पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२१९

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पावार बामी ३४५८ हम शब्द से संबोधन करता है। जैसे,—(क) वावा ! जो बाचूड़ा-ज्ञा पुं० [हिं० घाबू+ड़ा (प्रत्य॰)] बाबू के लिये हास्य, कुछ तुम्हारा मेरे जिम्मे निकलता हो वह मुझसे ले लो। व्यंग्य या घणासूचक शब्द । (ख) एक-अभी पका माँदा पा रहा हूँ फिर शहर जाऊँ ? चावूना-संज्ञा पु० [फा० वावूनह् ] पोषध के दाम में मानेवाला दूसरा-बाबा ! यह कौन कहता है कि तुम प्रभी जानो ? एक छोटा पौधा। बाबा-संश पुं० [५० ] लड़कों के लिये प्यार का शब्द । विशेष—यह पौधा यूरोप और फारस में होता है। इसको वापार-वि० [सं० घर, प्रा० बव्यर ] बर्बर । झगडालू । संघर्प पंजाब मे भी बोते हैं। इसका सूखा फूल बाजारों में मिलता प्रिय । उ०-वावारी बर तुग खम्ग साहै विरुझाना । लंगी है और सफेद रंग का होता है। इसमें एक प्रकार को गंध लगरराव अक्षराजी चहुमाना।-पृ० रा०, ६१११००८ । होती है और इसका स्वाद बड वा होता है। इसके फूल को तेल में डालकर एक तेल बनाया जाता है जिसे 'बाबूने का चाबिल-संग पुं० [अ० ] एगिया खंड का एक अत्यंत प्राचीन तेल' कहते है। यह पेट की पीड़ा, शूल और निबलता को नगर। हटाता है। इसका गरम काढा वमन कराने के लिये दिया विशेष—यह नगर फारस के पश्चिम बगदाद से लगभग ६० जाता है और स्त्रियों के मासिक धर्म बंद होने पर भी मील की दूरी पर फरात नदी के किनारे था। ३००० वर्ष उपकारी माना जाता है। पूर्व यह एक अत्यंत मभ्य और प्रतापी जाति की राजधानी था और उस समय सबसे बड़ा नगर गिना जाता था । बाभन-सज्ञा पुं० [स. ब्राह्मण] १ दे० 'ब्राह्मण' । २. दे० 'भूमिहार' बाभ्रवी-संज्ञा स्त्री॰ [सं०] दुर्गा का एक नाम [को०] । चाबीg:-संज्ञा स्त्री० [हिं० याचा ] १. साधु स्त्री। संन्यासिन । उ.-कामी से फुत्ता मला ऋतु सिर खोले काँच । राम नाम बाभ्रक-वि० [सं० ] [ स्नी बाभु की ] भूरे वर्ण का । भूरा । जाना नही चावी जाय न वाच ।-कबीर ( शब्द० । २. बाम'-वि० [सं० वाम ] १. दे० 'वाम' । उ०-विधि वाम की लड़कियों के लिये प्यार का शब्द । करनी कठिन जेहि मातु कीन्हीं वावरी।-मानस, २२००। वापीहा -संज्ञा पुं० [देश॰] दे॰ 'घाबह्यिा' । उ-जिरण बाम–संज्ञा पुं॰ [ फा०] १. अटारी । कोठा । २. मकान के ऊपर दीहे पावस भरइ, बाबीहउ कुरलाइ ।-ढोला०, दू० २५१ । की छत । घर के ऊपर का सबसे ऊंचा भाग । घर की चोटी। उ०-तुर पर जैसे किसी वक्त में चमके थी झलक । कुछ वाचूना-संज्ञा पुं॰ [देश॰] पीले रंग का एक पक्षी जिसफी अखि के सरेबाम से वैसा ही उजाला निकला।-नजीर (पन्द०)। पर का रंग सफेद, चोंच काली पौर अखेिं लाल ३. साढ़े तीन हाथ का एक मान । पुरसा। वावुक्ष'-संज्ञा पु० [ हि० यायू ] १. बाबू । उ०—घरही में बावुल ! बाम–संशा सी० [सं० ब्राह्मी ] एक मछली जो देखने में साँप सी पतली और लंबी होती है। वाढी रारि । घंग उठि उठि लाग चपल नारि ।-कवीर (शब्द०)। २. पिता । वाप। उ०—(क) बावुल जी मैं विशेष—इसकी पीठ पर कोटा होता है। यह खाने में स्वादिष्ट पैया तोरी लागी प्रवकी गवन दे डार। कबीर श०, पृ० होती है और इसमें केवल एक ही कांटा होता है। ४ । (ख) बाबुल मोरा व्याह करा दो, अनजाया वर लाय।- वाम --संज्ञा स्त्री० [सं० बाम ] १. दे० 'वामा' । २. स्त्रियों का एक कवीर श०, पृ० १०१॥ गहना जिसे वे कानो में पहनती है । घावुल-सज्ञा पुं० [प्र. यायिल ] दे० 'बाविल' । बामकी-संज्ञा स्त्री० [सं० घामकी ] एक देवी जिसकी पूजा प्रायः बाबू-संज्ञा पुं० [हिं० वाप या पाया ] १. राजा के नीचे उनके बंधु वामदेव-संज्ञा पुं० [सं० वामदेव ] दे० 'वामदेव' । जादूगर धादि करते हैं। बांधवों या और क्षेत्रीय जमीदारो के लिये प्रयुक्त शब्द । २. एक पादरसुचक शब्द । भलामानुस । उ०—(क) बाबू बामन-संज्ञा पुं० [ सं० वामन दे० 'वामन'। ऐसी है संसार तुम्हारा ये कलि है व्यवहारा । को अब अनख मुहा०-वामन होकर भी चाँद छूना असंभव काम कर सहै प्रतिदिन को नाहिन रहनि हमारा।-कबीर (शब्द०)। दिखाना। छोटा होते हुए भी बड़ा काम कर दिखाना । (ख) 'मायसु प्रादेश, वाबू (?) भलो भलो भाव सिद्ध उ.-मैं समझूगा कि मैने वामन होकर भी चांद को छू तुलसी विचारि जोगी कहत पुकारि हैं । —तुलसी (शब्द॰) । लिया।-घुभते० (दो दो०), पृ०६। विशेप-प्राजकल धंगरेजी पढ़े लिखे लोगों के लिये इस शब्द बामा-संज्ञा स्त्री० [सं० वामा ] दे॰ 'वामा' । उ०—जी हठ करहु का व्यवहार अधिक होता है। प्रेमवस वामा-मानस, श६२ । यो०-दाबूपन प्रतिष्ठित या सभ्य या शिक्षित होने का वामी'-सञ्ज्ञा स्त्री० [हिं० बांबी ] दे० 'बॉबी' । भाव | उ०-हट जायो सामने से, नही तो मारा वावूपन बामी-संज्ञा पुं॰ [ स० वामिन् ] वाममार्गी । अघोरी या अघोरपंथी निकाल दूंगा!-काया०, पृ० २४० । बाबूसाहय= एक उ०—(क) कलि की कुनाल निशा खंडे हैं पखड, तम दुरिगे मादरसुचक संवोधन । अभक्त चोर पंथ घोर वामी हैं। -भक्तमाल (श्री०), ३. पिता का संबोधन । बापू । पृ०४२०। होती हैं।