पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२०७

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था घाणसुता घाणसुता-गशा त्री० [40] वाणासुर को गन्या उपा जो पनिषद की पत्नी थी। वि० दे० 'उपा'। पाणहा-संशा पु० [40] विष्णु । पाणा-शा सी० [सं० ] [ मा पुं० याण ] नीलगिटी नाम का एर धुप । वाणाभ्यास-मा पुं० [] वाण पसाना पर सक्ष्यभेद सोसना (in | चाणारसी-सका स्री० [सं० पाराणसी. प्रा० (पर्णविपर्यय पगारसि, घाणारसि ] : वाराणमी' । उ०-पति पतुराई, दीस घणी, गंग गया तीरथ योग । पाणामी विहा परगने तिणि दरसण जाहपतिगहागि ।-चो. गसो, पु० ३५ । वाणावती-- मो. [ स०] वाणासुर को पत्नी का नाम । चाणाश्रय--परा पु० [ स०] तूणीर । तरफान (ले० । चाणासन-सा पुं० [सं०] धनु । धनुप (ो । चाणासुर-० [सं०] राजा बलि के सो पुत्रों में से सबसे व पुत्र का नाम । वारा। विशंप-यह बात ही वीर, गुणी पौर सहप्रवाह पा| पाताम की पोणितपुरी इसको राजधानी पी। सने हजारों वर्ष तक तपस्या मारके शिव से पर प्राप्त किया था। मुर में स्वयं शिव पाकर इसी सहायता किया करते थे। धीरण में पौन मनिरप की पत्नी उपा इसी पाण को फम्या पो। उपा के कहने से जब उसकी ससी चितसा माकाशमार्ग से पनिर द्ध को ले घाई थी उप समापार पाकर पाण ने पनिरुद्ध को कैद कर लिया। यह सुनते ही श्रीकृष्ण ने पाण पर प्राक्रमण किया पोर युद्धक्षेत्र में उसके सब हापमाट डाले। शिवजी के गाहने से फेवल पार हाग पोट दिए गए थे। इसके उपरात वाग ने अपनी या उपा का विवाद अनिरुद्ध के साथ फर दिया । यिमेप दे० 'या'। बाणि-मा. [२० वाणी | दे० 'वाणी'। पाणिजक-सा पी० [सं०] वाणिज्य मारनेयाला । पापारी। वाणिज्य --संज्ञा पु० [सं०] व्यापार । रोजगार । सोदागरी। चाणिणी -राया •i [सं०] १. नतंगी । २. धूतं पोर मर स्त्री। ३. पुश्चली । फुलटा । ४. एक वर्णवृत्त का नाम [को०] । वाणी'-सा सी० [सं०] :. 'वाणी' बाणोर-वि० [सं० पाणिन् ] वाणयुक्त तीरयाला [को०] । बात-सज्ञा रखी. [ स० वार्ता] १. साधक शब्द या यापय । पिसी वृत्त या विषय को सूचित करनेवाला शब्द या यायय । कपन । वचन । वाणी। बोल । जैसे,—(क) उसके मुंह से एक घात न निफाली । (स) तुम्हारी बातें में पयो सहूँ ? फ्रि० प्र०-कहना ।-निकपाना ।-निकालना। यी०-पातचीत । मुहा०-यात उदाना = (१) पालवी पाते सहना । फठोर वचन सहना । सस्त सुसा बर्दाश्त करना । (२) कथन का पालन करना। बात पर चलना। मान रखना। (३) वात न मानना । यपन पानी भरना। ग्राम उरना = (१) मई एए गगन के उसर में उप farm यात माना। सात गा जगाय ना । जंगे,--सली मारनपी नटनी पाहिए (२) चार पुर फिर गरी चार पुरु मौरमा चार पटना। बागनी देर में जिसने में गृह में पान मारन । पल भर में। चारपारमा (8) मियानमयीन में बोल व्रना । यार मेरा) पनमा दर या 1 जोहामाहो म विना यात रान पहना- दानका गुरागा मिमी ये ५२ पी मानी। पाम या पुन योजना-2 भागोही मान TE-STER नही गाणी । वाम INोन-गांगे, १०.७२ । यात की दान में मनायोगा। सुरंगा यात मानी जाना 97171 472 TI : यास का न मानना। यात गाना मापात पहना। दिगोगामा मा। बाग स्नाना। 30--- मई महरा माग में माना। -पुर (१०)। चार गा; कार में धमाकारको न 17.11! 17ERT 1:mari 17 z ralen यातकी जागा'! काम या at:- (१) परते मीरा बाना । (२) बारीमान योग से गरे मेनादेना (मन में) पान माना पाठाना- द निधनया fri पी। पात रसना म पन * मनमाना। समया हो या न होना । पात टालना = (1) पूर्णा भाउमा यो बायन देकर इपर उपरको पौर २४ा महमा । गुगो मनमुनी सरना । (२) मादेश, प्रानामा निसा नुरान पारना । की हुई बात पर न पनामे-कमी हमारी बात नही राल सपो । पात दाराना बना न मानना सपना पासन नगरना। पात दुराना या दोहराना= (१)धी हुई वात फिर गहना । (२) विमो को घाउमा उसपर जवाब देना । रो.--- यलों को पास पुरा हो । उ०-है पिना हारे हाना पाहो बहाँगो पात दोहराना बुरा।-तुम, १० ४३ । मुंह से बात न साना- मुंह से शमन निकलना । पास न ना मा से प्यान न देना । तुन्य समसार यात समन भरमा। पुप भी पादर न करना । जैसे-तुम्हारी यी पाल रही तो मारे मारे फिरोगे, फोई बात न पूधेगा। उ०-शिर है, ऊपर परल संबट, बात नहिं पूर्व कोक 1--तुलसी (म.)। यात म करना = घमंड के मारे न बोलना । पात नीचे दालना= अपनी बात का संहन होने देना। मपनी यात के कपर रिसी पोर को पात होने देना । जैसे.--यह ऐसी मुंहजोर है कि एक बात नीचे नहीं घालतो। यात पफहना=(१) कपन में परस्पर विरोष या दोष दिसाना। किसी के पपन को उसी के फपन द्वारा मयुक्त सिद्ध करना । बातो से कापल करना।