पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बाँसपूर बाँसुरी कोकवा, सेजसई (तीली), खांग, तिरिया, करेल, भूली घासली-मंशा सी० [हिं० बॉस+ली (प्रत्य०)] १. वांस की बनी (पैया), बुलंगी आदि। यह गरम देशों में अधिक होता है हुई बजाने की वंशी । वामुरी। मुरली २. इसी प्राकार और बहुत से कामों में आता है। इससे घटाइयो, टोकरियां, प्रकार का पीतल लोहे पादि का बना हुपा बजाने का बाजा। पंसे, कुरसिया, टट्टर, छप्पर, छड़ियाँ, प्रादि अनेक चीजें बंशी । ३. एक प्रकार की जालीदार लंबी पतली थैली जिसमें बनती हैं। कही कहीं तो लोग केवल वांस से ही सारा मकान रुपया पेसा रखा जाता है और जो कमर में बांधी जाती है। बना लेते हैं और कहीं कहीं कच्चे बांस के चोंगों में भरकर हिमयानी। चावल तक पका लेते हैं। इसके पतले रेशों से रस्सियो भी बाँसा-या पु० [ सं० पंशक, हिं० वाँस ] बांस का बना हुमा वनती हैं । इसके कोपलों का मुरब्बा पौर प्रचार भी तैयार चोगे के प्राकार का वह छोटा नल जो हल के साथ बंधा किया जाता है । इसके रेशों से मजबूत कागज बनता है। रहता है। परना । तार | प्रायः एक ही स्थान पर बहुत से बांस एक साथ एक झुरमुट विशेष—इसी में बोने के लिये अन्न भरा रहता है जो नीचे की में उत्पन्न होते हैं जिसे 'कोठी' कहते हैं । गरम देशो में प्राय: पोर से गिरकर खेत में पड़ता है। वहुत बड़े तथा मोटे और टढे देशो में छोटे और पतले बांस होते हैं । कुछ वास ऐसे होते हैं जो जड़ की प्रोर अधिक मोठे वाँसा-संज्ञा पुं० [सं० वंश (= रीढ़) ] १. नाक के ऊपर की हड्डी जो दोनो नथनों के जार बीचोबीच रहती है । और सिरे की ओर पतले होते जाते हैं। कुछ ऐसे भी होते हे जिनकी मोटाई सब जगह बराबर रहती है। ऐसे वास मुहा०-वाँसा फिर जाना = नाक का टेढा हो जाना (जो मृत्यु काल के समीप होने का चिह्न माना जाता है)। २. पीठ की प्रायः छड़ियाँ और छाते की डंडियां बनाने काम मे पाते लंबी हड्डी जो गरदन के नीचे से लेकर कमर तक रहती हैं । बहुत बड़े बड़े बांस प्राय: सौ हाथ तक लंबे होते हैं । है। रीढ। कुछ छोटे बांस लता के रूप में भी होते हैं। सब प्रकार के बांसो में एक प्रकार के फूल लगते हैं, पर कुछ बास, विशेषतः बाँसा--मंशा पुं० [हिं० प्रिय+यांस ] एक प्रकार का छोटा पौधा । बड़े वास, फूलने के पीछे प्रायः तुरत नष्ट हो जाते हैं । बाँस पियावांसा। उ०-मोघा नीव चिरायत बांसा। पीतपापरा के फूल आकार में जई की बालों के समान होते हैं और पित कहें नासा ।-इद्रा०, पृ० १५१ । उनमे छोटे छोटे दाने होते हैं जो चावल कहलाते हैं और विशेष-इस पौधे में चंपई रंग के बहुत सुदर फूल लगते हैं । पीसकर ज्वार घादि के घाटे में मिलाकर खाए जाते है। इसके बीज बहुत छोटे और काले रंग के होते हैं। इसकी यह एक विलक्षण वात है कि प्रायः अकाल के समय वास लकड़ी के कोयलों से वारूद बनती है। अधिकता से फूलते हैं, और उस समय इन्हीं फूलो को खाकर बाँसा–कि० वि० [सं० पावं, हिं० पास, राज० वास ] पास । सैकड़ों प्रादमी अपने प्राण बचाते हैं। भारत में वाँसों का समीप | बगल । उ०प्रीतम बोसइ जाइ नई मुई सुणाए फूलना बहुत ही अशुभ माना जाता है। बांसो की पत्तियां मुझ झ ।-ढोला०, दू० ६२५ । पशुओं को चारे और प्रौषध के रूप में खिलाई जाती हैं। तबाशीर या वंशलोचन भी वासों से ही निकलता है। बाँसागड़ा-मशा पु० [हिं० बाँस+गाड़ना ] कृश्ती का एक पेंच । मुहा०-वास पर चढ़ना = वदनाम होना । बाँस पर चढ़ाना = घाँसिनी-सञ्ज्ञा सी० [हिं० घाँस ] एक प्रकार का बास जिसे (१) बदनाम करना। (२) बहुत बढ़ा देना । बहुत उन्नत घरियाल, कना अथवा कुल्लुक भी कहते है। या उच्च कर देना। (३) मिजाज बढा देना । बहुत प्रादर घाँसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० सि+ई (प्रत्य०)] १. एक प्रकार का करके धृष्ट या घमंडी बना देना । बाँसों उछलना = बहुत मुलायम पतला बास जिससे हुक्के के नेचे मादि धनते हैं । अधिक प्रसन्न होना । खुब खुश होना । २. एक प्रकार का:गेहूँ जिसकी बाल कुछ काली होती है। ३. २. एक नाप जो सवा तीन गज की होती है। लाठा । ३. नाव एक प्रकार का धान जिसका चावल बहुत सुगंधित, मुलायम खेने की लगी। ४. पीठ के बीच की हड्डो जो गरदन से और स्वादिष्ट होता है। यह संयुक्त प्रात (उत्तर प्रदेश) में कमर तक चली गई है। रीढ़ । ५. भाला (डि०) । अधिकता से होता है इसे बामफल भी कहते हैं । ४. एक प्रकार घाँसपूर-संज्ञा पुं॰ [सं० वंशपर्व, हिं० बांस+पोर या पूरना ] एक फी घास । इसके उठल मोटे पौर पर होते हैं, इसीलिये पशु प्रकार का महीन कपड़ा । उ०-चंदनौता प्रो खरदुक भारी। इसे कम खाते हैं। ५. एक प्रकार का पक्षी । ६. एक वासपूर झिलमिल की सारी।-जायसी ग्रं०, पृ० १४५ । प्रकार पत्थर जिसका रंग उफेदी लिए पीला होता है और विशेष-कहते हैं, यह इतना महीन होता था कि इसका एक जो बड़ी बड़ी सिलो के रुप मे पाया जाता है । ७. वसुरी। थान बांस के चोंगे मे भरा जा सकता था। वांसुरी। घाँसपोरा-संज्ञा पुं० [हिं० पासपूर ] दे॰ 'वॉरपूर'। चाँसुरी-संसा बी० [हिं० सि+ठरी (प्रत्य॰)] यांस का बना हुमा बाँसफल-संज्ञा पुं० [हिं० बाँस+फल ] एक प्रकार का धान जो प्रसिद्ध बाजा जो मुंह से पूक्कर बजाया जाता है। मुरली । संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश ) में पैदा होता है। इसे 'चांसी' भी वंशी। बांसली। कहते हैं। विशेष-पह बाजा प्रायः डेड वालिश्त लंबा होता है और इसका -