पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१७०

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बलात्काराभिगम ३४०६ बलासी' बलात्काराभिगम-संज्ञा पुं० [सं०] बलात् किसी स्त्री के सतीत्व (शब्द० ) । ३. भूत प्रेत की बाधा। ४. दु खदायक रोग का नाश करना । जिनाबिल्जन । जो पीछा न छोड़े। व्याधि । उ०--अलि इन लोचन को कहूँ बलात्कारित-वि० [सं० ] जिससे बलात्कार से कुछ कराया जाय । उपजी बड़ी बलाय | नीर भरे नित प्रति रहैं तऊ न प्यास जिसपर बलात्कार करके कोई काम कराया जाय । बुझाय ।-बिहारी (शब्द०)। ५. पोछा न छोड़नेवाला बलात्कृत-वि० [सं०] जिसके साथ बलात्कार किया गया हो। शत्रु । अत्यंत दुखदायी मनुष्य । बहुत तंग करनेवाला श्रादमी। उ०-बापुरो विभीषन पुकारि बार बार कह्यो बलात्मिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] हाथीसूई ( हस्तिशुडी) नाम वानर बड़ी वलाय बने घर घालि है । -तुलसी (शब्द॰) । का पौधा। मुहा०-बलाय ऐसा करे या करती है ऐसा नहीं करता है या बलाधिक-वि० [सं०] जो बल में अधिक हो। अधिक शाक्ति- करेगा। दे० 'ला' । उ०—(क) तो अनेक अवगुन भरी चाहै वाला [को० । याहि वलाय । जो पति संपति हूँ बिना जदुपति राखे बलाधिकरण-संज्ञा पुं० [स०] १. सैनिक काररवाई । २. सेना का जाय ।—बिहारी (शब्द०)। (ख) जा मृगनैनी के सदा प्रधान कार्यालय । वेनी परसत पाय । ताहि देखि मन तीरथनि विकटनि जाय बलाधिकृत-संज्ञा पुं० [सं० ] वह जिसके अधिकार में सेना हो। बलाय ।--बिहारी (शब्द०)। (ग) उठि चलो जो न माने सेनापति । उ-बलाधिकृत पर्णदत्त की प्राज्ञा हुई कि काहू की बलाय जानै मान सों जो पहिचानै ताके पाइयतु है । महाराजपुत्र गोविंद गुप्त को, जिस तरह हो, खोज निकालो। -देशव (शब्द॰) । बलाय लेना=(अर्थात् फिसी का रोग -स्कंद०, पृ०३८ । दुख अपने ऊार लेना) मंगल कामना करते हुए प्यार बलाधिक्य-संज्ञा पुं० [सं०] शक्तिसंपन्नता। बल या सेना की करना। अधिकता [को०] | विशेप-स्त्रियाँ प्राय: बच्चों के ऊपर से हाथ घुमाकर और बलाधिक्ष-संज्ञा पुं० [सं० बलाध्यक्ष ] दे० 'बलाध्यक्ष' । उ०- फिर पर ले जाकर इस भाव को प्रकट करती हैं। उ०- वलाधिक्ष चितामनि राइय । दिय निसान भूपवि सुख पाय । (क) निकट बुलाय बिठाय निरखि मुख आँचर लेति प० रासो, पु० २०॥ वलाय ।-सूर (शब्द०)। (ख) ले बलाय सुकर लगायो निरखि मंगलचार गायो । —सूर (शब्द० ) । घलाध्यक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] सेनापति । सेनानायक । ६. एक रोग जिसमें रोगी की उँगली के छोर या गांठ पर फोड़ा बलानाल+-क्रि० स० [हिं०] बुलाना । 30-कुँवर बलावे हो जाता है । इसमें रोगी को बहुत कष्ट होता है और उँगली वाड्या,. राजमति मूकलावी सुमाई । -बी० रासो, फट जाती या टेढ़ी हो जाती है। पृ०२७ । बलायत-संज्ञा पुं० [हिं० विलायत ] दे० 'विलायत' । उ०—बला. बलानुज-संज्ञा पुं० [सं०] बलराम के छोटे भाई । कृष्ण (को०। यत की सब उन्नति का मूल लाई वेकन की यह नीति है।- चलान्वित-वि० [सं०] बलाढय । पराक्रमी [को॰] । श्रीनिवास ०, पृ० १५८ । बलापंचक-संशा पुं० [सं० चलापञ्चक ] बला, पतिबला नागबला, वलाराति-संज्ञा पुं० [सं०] १. इंद्र । २. विष्णु । महावला और राजबला नामकी पांच भोषधियों के समुदाय बलालक-संज्ञा पुं० [सं०] जल प्रांवला । का नाम । विशेष-दे० 'बला'। वलावंध+-सज्ञा पुं॰ [देश॰] अरावली । प्राइवला नामक पर्वत- बलावलेप-संज्ञा पुं॰ [ सं०] गर्व । अहंकार । वल का दर्प। बलाश-संशा पुं० [सं०] दे० 'बलास'। माला -10-कहै मतिराम, सब राजत अनुप गुन, राव भावसिंह बलाबंध सुलतान के ।-मति० ग्रं॰, पृ० ३७१ । बलास-संज्ञा पु० [सं०] १. एक रोग जिसमें कफ और वायु के प्रकोप से गले और फेफड़े में सूजन और पीड़ा होती है, सांस बलावल-संज्ञा पुं० [सं०] १. बल और प्रवल । २. महत्व और लेने में कष्ट होता है । २. क्षय । यक्ष्मा (को०)। हीनता । उत्कृष्टता और लघुता ( तुलनात्मक रूप से किन्ही दो का)। बलास-संज्ञा पुं० [स० बलाय ] वरुना नाम का पौधा । चलामोटा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] नागदमनी नाम की ओषधि । बलासक-संज्ञा पुं० [सं०] रोग कारण आँख की पुतलियों की सुफेदी पर प्राया हुआ पीलापन [को०] । चलाय'-संज्ञा पुं० [सं०] बस्ना नामक वृक्ष । वन्ना । बलास । बलासबस्त--संज्ञा पुं० [सं० ] एक नेत्ररोग [को०] । बलायरे-संज्ञा पुं० [अ० बला] १. प्रापचि । विपत्ति । बला । बलासम-संज्ञा पुं० [सं० J बुद्ध । ३०-लालन तेरे मुखं रहीं वारी। बाल गोपाल लगो इन नैननि रोगु बलाय तुम्हारी। सूर (शब्द०)। २. दुख । बलासवर्धन-वि० [सं०] कफ या श्लेष्मा वढ़ानेवाला [को॰] । कष्ट । उ०-हरि को मति पूछति इमि गायो बिरह बलाय । बलासी-संज्ञा पुं० [सं० बलाय, विलासिन् ] बलास । वरुना । परत कान तजि मान तिय मिली कान्ह सों जाय।-पद्माकर बन्ना नाम का पेड़। ७२०