पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०४

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बाजीगर २४४३ बाटिका बाहर बाजीगर-पंज्ञा पुं० [फा. बाजीगर ] जादू के खेल करनेवाला । जाई । जो मिले तो घाल अघाई।-कवीर म०, पृ. २६२ । जादूगर । ऐंद्रजालिक । उ०—कै कई रंक, कहूँ ईश्वरता नट वाट'-सज्ञा पुं० [ स० वाट ( = मार्ग) ] मार्ग । रास्ता । पथ । बाजीगर जैसे ।- सूर (शब्द०)। मुहा०-घाट करना रास्ता खोलना । मार्ग बनाना । उ०- बाजीगरी-सज्ञा स्त्री० [फा० बाजीगरी ] बाजीगर का काम । जीत्यो जरासंध बँदि छोरी । जुगल कपाट विदारि वाट करि चालाकी । धूर्तता। लतनि जुही संधि चोरी |-सूर (शब्द०)। बाट जोहना बाजीदार-सज्ञा पुं० [हिं० बाली (= बाल) + फ़ा० दार ] वह या देखना = प्रतीक्षा करना। आसरा देखना । उ०—तुम हलवाहा जिसे वेतन के स्थान में उपज का अंश मिलता हो। पथिक दूर के श्रात और मै बाट जोहती प्राशा ।-पपरा, बालीदार। पृ० ७१ । बाट पड़ना = (१) रास्ते में प्रा भाकर बाधा बाजुल-अव्य० [सं० वर्ण्य, मि० फ़ा० बाज ] १. बिना । बगैर । देना । तंग करना । पीछे पड़ना । (२) डाका पड़ना । हरण 30-(क) नख शिख सुभग श्यामघन तन को दरसन हरत होना। उ०-तरनिउँ मुनि धरनी होइ जाई । बाट परइ विथा जु । सूरदास मन रहत कौन बिधि बदन बिलोकनि मोरि नाव उड़ाई।-तुलसो (शब्द०) । बाट पारना = डाका बाजु । - सूर (शब्द०)। (ख) का भा जोग कहानी कथे । मारना । मार्ग में लूट लेना । उ०--राम लों न जान दीनी निकस न घीउ बाजु दधि मथे ।—जायसी (शब्द०)। २. घाट ही मे खरी कीनी घाट पारिबे को बली अंगद प्रवीन अतिरिक्त । सिवा। है। हनुमान (शब्द०)। (सिर के केश या बालों से) घाट वुहारना= अत्यत ही प्रिय और इच्छित व्यक्ति के माने पर घाजू-संज्ञा पुं॰ [ फा• बाज़ ] १. भुजा । बाहु । बाह । विशेष- दे० 'वाह' । उ०-तब कुरता बाजू तन,खोला। पहिरायो स्वागत सत्कार करना । (स्त्रियां)। उ०-एकसारा घरि आवज्यो, वाट वूहारूं सीर का केस । -बी० रासो, पृ०७५ । सो बसन अमोला।-हिंदी प्रेमगाथा०, पृ० २४१ । बाट लगाना = (१) रास्ता दिखलाना। मार्ग बतलाना। यौ-बाजूबद । (२) किसी काम के करने का ढग बतलाना । (१) मूर्ख २. बांह पर पहनने का बाजूवंद नाम का गहना । विशेष-२० बनाना। 'वाजूबंद' । ३. सेना का किसी प्रोर का एक पक्ष । ४. वह २-सञ्ज्ञा पुं० [स० वटक ] १. पत्थर आदि का वह टुकड़ा जो जो हर काम मे बराबर साथ रहे मोर सहायता दे । जैसे, चीजें तौलने के काम आता है। बटखरा । २. पत्थर का वह भाई, मित्र आदि । (बोलचाल) । ५. एक प्रकार का गोदना जो बांह पर गादा जाता है और बाजूबद के माकार का टुकड़ा जिससे सिल पर कोई चीज पीसी जाय । होता है। ६. पक्षी का डैना । बाट-सज्ञा स्त्री० [हिं० घटना ] बटने का भाव । रस्सी आदि में बाजूबंद- संज्ञा पुं॰ [ फ़ा० वाजूबंद ] वाह पर पहनने का एक प्रकार पड़ी हुई ऐंठन । बटन । वल । का गहना जो कई आकार का होता है। इसमें बहुघा बाटका-सशा स्त्री॰ [स० वाटक) पात्र । बटलोई । वर्तन । उ०- बीच में एक बड़ा चौकोर नग या पटरी होती है और उसके दस बार कनक प्रतिबिंब सूर । घाटका बीसविन प्रभुत मूर। आगे पीछे छोटे छोटे और नग या पटरियां होती हैं जो -पृ० रा०,१४१२३ । सव की सव तागे या रेशम में पिरोई रहती हैं। बाजू । बाटकी-संज्ञा जी० [ स० वाटक ] दे॰ 'बाटका' । बिजायठ । भुजबद । उ०-झबिया कर फूलन के बाजूबंद दोऊ । फूलन की पहुंची कर राजत पति सोळ । -भारतेंदु बाटना-क्रि० स० [हिं० वट्टा या वाट ] सिल पर बट्टे प्रादि से ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ४४० । चूर्ण करना। उ०-कुच विष बाटि लपाय कपट करि बालघातिनी परम सुहाई । —सूर (शब्द॰) । बाजूबीर+-संज्ञा पुं॰ [ फा० वाजू ] दे० 'बाजूबंद' । बाजेगिरिरा-वि० [फा० वाजीगरी ] बाजीगर संबंधी। बाजीगर बाटनारे-कि० स० [हिं०] १. दे० 'वटना' । उ०-कह गिरिधर का। उ०-महर उतारा देखो मिया बाजेगिरि विद्या खेल । कविराय सुनो हो धूर को वाटी। -गिरिधर (शब्द०)। -दक्खिनी०, पृ०६१। २. दे० बांटना' । उ०-कूपक पानि अधिक होप काटि । बामा-अव्य० [हिं०] दे॰ 'बाज' या 'बाजु' । नागर गुने नागरि रति वाटि । -विद्यापति, पृ० ३०० । पामन-संज्ञा स्त्री० [हिं• बझना (= फंसना)] १. बझने या बाटली-सज्ञा स्त्री० [अं० बंटलाइन ] नहाज के पाल में ऊपर की फंसने का भाव । फंसावट । २. उलझन । पेंच । ३. झझठ । पोर लगा हुमा वह रस्सा जो मस्तूल के ऊपर से होकर बखेड़ा । ४. लड़ाई । झगड़ा। फिर नीचे की ओर प्राता है। इसी रस्से को खीचकर पाल बामना@-क्रि० अ० [हिं० ] दे० 'वझना' । उ.-नकसरि तानते हैं । (लश०)। बंसी के संभ्रम भौह मीन अकुलात। मनु ताटंक कमठ घट मुहा०- वाटली चापना= रस्से को खीचकर पाल तानना । उर जाल बाझि प्रकुलात ।-सूर (शब्द०)। बाटली२-संशा स्त्री० [अं॰ बॉटल ] बोतल । बड़ी शीशी। वामु-प्रव्य० [हिं० बाजु ] दे० 'बाजु' । उ०-जेह वाझ न जीया बाटिका-सज्ञा स्त्री० [सं०] १. वाग। फुलवारी। २. गद्य काव्य