञा पुं० स० वणिक् ] दे० वणिक । उ०-बंधन बनक फायथ्थ संग, पसवान लोग जे रषिक अंग बनकटी-सशा स्त्री० [हिंबन+काटना ] जंगल काटकर उसे रा०, १४११२६ । घाबाद करने का स्वत्व वा अधिकार जो जमीदार या मालिक बन-संज्ञा पुं० [स० वन] १. जंगल । कानन | अरण्य । २. समूह । की अोर से किसानो भादि को मिलता है । ३. जल । पानी। उ०-वाघ्यो वननिधि नीरनिधि, जलघि बनकठा-वि० [हिं० बन+ काठ ] जंगली लकड़ी।