पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०६

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बादि वाणसिद्धि घादि@-संशा स्त्री० [हिं०] १. दे० 'वाई'। उ०-भुज सिर बाणगंगा-संज्ञा स्त्री० [सं० बाणगङ्गा ] हिमालय के सोमेश्वर गिरि बाढि देखि रिपु केरी। तुलसी (शब्द॰) । २. बाढ़ । से निकली हुई एक प्रसिद्ध नदी। कहते हैं, यह रावण जलप्लावन । सैलाब । उ०-वाढ़ि के पानी काढ़ि जा जानि के वाण चलाने से निकली थी, इसी से उसका यह नाम पड़ा । ठाम रहल गए जे निज जानि |-विद्यापति, पृ० ५१ । वाणगोचर-पंज्ञा पुं० [म.] बाण के मार की दूरी या पहुंच । तीर बाढ़ी-संज्ञा स्त्री० [हिं० घाद ] १. वाढ़। बढ़ाव । २. अधिकता। के मार की दूरी या पहुंच [को०] । वृद्धि । ज्यादती । ३. वह व्याज जो किसी को अन्न उघार बाणजित्-संशा पु० [सं० ] विष्णु का एक नाम [फो०] । देने पर मिलता है। ४. लाभ । मुनाफा । नफा । वाणधि-संज्ञा पुं० [सं०] तरकस । निपंग (को०)। बाढ़ी-पंज्ञा पुं० [ स० वार्धकि ] बढ़ई । उ०-बाढ़ी पावत देख- वाणपति-संज्ञा पुं० [सं० ] बाणासुर के स्वामी, महादेव । (डि०)। करि तरिवर डोलन लाग । हमें फटे की कुछ नहीं, पंखेरू बाणपत्र -संज्ञा पु० [सं०] कंक नाम का एक पक्षो [को॰] । घर भाग -चिंतामणि, भा॰ २, पृ०६६ । चाणपथ-संज्ञा ० [सं० ] दे० 'बाणगोचर' [को०) । यादीवान-सज्ञा पुं० [हिं० बाढ़ = धार)+ सं० वान ] वह बाणपात-तज्ञा पु० [सं०] १. वाण को मार या पहुंच । २. वाण जो छुरी, कैची प्रादि की धार तेज करता हो। श्रीजारों पर की शय्या । शरतल्प (को०] । सान रखनेवाला। बाण-संशा पु० [सं०] १. एक लंबा और नुकीला प्रस्त्र जो धनुष बाणपुखा-सज्ञा स्त्री० [सं० बाणपुङ खा] वाण की छोर या अंतिम सिरा जहाँ पंख लगे रहते हैं [को०] । पर चढ़ाकर चलाया जाता है। तीर । सायक । शर । विशेष-प्राचीन काल में प्रायः सारे संसार में इस प्रस्त्र का बाणपुर- ज्ञा पुं॰ [सं०] बाणासुर की राजधानी । शोणितपुर । प्रयोग होता था; और अब भी अनेक स्थानों के जंगली और बाणभट्ट-सञ्ज्ञा पुं॰ [सं०] एक प्रसिद्ध संस्कृत कवि जो कादवरी प्रशिक्षित लोग अपने शत्रुओं का संहार या पाखेट प्रादि के पूर्वार्ध का रचयिता था। करने में इसी का व्यवहार करते हैं । यह प्रायः लकड़ी या विशेष-यह सम्राट हपवन की सभा का पंडित था और इसने नरसल फी डेढ हाथ की छड़ होती है जिसके सिरे पर पैना कई काव्य तथा नाटक लिखे थे। कादबरी को समाप्त करने लोहा, हड्डी, चकमक आदि लगा रहता है जिसे फल या से पहले ही इसकी मृत्यु हो गई थी। जिसे, कहते हैं, वाण- गांसी फहते हैं। यह फल कई प्रकार का होता है। कोई भट्ट के पुत्र ने पूरा