पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१५६

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परंबड २३६५ बरराना बरबंड -वि० [सं० बलवन्त ] १. बलवान् । ताकतवर। सहज में खूब अच्छी तरह घूम सके। जिस स्थान पर छेद २. प्रतापशाली। ३. उद्द। उद्धत । ४. प्रचंड । प्रखर । करना होता है, उस स्थान पर नोकीला कोना लगाकर और बहुत तेज । दस्ते के सहारे उसे दबाकर रस्सी की गराड़ियों की सहायता घरवट-क्रि० वि० [सं० वलवत् ] १. बलपूर्वक | जबरदस्ती । से अथवा और किसी प्रकार खुब जोर जोर से घुमाते हैं, बरवस । उ०-वेधक अनियारे नयन वेधत करि न निपेषु । जिससे वहां छेद हो जाता है । बरबट वेषतु मो हियो तो नासा को वेधु ।—बिहारी बरमा--पंशा-पु० [सं० ब्रह्मदेश ] १. भारत की पूर्वी सीमा पर, (शब्द०) । २. दे० 'बरबस' । उ०—(क) नैन मीन ऐ बगाल की खाड़ी के पूर्व और आसाम तथा चीन के दक्षिण नागरनि, बरबट बांधत पाइ । मतिराम (शब्द॰) । का एक पहाड़ी प्रदेश । (ख) कैसे अपवस राखौ अपनपी है वरबट चित चोर । विशेष-यह प्रदेश पहले वहाँ के देशी राजा के अधिकार में घनानंद, पृ० ५४८ । था । फिर अंग्रेजो के अधिकार मे आ गया और बरबत-ज्ञा पुं० [अ० ] एक प्रकार का बाजा। भारतवर्ष में मिला लिया गया। दुसरे महायुद्ध के बाद बरबरी'-शा स्त्री॰ [अनु॰] व्यर्थ की बातें । बक बक । बकवाद । से यह एक स्वतंत्र देश हो गया है। इस प्रदेश मे खान मोर उ.-सुनि भृगुपति के वैन मनही मन मुसक्यात मुनि । अवै जंगल बहुत अधिकता से हैं। यहाँ चावल बहुत अधिकता से होता है । इस देश के अधिकाश निवासी बौद्ध हैं। ज्ञान यह है न, वृथा बकत बरबर वचन ।-रघुराज २. एक प्रकार का पान जो बहुत दिनों तक रखा जा सकता है। (शब्द०)। बरबर-वि० वड़बड़ानेवाला । बकवादी। उ०-प्रालि ! विदा बरमी'-पचा पुं० [हिं० बरमा + ई (प्रत्य॰)] बरमा देश का निवासी। बरमा का रहनेवाला। करु वटुहि बेगि, बड़ बरबर ।-तुलसी प्र०, पृ० ३४ । बरबर-संज्ञा पुं॰ [सं० वर्बर ] दे० 'बबर' । बरमी-संज्ञा लो० बरमा देश की भाषा । घरमोर-वि० वरमा संबधी । बरमा देश का । जैसे, बरमी चावल । बरवराना-क्रि० स० [अनुध्व० ] ३० 'वरीना' । बरमी-ज्ञा स्त्री० गोली नाम का पेड़ । विशेष दे० 'गीली'। वरवरी--प्रज्ञा स्त्री० [सं० बर्वरी] १. बबर या बर्बरी नामक देश । २. एक प्रकार की बकरी । वरम्हंड ए -ज्ञा पुं० [गं० ब्रह्माण्ड ] दे० "ब्रह्माड' । उ-कीन्हेसि सप्त मही बरम्ह डा। कीन्हेसि भुवन चौदहो खंडा।-जायसी बरवस-क्रि० वि० [सं० बल+वश ] १. बलपूर्वक । जबरदस्ती । अं०, पृ० १॥ हठात् । २. व्यर्थ । फिजूल । उ०-खेलत में कोउ काको बरम्ह- ज्ञा पु० [सं० ब्रह्म ] दे॰ बह्म' । गुसैयाँ । हरि हारे जीते श्रीदामा बरबस ही क्यों करत बरम्हबोट-ज्ञा स्त्री० [हिं० वरमा (देश) +4 घोट (= नाव)] रिसैयौ ।-सूर (शब्द०)। प्राय: चालीस हाथ लवी एक प्रकार की नाव ।। बरबाद-वि० [फा० .] १. नष्ट । चौपट | तवाह । जैसे, 'घर बर- विशेष—इसका पिछला भाग अपेक्षाकृत अधिक चौडा होता है। बाद होना। २. व्यर्थ खर्च किया हुमा । जैसे,-सैकड़ों रुपए इसके बीच में एक बड़ा कमरा होता है और पीछे की ओर बरबाद कर चुके, कुछ भी काम न हुआ। तुम्हें क्या मिल ऐसा यंत्र बना होता है जिसे बारह प्रादमी पैर से चलाते हैं। बरवादी-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा० ] नाश । खरावी। तवाही । जैसे,- बरम्हा'-पंज्ञा पुं० [ सं० ब्रह्मा ] ३० ब्रह्मा' । उ०-एक एक बोल परथ चौगुना । इंद्रमोह बरम्हा सिर धुना।—जायसी ग्रं. इस झगड़े में तो हर तरह तुम्हारी बरवादी ही है। (गुप्त), पृ० १६१ । बरम-सज्ञा पुं० [सं० वर्म जिरह वक्तर । कवच । शरीरवाण । बरम्हा- ज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बरमा' । उ०—(क) असन वितु बिनु बरम विनु रण बच्यो कठिन कुघायं । तुलसी (शब्द॰) । (ख) पहिर वरम, असि, बरम्हाउ--संज्ञा पुं॰ [ हिं० बरम्हाव ] : 'वरम्हांव' । उ०- (क) ठाढ़ देखि सब राजा राऊ । बाएं हाथ दीन्ह वरम्हाऊ । चरम खरे सो सुभट बिराजै ।-नंद० प्र०, पृ० २०६ । -जायसी (शब्द०) । (ख) भइ प्रज्ञा को भोट मभाऊ । बाएं बरमा-संज्ञा पु० [सं० ब्रह्म ] दे० 'ब्रह्म' । हाथ देइ बरम्हाक ।-जायसी पृ० ११४ । यौ.–घरमसूत = जनेक । ब्रह्मसूत्र । यज्ञोपवीत । उ०-कंधे पर बरम्हाव@t-संज्ञा पुं॰ [ स० ब्रह्मा + हिं० प्राव (प्रत्य॰)] १. बरमसूत पहने रग्घू मजदूरी करने कैसे जाते । -भस्मावृत०, ब्राह्मणत्व । २. ब्राह्मण का आशीर्वाद । पृ० ८५ घरम्हावना-क्रि० स० [सं० ब्रह्म+हिं० श्रावना (प्रत्य॰)] माशी- बरमा'-प्रज्ञा पु० [ देश०] [स्त्री० अला० बरमी ] लकड़ी दि देना । प्रासीस देना। 30-जाति भाट कित प्रौगुन प्रादि में छेद करने का, लोहे का बना एक प्रसिद्घ घौजार लावसि । बाएं हाथ राक्ष बरम्हावसि ।-जायसी ग्र०, विशेष—इसमें लोहे का एक नोकीला छड़ होता है जो पीछे की पृ० ११५॥ मोर लकड़ी के एक दस्ते में इस प्रकार लगा रहता है कि पररानाल-क्रि० प्र० [हिं० ] दे० 'चरीना' । उ०-जोग जोग जायगा?