पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१९२

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बाँगड़ा बॉकर ३४३१ पहना जाता है । ३. हाथ में पहनने की एक प्रकार की पटरी बॉकपना-संज्ञा पुं० [हिं:] दे० 'बाकपन' । उ०—स्मित बन जाती है। या चौड़ी चूड़ी। ४. लोहारों का लोहे का बना हुमा शिकंजा तरल हंसी नयनों में भरकर बाकपना ।-कामायनी, जिसमें जकड़कर किसी चीज को रेतते हैं। ५. नदी पृ०६८। का मोड़। १. सरौते के प्राकार का वह भौजार जिससे बाँका-वि० [सं० बर] १. टेढ़ा । तिरछा । २. प्रत्यंत साहसी गन्ना छीलते हैं। ७. कमान । धनुष । ८. टेढ़ापन | ६. एक बहादुर । वीर । ३. सुंदर और बना ठना । जो अपने शरीर प्रकार की छोटी छुरी जो प्राकार में कुछ टेढ़ी होती है । १०. 1 को खूब सजाए हो। छैना। 30-तौर क्या पूछते हो बौक नामक हथियार चलाने की विद्या । काफिर का। शोख है बांका है सिपाही है।-कविता को०, यौ०-बाँक बनौट = बाक चलाने का कला। उ०-ौर बांक- । भा० ४, पृ० १०। ४. गुडा। उ०-बड़ो भाई बौकों बनौट से वाकिफ न होते तो भंडारा बुल . पाता । हतो।-दो सौ बावन०, भा० १ पृ० २०६ । —फिसाना०, भा० ३, पृ० १३६ । बाँकार-संज्ञा पु० [स० ब] १. लोहे का बना हुँमा एक प्रकार ११. एक प्रकार की कसरत जिसमें बौक चलाने का अभ्यास का हथियार जो टेढ़ा होता है और जिससे बांसफोड़ लोग, किया जाता है । यह कसरत बैठकर या सेटकर होती है। बाँस काटते छांटते हैं। उ०--खिन खिन जीव संडासन बाँकर-वि० [सं० बङ्क ] १. टेढ़ा । धुमावदार । उ०-कुच जुग प्राका । पौ नित डोम छुधावहिं बांका ।-जायसी धरए कुंभथल कांति । बाँक नखर खत अंकुश भांति । (शब्द०)। २. एक प्रकार का कीड़ा जो धान की फसल को विद्यापति, पृ० १८ । २. बांका । तिरछा । उ०-बांक.नयन हानि पहुंचाता है। ३. बारात आदि में अथवा किसी जुलूस मरु मंजन रेखा। खंजन जान सरद रितु देखा । —जायसी में वह बालक या युवक जो खूब सुदर वस्त्र और अलंकार (शब्द०)। आदि से सजाकर तथा पालकी. पर बैठाकर शोभा के लिये बॉकर-संज्ञा पुं॰ [सं० वफ्रक ] जहाज के ढांचे में वह शहतीर जो निकाला जाता है। खड़े बल में लगाया जाता है। बाँ किया-संज्ञा पुं० [सं० बङक+हिं० इया (प्रत्य॰)] नरसिंहा नाम बाँक -संज्ञा स्त्री॰ [देश॰] एक प्रकार की घास । का फूककर बजानेवाला बाजा, जो पाकार में कुछ टेढ़ा होता बाँकड़ा -वि॰ [बाँक+हा (प्रत्य)] बोर । साहसी । बहादुर । है । यह पीतल या तांबे का बनता है। दे० 'घाँकुरा'। बाँकी --संशा स्त्री० [हिं० याँका.] लोहे का बना हुप्रा एक मौजार बाँकड़ा-संज्ञा पुं० [हिं० घाँक+हा (प्रत्य॰)] छकड़े के अाक की वह जिससे बसफोड़ लोग बांस की फट्टियां काटते, छोलते या लकड़ी जो धुरे के नीचे पाई बल में लगी होती है । दुरुस्त करते हैं। बाँकड़ी-संज्ञा स्त्री० [सं० धक + हिं० ही ( प्रत्य• ) ] बादले पोर बाँकी संज्ञा स्त्री० [अ० चाक़ी:] १. भूमिकर । लगान । २. दे०:- कलाबत्त का बना हुमा एक प्रकार का सुनहला या रुपहसा फीता जिसका एक सिरा कंगूरेदार होता है मौर जो स्त्रियों की धोती प्रादि में शोभा के लिये गेका जाता है। बाँकुड़ी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [हिं०] दे॰ 'बाँकड़ी' । बाँकडोरी-संज्ञा स्त्री॰ [हिं० बांक] एक प्रकार का शस्त्र । उ.- बाँकुर-वि० [हिं० बांका ] दे० 'बांकुरा' । बांकडोरी फरस्सानि ले दाव को | खंजरी पंजरौ में कर घाव बाँकुरा-वि० [हिं० घाँका अथवा सं० वह कर ( = मोड, घुमाव)] को।-सूदन (शब्द०)। १ बांका। टेढ़ा । २. पैना। पलती धार का । ३. कुशल । बाँकनल-सज्ञा पुं० [सं० पङ्कनाल ] सोनारों का एक मौजार जिसे चतुर । उ०-प्रभु प्रताप उर सहज प्रसंका। रण बाँकुरा फूंक मारकर टीका लगाते हैं । बकनाल । बालिसुत बंका।-तुलसी (शब्द०)। विशेष-यह पीतल की बनी हई एक छोटी सी नली होती है। बाँग-संज्ञा स्त्री० [फा०] १. प्रावाज। शब्द । २. पुकार । इसके एक अोर से फूक मारी जाती है और दूसरे सिरे से, चिल्लाहट । ३. वह ऊंचा शब्द या मंत्रोच्चारण जो नमाज जो टेढा होता है, दीए की लौ से टाँका गलाकर लगाते हैं । का समय बताने के लिये कोई मुल्ला मसजिद में करता है। बाँकना-क्रि० स० [सं० बङ्क+हिं. ना (प्रत्य॰)] टेढ़ा करना । क्रि० प्र०-देना। उ०-जेहि जिय मनहि होय सतभारू। परे पहार नहिं बांक बाल ।-जायसी (शब्द०)। ४. प्रात:काल मुरगे के बोलने का शब्द | मुहा०-बाल बाँकना = दे० 'बाल' के अंतर्गत 'बाल बांका क्रि० प्र०—देना ।—लगाना । उ०—माहट जो पाई तो घबरा करना। के कुकुड़ कू की बांग लगाई ।-फिसाना०, मा०.१, पृ० १। बाँकनार-कि०म० टेढा होना । बाँगड़-संशा पु० [ राज० बाघह. ].विना बस्ती का देश । वह देश बाँकपन-संज्ञा पुं० [हिं० घाँका+पन (प्रत्य॰)] १. टेढ़ापन । जहाँ वस्ती दूर दूर पर हो। तिरछापन। २. छैलापन । मलबेलापन । ३. बनावट । . बाँगड़ -संज्ञा पुं॰ [देश॰] हिसार, रोहतक मौर करना का प्रांत । सजावट । वजमदारी। ४. छवि । शोभा। बाँगड़-वि[हिं० बांगर-] मूर्ख । बेवकूफ । दुर्बुद्धि । 'बाकी'। प्रजान । H .