किया। वाणभट्ट का यह प्रथ और लंबा, कोई अर्धचंद्राकार और कोई गोल । लोहे का फल हर्षचरित दोनों गद्य काव्य हैं। हर्षचरित में इसने हर्षवर्धन कभी कभी जहर में वुझा भी लिया जाता है जिससे पाहत का चरित्र लिखा है। इस ग्रंथ में बाणभट्ट का अपना चरित्र की मृत्यु प्रायः निश्चित हो जाती है। कहीं इसके पिछले भी संक्षेपतः आ गया है। भाग में पर प्रादि भी बांध देते हैं जिससे यह सीधा तेजी चाणमुक्ति-शा सी० [ सं० ] तीर को लक्ष्य पर छोड़ना [को॰] । कि साथ जाता है। हमारे यहाँ धनुर्वेद में वाणों और उसके बाणमोक्षण--संज्ञा पु० [सं०] बाण छोड़ना। वाणमुक्ति [को॰] । फलों सा विशद रूप से वर्णन है । वि० दे० 'धनुर्वेद' । वाणयोजन-संज्ञा पु० [सं०] तरकश । भाथा [को०] । पर्या-पृषक । विशिख । खग। पाशुग । कलंब । मार्गण । बाणरेखा-सञ्ज्ञा सी० [सं०] वाण से लगा से लगा हुमा लंबा पत्री । रोप । वीरतर । काड । विपर्पक । शर । बाजी । पत्र- घाव [को०] । वाह । अस्त्रकंटक: बाणलिंग-ज्ञा पुं॰ [सं० वाणलिङ्ग ] नर्मदा नदी में मिलनेवाला २. गाय का थन । ३. आग | ४. भद्रमुंज नामक तृण । रामसर । श्वेतवर्ण का प्रस्तर लिंग जिसे शिव के रूप में पूजते हैं [को०] । सरपत । ५. निशाना । लक्ष्य । ६. पांच की संख्या । ( काम- देव के पाच वाण माने गए हैं। इसी से बाण से ५ की या वाणवर्षण-संज्ञा पुं० [सं० ] दे० 'वाणवृष्टि' । का बोध होता है )। ७. शर का अगला भाग । ८. नीली बाणवर्षा-संज्ञा स्त्री० [सं० ] दे० 'वाणवृष्टि' । कटसरैया । ६. इक्ष्वाकुवंशीय विकुक्षि के पुत्र का नाम । याणवी-वि० [सं० वाणवर्पिन् ] वाण की वर्षा करनेवाला [को॰] । १०. राजा बलि के सौ पुत्रों में से सबसे बड़े पुत्र का नाम । बाणवार-संशा पु० [सं०] १. वारण का निवारक-कवच । जिरह विशेष-इनकी राजधानी पाताल की शोणितपुरी थी। इन्होंने वस्तर । २. बाणों का पुज, समूह या सिलसिला (को०)। शिव से वर प्राप्त किया था जिससे देवता तोग अनुचरों के बाणविद्या-संज्ञा सी० [सं०] वह विद्या जिससे वाण चलाना समान इनके साथ रहते थे। कहते हैं, युद्ध के समय स्वयं पाए । वाण चलाने की विद्या । तीरंदाजी। महादेव इनकी सहायता करते थे। उषा, जो अनिरुद्ध को बाणवृष्टि-संशा रही [सं०] वाणों की वर्षा । वाणवर्षण । ब्याही थी, इन्ही की कन्या थी। वाणसंधान-शा पुं० [सं० वाणसन्धान ] चलाने के लिये वाण ११. संस्कृत के एक प्रसिद्ध कवि । वि० दे० 'बाणभट्ट' । १२. को धनुष पर चढ़ाना [को०] । स्वर्ग। १३. निर्वाण । मोक्ष । बाणसिद्धि-संज्ञा स्त्री॰ [ स०] वाण द्वारा लक्ष्य का भेदन करना। पाणका-संशा पुं० [सं० वणिक] १. महाजन । २. वनिया (हिं०) । निशाने पर तीर मारना [को] ।