पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१५७

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घररे ३३६६ घरसाना कबहुँ न जाने कहा जोहि - जाकी, ब्रह्म ब्रह्म कबहुं वहकि विशेष-प्रागरे प्रादि की तरफ घर में एक तागा रहता है । वररात हो।-पोद्दार-मभि० न०, पृ० ३४३ । जिसके नाम का यह तागा होता है उसके एक एक जन्म दिन पररे-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] भिड़ । दे० 'वर'। पर इस तागे में एक एक गांठ देते जाते हैं। इसी से जन्म- दिन को बरसगांठ कहते हैं। प्राचीन समय मे भी ऐसी ही वरवट-मज्ञा सी० [ देश० ] दे० 'तिल्ली' (रोग ) । प्रथा थी। घरवल-मज्ञा पु० [देश॰] भेड़ की एक जाति । विशेष -इस जाति की भेड़ हिमालय पर्वत के उच्चर मे जुमिला बरसना-क्रि० प्र० [सं० वर्पण ] अाकाश से जल की वू'दो का निरतर गिरना । वर्षा का जल गिरना। मेह पड़ना। २. से किरट तक और कमाऊँ से शिकम तक पाई जाती है । यह पहाडी भेड़ो के पांच भेदो मे से एक है। इसके नर के सिर वर्षा के जल की तरह ऊपर से गिरना । जैसे, फूल बरसना । ३. बहुत अधिक मान, सख्या या मात्रा में चारों ओर से पर दृढ़ सीगें होती हैं और वह लड़ाई में खूब टक्कर लगाता प्राकर गिरना, पहुंचना या प्राप्त होना । जैसे, रुपया बरसना । है। इसका कन यद्यपि मैदान की भेडो से अच्छा होता है, तो भी मोटा होता है और कंवल आदि बनाने के काम में ही संयो• क्रि०-जाना। माता है । इसका मांस खाने में रूखा होता है। मुहा०-बरस पड़ना = बहुत अधिक क्रुद्ध होकर डांटने, डपटने घरवा-संज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'बरवै'। लगना । बहुत कुछ बुरी भली बातें कहने लगना । बरवे -सज्ञा पुं० [ देश० ] १६ मात्रामो का एक छंद जिसमें १२ और ४. बहुत अच्छी तरह झलकना । खूब प्रकट होना । जैसे,- ७ मागायो पर यति और अंत में 'जगण' होता है। इसे उनके चेहरे से शरारत बरसती है । शोभा बरसना। ५. 'ध्र व' और 'कुरंग' भी कहते हैं। जैसे,-मोतिन जरी दाएं हुए गल्ले का इस प्रकार हवा में उड़ाया जाना जिसमे किनरिया बिथुरे बार। दाना अलग और भूसा अलग हो जाय । प्रोसाया जाना । डाली होना। बरष-संज्ञा पु० [स० वर्ष] दे० 'बरषा' । उ०-बात बरष अपने तन सहैं। काहू सौ क्छु दुख नहिं कहैं । -नंद००, पृ. वरसनि--सज्ञा स्त्री॰ [हिं० ] वरसने की क्रिया या भाव । ३०० । २. साल । वर्ष । बरस । उ०-वरष चारि दस वरसाइत -संज्ञा स्त्री॰ [ स० वट + सावित्री ] जेठ वदी प्रमावस विपिन बसि करि पितु वचन प्रमान ।-मानस, २।५३ । जिस दिन लिया वटसावित्रो का पूजन करती हैं । उ०-बर परपना-क्रि० प्र० [हिं० परष ( = वर्षा) +ना (प्रत्य०)] दे० साइति है मिलन की, बरसाइत है लेखि । पूजन बर साइत 'बरसना'। भली, बरसाइत चलि देखि । -स० सप्तक, पृ० ३६२ । बरषा-संज्ञा स्त्री० [स० वर्षा ] पानी बरसना । वृष्टि | उ० बरसाइना-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं० वरस + प्राइन (प्रत्य॰)] प्रति वर्ष का बरषा जब कृषी सुखाने । समय चूकि पुनि का पछ बच्चा देनेवाली गाय । वह गौ जो हर साल बच्चा दे । ताने ।—तुलसी (शब्द॰) । २. वर्षाकाल । बरसात । वरसा-वि० [हिं० बरसना+भाऊ (प्रत्य॰)] वरसनेवाला । बरपाना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'बरसाना' । वर्षा करनेवाला । (बादल मादि)। बरपासन-सञ्चा पुं० [स० वर्षाशन ] एक वर्ष की भोजन- बरसात-मज्ञा स्त्री० [ स० वर्षा, हिं० घरसना+पात (प्रत्य॰)] सामग्री। उतना अनाज मादि जितना एक मनुष्य अथवा पानी बरसने के दिन । सावन भादों के दिन जव खूब वर्षा एक परिवार एक वर्ष मे खा सके । उ०-गुरु सन. होती है । वर्षाकाल | वर्षाऋतु । कहि वरषासन दीन्हे । आदर दान बिनय बस कीन्हे ।- बरसाती'-वि० [सं० वर्षा ] वरसात का । बरसात संबंधी । जैसे, मानस, २०८० बरसाती पानी। बरसाती मेढक । बरस-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वर्ष ] बारह महीनों अथवा ३६५ दिनों का बरसाती-सञ्ज्ञा पुं० [सं० वर्षा, हिं० वरसात+ई (प्रत्य॰)। १. समूह । वर्ष । साल । जैसे,—(क) दो वरस हुए, बहुत बाढ घोड़ों का स्थायी रोग जो प्रायः बरसात में होता है । २. पाई थी। (ख) प्रभी तो वह घार व रस का बच्चा है । एक प्रकार का श्राख के नीचे का घाव जो प्रायः बरसात में विशेष-दे० 'वर्ष'। होता है। ३. पैर में होनेवाली एक प्रकार की फुसियां जो यौ०-घरसगाँठ। वरसात में होती हैं। ४. चरस पक्षी। चीनी मोर । तन मुहा०—बरस दिन का दिन = ऐसा दिन (त्योहार या पर्व प्रादि) मोर । ५. एक प्रकार का मोमजामे या रबर भादि का बना जो साल भर में एक ही बार पाता हो । बड़ा तिहवार । हुमा ढीला कपड़ा जिसे पहन लेने से शरीर नहीं भोगता। घरसगाँठ-संज्ञा प्रो० [हिं० बरस+गाँठ ] - वह दिन जिसमें किसी ६. सबसे ऊपर का खुला हवादार कमरा । ७. मकान का जन्म हुमा हो। वह दिन जिसमें किसी की. प्रायु का एक के प्रागे का वह छतदार हिस्सा जहाँ गाड़ी ( वग्घी, कार बरस पूरा हुआ हो। जन्मदिन । सालगिरह । उ०—कुछ आदि) रोकी जाती है। न मिला हमको बरसगाठ से। एक बरस और गया गांठ से । बरसाना'-क्रि० स० [हिं० बरसना का प्रे० रूप १.भाकाश से -(शब्द०)। जल की बूदे निरंतर गिराना। वर्षा करना । वृष्टि करना । . 2