पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१८२

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दरिया मंदिने घोटे मचारी जो प्रायः मदिर के बाहर ही एटापार दूसरे प्रोर से जाना । ना पास) पार भुपाकर पिच परी पोरगे जाना । २. मनोरना। हरिया - माहरा बाहर संघसी। चित्त प्रमग्न पा.-कोटी देरजी पिये बगीचे पगा जाता । ३. भलाया देना। मानगाना । यहरियाना'-- ३० [हिं० पाटर - इयाना (नामधातु प्रत्य०)] यहफाना । किसी के साथ एसा करना कि गह साना १. बाहर की पोर फरना । निकालना । २. पतग करना। रह जाय । जैसे,—उसे पहनाकर हम गुप या निस जुदा करना । ३. नाव को पिनारे से हटाकर मंझपार की लाए है। मोर ले जाना । (मल्लाह ) । यद्दरियाना-किप०१. बाहर की मोर होना। २. अलग बहलाव-पु० [हिं० पहलना ] पित्त या किसी पोर मुहार के लिपे लग जाना। मनोरजन प्रसा। होना । जुदा होना । ३. नाव का किनारे से हटकर मंझधार दी पोर जाना। यी-मनबहलाय। वहरी'-मेल की• [प्र. ] एक शिकारी चिड़िया जिम का रूप रंग पहलावा ५० [ हिं• पहलाना ] भुगावा । यहा।।। 30--- मोर स्वमाय बाज का सा होता है, पर पापार कुछ छोटा मंतमुरा संगठन पलायन, बहलाया है। -रजत०, १० ६३ । होता है। उ०-जुररा, वहरी, बाज दह, पीते, स्नान, चहलित-वि० [सं०] अत्यधिक मगरा पोर ठोस । सचान ।-के शव ग्रं, भा० १, पृ० १४४ । वहालिया- '० [हिं० ] ६० हेसिया' । वहरी-वि० [अ० या ] ३० 'बहो। चहलो-गंग वी० [ बहन ] एक प्रकार को रोकार या वहरू-संज्ञा पु० [२०] मध्यप्रदेश, बरार और मपरास में होने परप्यार गाली जिसे येस सोपा । म धागार की वाता मझोले पाकार का एक पेड़ । बैलगाड़ी। विशेष- इराकी लकड़ी सुदर, चमकदार और मजबूत होती है। पहला-शा: [हिं० पालमा प्रयया प्रा० पाहाता ] मानद । हल, पाटे प्रादि खेतो के सामान, गाड़ियों तथा तसवीरों के प्रमोद । उ०-सा पला पायो रप गयो महासा धर्म चौरठे इस लकड़ी के बनते हैं । लल्ला देत ईस माज अनपशुपार फो।---रघुराज (३०) । वहरूप -- पुं० [हिं० चा+रूप ] एक जाति जो बैलों का बहल्ली-~in t० [हिं० पाहर पहर +शी (प्र०) ] YRठी गरा व्यवसाय करती है और गोरखपुर, पंपारन पादि पुरवी जिलों एक च । इसमें प्रतिपक्षी मारा मापे पर पाए हागपो पयापर में वसती है। गुम जाते है और साथ ही उसकी टाल पर ग मारकर बहरो-वि० [हिं० ] : 'बहरा' । पितयार देते है। वहल'-सका ग्री० [सं० वहन ] एक प्रकार की छतरीदार या मंप. पहशत-संसा सी० [अ० पाहशत ] भय । डर । गोफ । पपीपी। दार गाड़ी जिसे बैल खीचते हैं। रथ के पार की बैलगानी। उ०-बजाय समीपत पुश करने मे एकप्रमीय निरमपी सहसढ़िया । रब्बा। वहशत और घबराहट पैदा करती है ।--प्रेगन०, भा.२, वहल-वि० [सं०] १. प्रत्यधिक । बहुत ज्यादा । २. घना | ठोस । ०१५५। ३. गुच्छेदार । मन्येदार । जैसे, दुम। ४. मजबूत । गाढ़। वहस --- . [ ] सम । उ०--विषम पहम विपग छ । ५. कार्कश । माठोर । जैसे, ध्वनि (o | बहस इम पद चतु दास हैक परी|--- Fo, पृ० ६२ । घहल'-संज्ञा पुं० एका प्रकार की ईरा। घहसी० [थ०] १. वाद । यसोगामंकी पहलना-क्रि० प्र० [हिं० बहताना का अकर्मक रूप] १. जिस गुक्ति। किसी विषय को सिद्ध करने निजामत्युतर पात से जी जया या दु.गी हो उसकी प्रोर से पान के साप वावगीय। हटकर दूसरी पोर नाना । अंगट या दुगो यात भूलना कि० प्र०-परना। पौर चिरा का पूनरी घोर लगना । जीमे,-दो चार महीने २. विवाद । झगडा हुमत। ३. दोदा था। बाद। बाहर जाकर नहो, जी यह जायगा । उ.-मोदि गुम्दवाड़ी यहाको गीत दुगर। पप पाने संयो० कि०-जाना। विरदी निवाहत पान ।-विहान (मद०)। २. मनोरंजन होगा। चित मान होना । जंगे,-पोली दर पीक-यास यादमा विवादिया। चीने में जाने से जी बाल जाता है। वहसना. पल यम+ना (.)11. पाग वहल वर्म-० [सं० यहापामन् ] एक नेवरोग | करना। ईपिना। २. पहला-n.in [10] एला या शाम की गा पा मोर उमफा सपना । उ.-ria ग . गजिन दो मरगय २६ बहलाना-सि० [फा० यहागा ( स्वस्थ) मा हि मुना] १. नजिराम (110) जिस बात से जी व्या या दुसी हो जी पर से पार बदाया। "