पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

... 2. ', 1 1: List 1 1 . 3: में से एक। पहुरिया ३४२८ बहुशः बहुरिया-संज्ञा स्त्री० [सं० बधूटी, बटिका, प्रा० बहूडिया ] नई विशेष—इस दिन बहुला गाय के सत्यव्रत के स्मरणार्थ व्रत वहू। उ०-जाग बहुरिया पहिर रंग सारी-धर्म० किया जाता है। श०, पृ०७०।।.1 बहुलानुरक्त ( सैन्य )-वि० [सं०] कौटिल्य के अनुसार प्रजा से बहुरिया-संज्ञा स्त्री॰ [देशी ] बुहारी । मार्जनी (को० ॥ प्रेम रखनेवाली (सेना)। सर्वप्रिय ।' बहुरी-संज्ञा सी० [हिं०' भौरना (= भूनना)] भुना हुमा खडा बहुलाबन-संचा पु० [सं०] वदावन के ८४ बनो में से एक बन । प्रश्न । चर्वण । चबेना ।' उ.-सेतुवा कराइन बहुरी विशेप- कहते हैं, इसी वन में, बहुला गाय ने , व्याघ्र के साथ भुजाइन । कबीर० १०, पृ०.५५।।।।।। अपना सत्यव्रत निवाहा था । बहुरूप वि० [ सं०] अनेक रूप धारण करनेवाला। बहुलाश्व-संज्ञा पुं० [सं०] भागवत में बणित मिथिला के एक, परम बहुरूप-संज्ञा पुं० १. विष्णु । २. शिव । ३. कामदेव । ४. सरट । भागवत राजा। गिरगिट । ५. ब्रह्मा। ६. बाल । प्रियव्रत के पौत्र और बहुलिका-संज्ञा स्त्री० [सं०] सप्तपिमंडल ।, भेषातिथि के पुत्र का नाम ( भाग०)। ७. एक वर्ष का नाम । . एक बुद्ध का नाम । . ताव तुत्य का एक भेद बहुलित- त-वि० [सं०] अभिवति । बढ़ाया हुप्रा.[को०] ! जिसमें अनेक प्रकार प धारण करके नाचते हैं। १०. बहुली -सज्ञा स्त्री० [ स० बहुला]इलायची । उ०-बूझा मरुमा, पाल । केश (को०)। ११. सूर्य (को०)। कुंद सों कहै गोद पसारी। बकुल, बहुलि, बट कदम पै: पहुरूपक-संज्ञा पुं० [सं० 1 एक जंतु । ठाढ़ी ब्रजनारी i—सूर (शब्द०)। पहुरूपा-संवा स्त्री० [सं०] १. दुर्गा पग्नि की सात जिह्वामों बहुलीकृत-वि॰ [ स०] १. अभिवृद्ध। वधित । २. व्यक्त ! प्रकटित [को०] । बहुरूपिया'-वि० [हिं० बहु+रूप+इया (प्रत्य)] १. अनेक बहुवचन-संज्ञा पुं॰ [सं०] व्याकरण की एक परिभाषा जिससे (हिंदी "प्रकार के रूप धारण करनेवाला । २: नकल बनानेवाला मे द्विवचन न होने से ) एफ.से प्रषिक वस्तुप्रो के होने का बोध होता है । जमा। बहुरूपिया -संज्ञा पुं० वह जो तरह तरह के रूप बनाकर अपनी जीविका करता है। बहुवर्ण-व० [सं०] १. हुन रंगों से युक्त । बहुरंगा । २. बहुत वर्गों (ध्वनियो) वाला। महुरूपी' वि० [सं० बहुरूपिन् ] पनेक रूप धारण करनेवाला । बहुवर्म-संज्ञा पुं० [सं०] प्रॉखों का एक रोग जिसमे पलकों के चारो बहुरूपी-संज्ञा पुं० बहुरूपिया । मोर छोटो छोटो फुसियों सी फैल जाती है...... बहुरेयस्-संज्ञा पुं० [सं० ] ब्रह्मा । बहुवल्क-सज्ञा पु० [सं०] पियासाल वृक्ष (को०] बहुरोमा-संज्ञा पुं० [सं० बहुरोमन् ] १. भेषः । मेढ़ा । २. वह जिसे अधिक बाल हो । लोमश-। ३., घना (को०)। ४. वंदर । बहुवल्फल-संज्ञा स० [स०] दे० 'बहुवल्क' ! कपि। बहुवा-मज्ञा स्त्री० [हिं० बहू ].बधू । बहू । उ-कहें कबीर सुनो बहुल-वि० [सं०] १. प्रचुर । पर्षिक । ज्यादा। २. काला। हो बहुवा, सतसंगत को घाव ।कवीर श०, पृ० ५... कृष्ण (को०]। बहुविद्य-वि० [स] बहुत सी बातें जाननेवाला । बहुजः। ; बहुल-संज्ञा पुं० १.: माकाय । २. सफ़ेद मिषं । ३. कृष्ण वर्ण। बहुविध-वि० [स०] भनेका प्रकार का को... ४. कृष्ण पक्ष । ५. मग्नि । ६. महादेव । बहुविध-क्रि० वि० अनेक प्रकार से । बहुत ढग से | in बहुलगंधा-संवा स्त्री॰ [सं० पहुलगन्धा ] छोटी इलायची । बहुविवाह-संञ्चा श्री [सं०] अनेक स्त्रियों को. परिणयन । कई शादी बहुलच्छद संवा! पुं० [सं०], लाल: संजन । लाल सहिजन । रक्त करना।' 11शि ।। बहुवीज-पंचा पुं० [सं०] दे० 'बहुबीज'। बहुलता-संशा नो[सं०] बहुतायत । अधिकता । बाहुल्य । बहुवीर्य-सञ्ज्ञा पुं० [सं०] १. विभीतक । बहेड़ा २. सेमर का, पेड़ । प्राचुर्य.. । शाल्मली । ३. मरुवा। बहुला-संज्ञा पुं० [सं०] १.. गाय।। २. एक गाय' जिसके सत्यव्रत बहुव्रीहि-सज्ञा पुं० [सं०] १. व्याकरण में छह, प्रकार के समासों में की कथा पुराणों में है, जोर 'जिसके नाम पर लोग भादों से। एक जिसमे.दो या अधिक पदो के मिलने से जो सेमस्त पद बदी चौथ को व्रत करते हैं । ३. नीलिका। नील का पौधा । - बनता है वह एक मन्यपद का विशेषण' होता है। जैसे,-. ४...कालिका पुराण के अनुसार एक देवी' का नाम । ५. पीतांबर, आरूढ़वानर. (वृक्ष)= वह ' वृक्ष जिसपर बंद: इलायची । ०६: मार्कंडेय पुराण में वर्णित एक नदी का नाम । मारूढ़ हो। २. बहुत ब्रीहिवाला जन ।। वह व्यक्ति। जिसके और प्रकृतिका नक्षत्रा पास घान पधिक हो । बहुलाचौथ-संज्ञा स्त्री० [स• बहुलाचतुर्थी बादों बदी पौष । बहुशः-क्रि० वि० [सं० पहुशस् ] बहुत। मषिक, । बार बार। - 3 Il ! IT 3