पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बहकानी बहना या से भरकर परिणाम या पौचित्य मादि का पिचार न करना । जैसे,-प्राज बहुत बहककर बोल रहे हो, उस दिन कुछ करते घरते नहीं बना। यही बहकी बातें करना=(१) मदोन्मत्त की सी बातें करना। (२) बहुत बढ़ी चढ़ी बातें करना। बहकाना-क्रि० स० [हिं० घहकना ] १. ठीक रास्ते से दूसरी पोर ले जाना या फेरना । रास्ता भुलवाना । भटकाना । संयो॰ क्रि०-देना। २. ठीक लक्ष्य या स्यान से दूसरी प्रोर कर देना । लक्ष्यभ्रष्ट कर देना । जैसे,-लिखने में हाथ बहका देना । ३. भुलावा देना । भरमाना । बातो से फुसलाना। कोई प्रयुक्त कार्य कराने के लिये बातों का प्रभाव डालना । जैसे,—उसे बहका- कर उसने यह काम कराया है। उ०-नई रीति इन अवै चलाई। काहू इन्हे दियो वहकाई।-सूर (शब्द०) । ४. (बातो से) शांत करना । वहलाना । (बच्चों को) । बहकावट-संज्ञा स्त्री० [हिं० बहकाना+श्रावट (प्रत्य॰)] बह- काने की क्रिया या भाव । बहकावा . सज्ञा पु० [हिं० ] भुलावा । वहकाने या भुलावे मे डालने- वाला कार्य। बहतोलg+-सञ्चा स्त्री० [हिं० बहता+ल (प्रत्य०) ] जल बहाने की नाली। बरहा। उ०-ग्रीषम निदाघ समै बैठे अनुराग सरे बाग में वहति बहतोल है रहंट की।-लाल (शब्द०) । बहत्तर-वि० [सं० द्वासप्तति, प्रा० बहत्तरि ] सत्चर और दो। सत्तर से दो अधिक। बहत्तर-संशा पुं० सत्तर से दो अधिक की संख्या और अंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-७२। बहत्तरवा-वि० [हिं० यहत्तर+वाँ (प्रत्य॰)] [वि॰ स्त्री० बहत्तरवीं ] जिसका स्थान बहत्तर पर पड़े । जो क्रम में इक- हत्तर वस्तुप्रो के बाद पड़े। बहदुरा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] एक कीड़ा जो धान या चने में लगकर उनके पत्ते काटकर गिरा देता है। वहन'-संशा स्त्री० [हिं० ] दे० 'बहिन' । उ०-उसने आशीर्वाद दिया कि बहन, तुम भी हम सी हो।-प्रेमघन०, भा०२, पृ० २१६ । बहन-संज्ञा पुं० [सं० वहन ] बहने की क्रिया या भाव । उ०- वायु को वहन दिन दावा को दहन, बड़ी बड़वा अनल ज्वाल जाल में रह्यो परे। केशव (शब्द०)। बहनड़ी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बहन +ही (प्रत्य॰)] बहिन । भगिनी । उ०-पान पुरुष हूँ बहनड़ी, परम पुरुष भरि । हूँ अबला समझी नही, तू जानै कर्तार ।-दाद० बानी, पृ० ३५१ । बहना-क्रि० प्र० [सं० वहन ] १. द्रव पदार्थों का निम्न तल की मोर पापसे आप गमन करना । पानी या पीने के रूप की वस्तुमों का किसी ओर चलना । प्रवाहित होना । 10--- हिमगिरि गुहा एक अति पावनि । वह समीप सुरसरी सुहा- वनि । —तुलसी (शब्द०)। संयोक्रि०-जाना। मुहा०-बहती गंगा में हाथ धोना = किसी ऐसी बात से लाभ उठाना जिससे सब लाभ उठा रहे हों। पहती नदी में पाँव पखारना = दे० 'बहती गंगा में हाथ धोना' । वह चलना 3 पानी की तरह पतला हो जाना । जैसे, दाल तरकारी का। २. पानी की धारा में पड़ककर जाना । प्रवाह में पड़कर गमन करना । जैसे, बाढ़ मे गाय, बैल, छप्पर पादि का बढ़ जाना । ३. नवित होना । लगातार बूद या धार के रूप में निकलकर चलना । (जो निकले और जिसमे से निकले दोनों के लिये )। जैसे, मटके का घी बहना, शरीर से रक्त बहना, फोड़ा बहना । ४. वायु का संचरित होना । हवा का चलना । जैसे, हवा बहना । उ०-(क) गुज मजुतर मधुकर नी । त्रिविध बयारि वह सुख देनी।-तुलसी (शब्द॰) । (ख) चाँदनी के भारन दिखात उनयो सो चंद गंध ही के भारन बहत मंद मंद पौन ।-द्विजदेव (शब्द०)। ५. कही चला जाना । इधर उधर हो जाना । हट जाना। दूर होना । जैसे,—(क) मंडली के टुटते ही सब इधर उधर हो गए । (ख) कबूतरों का इधर उधर बह जाना । (कबूतर- बाज)। उ०-सुक सनकादि सकल मन मोहे, ध्यानिन ध्यान बह्यो।-सूर (शब्द०)। ६.ठीक लक्ष्य या स्थान से सरक जाना। हठ जाना । फिसल जाना । जैसे,-टोपी के गोट फा नीचे बह पाना । घोती का कमर के नीचे बह आना। ७. बिना ठिकाने का होकर घूमना । मारा मारा फिरना । जैसे, न जाने कहां का बहा हुआ पाया, यहाँ ठिकाना लग गया। ८. सन्मार्ग से दूर हो जाना । कुमार्गी होना। भावारा होना । चौपट होना। बिगड़ना। चरित्र- भ्रष्ट होना। जैसे,-लुच्चों के साथ में पड़कर वह बह गया। उ०-मातु पितु गुरु जननि जान्यो भली खोई महति । सूर प्रभु को ध्यान धरि चित प्रतिहि काहे बहति ।-सूर (शब्द०)। ६. गया बीता होना । अधम या बुरा होना। जैसे,-वह ऐसा नहीं बह गया है कि तुम्हारा पैसा छूएगा। १०. गर्भपात होना । अड़ाना । (चौपायो के लिये )। ११. वहुतायत से मिलना । सस्ता मिलना । संयो० कि०-चलना। २. ( रुपया प्रादि ) डूब जाना । नष्ठ जाना। व्यर्थ खर्द हो जाना । १३. कनकौवे की डोर का ढीला पड़ना। पतंग का पेटा छोड़ना । १४. जल्दी जल्दी अंडे देना। मुहा०-बहता हुआ जोड़ा=बहुत अंडे देनेवाला जोड़ा (कबूतर )। १५. लादकर ले चलना । ऊपर रखकर ले चलना । वहन करना। 30-जन्म याहि रूप गयो पाप बहत ।—सूर (शब्द०)। १६. खीचकर ले चलना (गाड़ी प्रादि )। उ०-प्रस कहि चढ्यो ब्रह्म रथ माही । श्वेत तुरंग बहे रच काही।-रघुराज