पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०५

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बाटी' ३४४४ घादाली का एक भेद । वह ' गद्य जिस मे गद्य और कुसुमगुच्छ गद्य वाड़ी-संजा रती [ म० वाटी ] १. बाटिका । बारी फुलवारी । मिला हो। २. फलदायक वृक्षों का वाग या समूह । बारी | न०-वह बाटी-संज्ञा सी० [सं० बटी, बटिका] १. गोली । पिंड । २. पंगारों वागो के उस पारवाले किनारे की वाहियो में मिलते हुए या उपलो आदि पर सेंकी हुई एक प्रकार की गोली या पेटे के दीमक के ठिकाने पर गए।-फाले०, पृ० २५ । ३. घर । श्राकार की रोटी । अंगाक्ड़ी। लिट्टो । उ०-दूध बरा उत्तम मकान । गृह (बंगाल)। दधि वाटी दाल मसूरी की रुचिकारी ।—सूर (शब्द०)। वाडोल 2-सज्ञा पु० [सं० चाडव ] दे० 'वाय' । वाटी-सञ्ज्ञा स्त्री॰ [स० वतुल; मि० हिं० वटु श्रा] १. चौड़ा और वाद-वि० [सं० बाढ ] १. शक्तिशाली । मजवून । २. अधिक। कम गहरा कटोरा। २. तसला नाम का बरतन । ज्यादा । ३. कंश । तीन । तुमुल को० । घाड्किन-सज्ञा पुं० [सं०] १. छापेखाने में काम प्रानेवाला एक बाढ़र-मंशा ही [हिं० बढ़ना ] १. बढ़ने की क्रिया या भाव । प्रकार का सूपा जिस में पीछे की पोर लकडी का दस्ता लगा वढाव । वृद्धि । पधिकता । २. अधिक वर्षा ग्रादि के कारण रहता है। इससे कंपोजिटर लोग कंपोज किए हुए मैटर नदी या जलाशय के जल का बहुत तेजी के साथ और बहुत में से गलती लगा हुप्रा अक्षर निकालते और उसकी जगह अधिक मान में बढ़ना । जल प्लावन । सैलाब । दूसरा अक्षर बैठाते हैं । २. दफ्तरीखाने में काम पानेवाला संयो०कि-याना ।-उतरना। एक प्रकार का सूपा जिसका पिछला सिरा बहुत मोटा ३. वह धन जो व्यापार प्रादि में बढ़े । व्यापार आदि से होने- होता है। यह किताबों और दफ्तियों आदि मे ठोककर छेद वाला लाभ । ४. बदूक तोप भादि का लगातार छूटना । करने के काम में आता है। मुहा०-वाद दगना = तोप बदूक का लगातार छूटना । बाद बाड़-संज्ञा स्त्री० [हिं० वाद] १. वृद्धि । २. तेजी । जोर । उ०- मरना=किसी कारणवश बढ़ाव का रुकना । बाढ़ मारना % बाढ चलंती वेलरी उर भी प्रासाफद । टूटे पर जूटे नही भई वदूको से एक साथ गोलियां दागना । उ०-तुकों ने, जो जो वाचाबंध। -कबीर (शब्द०)। कमीनगाह भोर झाड़ियों की प्राड़ में छिपे थे, बाढ़ मारी, वाड़ा-संज्ञा स्त्री॰ [सं० वाट ] फसल की हिफाजत के लिये खेतों के रूसी घबरा उठे।—फिसाना०, भा० ३, पृ० १७५ | बाद चारों तरफ बास, काटे आदि से बनाया हुआ मजबूत धेरा। एकना= दे० 'बाढ मरना'। बाद रोकना-मागे बढ़ने से टट्टी पाड़। रोकना । प्रागे न बढ़ने देना। बाड़-सज्ञा स्त्री० [ देश० ] स्त्रियो का बांह पर पहनने का टांड़ वाद-संशा सी० [ स० वाट, हिं० वारी ] १. तलवार, छुरी नामक गहना। प्रादि शस्त्रो की धार । सान । २. कोर । किनारा । बाड़व'-संज्ञा पुं० [सं० पाडव ] १. ब्राह्मण । २. बड़वाग्नि । मुहा०-याढ़ का डोरा तलवार या कटारी के धार की लकीर वडवानल । ३. घोड़ियों का झुंड । या रेसा । बाढ़ पर चढ़ाना = (१) धार पर चढ़ाना । सान बाड़व-वि० वड़वा संबंधी । देना । (२) उत्तेजित करना । उकसाना । बाड़वानल-संज्ञा पु० [सं० चादवानल ] दे० 'बड़वानल' । उ० वाढई-संज्ञा पु० [सं० वार्धकि ] दे॰ 'बढ़ई' । उ०-सोने पकरि मम वाड़वानल कोप । प्रब कियो चाहत लोप । केशव सुनार को काढ्यो ताइ कलंक । लकरी छील्यो बाढ़ई सुदर (शब्द०)। निकसी बंक ।-सुदर० प्र०, भा० २, पृ० ७५० । बाड़ा-संज्ञा पुं॰ [ सं० वाट ] १. चारों ओर से घिरा हुआ कुछ वाढकढ़ -संज्ञा श्री० [हिं०] १. तलवार । २. खड्ग । विस्तृत खाली स्थान । २. वह स्थान जिसमे पशु रहते हों। वाढ़ना-क्रि० प्र० [हिं० बढ़ना ] १. दे० 'वढ़ना' । उ०- पशुशाला। (क) मंडल बांधि दिनहुँ दिन वाढत लहरदार जन ताप बाटिस-संज्ञा खो० [अं० बॉडिस ] स्त्रियों के पहनने की एक नेवारे ।-देवस्वामी (शब्द०)। (ख) एक बार जल बाढ़त प्रकार की अँगरेजी ढंग की कुरती । भयऊ । सव ब्रह्मांड बूढ़ि तह गयऊ।-विश्वास (शब्द०)। बाडी-संज्ञा स्त्री० [सं० बॉटिस का संक्षिप्त रूप ] एक प्रकार २.२० 'बहुना'। की अंगिया या कुरती जो मेमे पहनती हैं और भाजकल वाढ़ना-क्रि० स० [सं० वर्धन प्रा० बढढ्ण, गुज० बाढवु] बहुतेरी भारतीय स्त्रियाँ भी पहनने लगी हैं । बाडिस । काटना । चीरना । हिस्सा करना । फाड़ना । उ०-बाबहिया वाडी-संज्ञा स्त्री॰ [अं०] शरीर । देह । जिस्म । निल पंखिया बाढ़त दइ दइ लूण।-ढोला०, दू० ३३ । वाडीगार्ड-संज्ञा पुं० [पं०] १. किसी राजा या बहुत बड़े राजकर्म- बाढ़ाली-संज्ञा सी० [हिं०] १ तलवार । उ०---सुदर बाहाली चारी के साथ रहनेवाले उन थोड़े से सैनिकों का समूह जिनका वह होइ कडाकडि मार । सुरवीर सनमुख रहैं जहाँ खलनक काम उसके शरीर की रक्षा करना होता है। शरीर रक्षक । सार ।-सुंदर० प्र०, भा॰ २, पृ० ७४० । २. खड्ग । २. इन सैनिकों मे से कोई एक सैनिक । उ०-बीज़ल ज्यो चमकै बाढाली काइर कांदरि भाजै ।- बाडीर-संज्ञा पुं० [सं०] सेवक । मजदुर । नौकर [को०] । सुदर प्र०, भा॰ २, पृ० ८८५ ।