पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/१९८

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पार धेडि सुत हीन हियो री ।—सूर (शब्द॰) । (ख) राधा कैसे ईसा की दूसरी और तीसरी शताब्दी में हुए थे। इन दोनों मान बचावै । सेसभार घर जा पति रिपु तिय जलयुत कबहुँ का अनुवाद संसार की प्राय: सभी भापात्रों में हो गया है। न हेरे । बा निवास रिपु धर रिपु लै सर सदा सूल सुख पेरै । घाइस-सञ्ज्ञा पुं० [फा०] १. सबब । कारण। वजह । उ०- बा ज्वर नीतन ते सारंग अति बार बार झर लावै !-सूर लोग पूछते हैं बाइस बस सुनकर चुप हो जाऊँ।-प्रेमघन०, (शब्द०)। भा० १, पृ० १६२ । २. मूल कारण । बुनियाद । बा'- संज्ञा पुं० [फा० बार J बार । दफा । मरतबा । उ०—कारे बाइस--संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'बाईस'। घरन डरावने कत पावत यहि गेह । के वा लख्यो, सखी ! लखे लगै थरथरी देह ।-बिहारी (शब्द०)। बाइसवाँ-वि० [हिं० ] दे० 'बाईसवा' । वा-उप० [फा०] साथ । वाला । पूर्ण । वाइसिकिल-संज्ञा स्त्री॰ [अं॰] एक प्रसिद्ध गाड़ी। पैरगाड़ी। साइकिल । विशेप-सज्ञावाचक शब्दों के पूर्व लगने पर यह उपरिलिखित अर्थ देता है। जैसे,-बापदव, वासर, बापाबरू, बाईमान, विशेष- इसमें आगे पीछे केवल दो ही पहिए होते हैं। इसके आदि । बीच में केवल बैठने भर को स्थान होता है और धागे की प्रोर दोनों हाथ टेकने और गाड़ी को घुमाने के लिये अड्ड बा-संज्ञा स्त्री॰ [ देशी वाइया, गुज० बाई, बा ] १. माता । मा । के प्राकार की एक टेक होती है। इसमे नीचे की ओर एक २. श्रेष्ठ या बड़ी स्त्रियो के लिये आदरार्थक शब्द । ३. चक्कर लगा रहता है जो पैर फे दबाव से घूमता है, जिससे महात्मा गांधी की धर्मपत्नी । कस्तूरबा गांधी । गाड़ी बहुत तेजी से चलती है। बाइ-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'बाई' । बाई -सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० वायु ] त्रिदोषों मे से वातदोष जिसके बाइक'-संज्ञा पुं० [सं० वाचक, प्रा. वायक ] दे० 'बायक' । प्रकोप से मनुष्य बेसुध या पागल हो जाता है । दे० 'वात' । उ.-सतगुरु रहना सकल सू सब गुन रहिता वैन । क्रि० प्र०-श्राना ।-उतरना । रज्जव मानी साखि सो उस बाइक मे चैन ।-रज्जब०, बानी, पृ० ६। मुहा०-चाई का दखल, बाई की झोंक= (१) वायु का प्रकोप । सन्निपात । (२) आवेश । बाई चढ़ना=(१) वायु का प्रकोप बाइक-वि० [सं० वाचिक, प्रा० वाइ] दे० 'वाधिक'। उ०- होना । (२) घमंड प्रादि के कारण व्यर्थ की बातें करना । वाई काइक बाइक मानसी कर्म न लागै ताहि । -सुदर० प्र०, पचना = (१) वायुप्रकोप शांत होना । (२) घमंड टूटना। शेखी भा०२, पृ०८०७॥ मिटना । बाई पचाना = घमंड तोड़ना | गवं चूर करना। यौ०-बाइकविलास = वाग्विलास । वाग्जाल । वाणी का विलास । उ०—तीजो बाइकविलास सु तो सब वेद माहि। वाई-संज्ञा स्त्री॰ [देशी वाइया, गुज० वाई, बा, हिं० वावा, वावी] स्त्रियो के लिये एक आदरसूचक शब्द । जैसे,-लक्ष्मीबाई, बरनि के जहां लग बचन तै कह्यो है। -सुदर ग्रं॰, भा० २, अहिल्याबाई । पृ०६२२। विशेष-इस अर्थ में इस शब्द का प्रयोग राजपूताने, गुजरात वाइका-संज्ञा स्त्री॰ [तु. वायको, मरा० बायको, तुल० गुज०, हिं० पौर दक्षिण भादि देशों में अधिक होता है। घाई, चा ] सुदर स्त्री। पण्यनारी। उ०-बाइक बनेंगी राडाँ बेगले फिरेंगे छोरे ।-दक्खिनी०, पृ० २६७ । २. एक शब्द जो उत्तरी प्रांतो में प्रायः वेश्यामों के नाम के साथ वाइगी-संज्ञा स्त्री॰ [ देश० ] औरत । स्त्री। उ०—कौन बाइगी सुन बाईजी-संशा स्त्री॰ [हिं० वाइका ] पण्यस्त्री । वेश्या । नायका । लगाया जाता है। ताहि किन मोहिं बतायो। परपचिनि तुम ग्वालि ! झूठ ही मोहि बुलायौ।-नंद० प्र०, पृ० १९८ । बाईस-संज्ञा पु० [ द्वाविशति, प्रा० बाईसा ] बीस और दो की संख्या या ग्रंक जो इस प्रकार लिखा जाता है-२२ । चाइनि-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० ] दे० 'वयना' । बाइप्लेन-सञ्ज्ञा पुं॰ [अं॰] एरोप्लेन या वायुयान का एक भेद । बाईस'-वि० जो बीस और दो हो । बीस से दो अधिक । बाइबिरंगा-संज्ञा स्त्री० [सं० वायु विडङ्ग, हि० याय विडंग] विडंग। बाईसवॉ-वि॰ [हिं० वाईस +वा (प्रत्य॰)] गिनने में वाईस के स्थान पर पड़नेवाला । जो क्रम में वाईस के स्थान पर हो । वाइबिल-सज्ञा स्त्री० [ यू० वाइविल(= पुस्तक)] ईसाइयों की बाईसी-संज्ञा स्त्री० [हिं० पाईस+ई (प्रत्य॰)] १. बाईस वस्तुओं धर्मपुस्तक । इंजील। का समूह । २. बाईस पद्यों का समूह । जैसे, खटमल बाईसी । विशेष—यह दो भागों में विभक्त है । एक प्राचीन जो हिब्रू या इनानी भाषा मे थी और जिसे यहूदी भी मानते है। इसमें बाउंटी-सज्ञा स्त्री॰ [ पं०] वह सहायता या मदद सृष्टि की उत्पत्ति मूसा के ईश्वरदर्शन आदि की कथा है। उद्योग धंधे को उत्तेजन देने के लिये दी जाय | सहायता । दूसरी नवीन या अर्वाचीन, जो यूनानी भाषा में थी और मदद। जिसमें ईसा की उत्पत्ति, उपदेश, करामात श्रादि का वर्णन बाउ- संज्ञा पुं॰ [ स० वायु ] हवा । पवन । उ०—(क) मृदु है। ये दोनों ही भाग कई पोथियों के संग्रह है। ये संग्रह मूरति सुकुमार सुभाऊ | तात बाउ तन लाग न काऊ।- HO व्यापार या