पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२२२

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बारडेह धार 1 क्रि० प्र०—करना ।-लगना ।-लाना ।-होना । बार-संज्ञा पुं० [फा० वार ] वार । प्राक्रमण । हमला। उ०- ३. समय का कोई मंश जो गिनती में एक गिना जाय । दफा । पसुन प्रहार वह काठ ते बचाय राख्यो वालपन बीच तोको मरतवा । जैसे,-मैं तुम्हारे यहां तीन बार आया । उ० सूलन की बार मै।-मोहन०, पृ० १३४ | (क) मरिए तो मरि जाइए छूटि परै जंजार । ऐसा मरना बार १२-क्रि० वि० [ स० वहिः वाह्य ] दे० 'बाहर' । उ०-मगर हैं को मरै दिन मे सौ सौ बार ।-कबीर (शब्द॰) । (ख) जहें आभिना के सात बेजार, उसे पाने कतें देना नही बार - लगि कहे पुरान श्रुति एक एक सब जाग। वार सहस्र दक्खिनी०, पृ० १६३ । सहन नृप किए सहित अनुराग ।—तुलसी (शब्द०)। बार:३-पक्षा पु० [पं०] १. वकीलो, वैरिस्टरो का समूह, उनका पेशा मुहा०-बार बार = पुनः पुनः । फिर फिर । उ०—(क) और कचहरी मे उनके उठने बैठने, पाराम करने का स्थान । तुलसी मुदित मन पुरनारि जिती बार बार हेरै मुख अवध २. वह स्थान जहाँ नृत्य होता हो । नाचघर | ३. शराब- मृगराज को।-तुलसी (शब्द०) (ख) फूल विनन मिस कुज खाना । मदिरालय । मे पहिरि गुज को हार । मग निरखति नदलाल को सुवलि यौ०-बार असोसिएशन = वकीलो का संघ । बार ऐट लॉ= वार ही बार ।-पद्माकर (शब्द॰) । वैरिस्टर । बार रूम = कचहरी मे वकीलो के उठने बैठने का बार-सज्ञा पुं० [सं० वाट (=घेरा या किनारा हि० बाड़)] १. घेरा कमरा । बार लाइब्रेरी कचहरी में वकीलो बैरिस्टरो का या रोक जो किसी स्थान के चारो ओर हो । जैसे, बाँध, टट्टी पुस्तकालय । प्रादि । दे० 'बाई', 'वाद' । २. किनारा । छोर । बारी। ३. बार आवर-[फा०] फलयुक्त । फलदार | फलनेवाला [को०] । घार । बाढ़ । उ०-एक नारि वह है बहुरगी। घर से बाहर बारक'-क्रि वि० [हिं० घार+एक ] एक बेर । एक बार । एक निकसे नेगी। उस नारी का यही सिगार । सिर पर नथनी दफा । उ०-बारक बिलोकि बलि कीजै मोहि पापनो। मुंह पर वार ।-रहीम (शब्द०)। ४. नाव, थाली प्रादि राम दशरथ के तू उथपन थापनो । -तुलसी ग्रं॰, पृ० ५४८ । को अबैठ । किनारा । ५. बांगर । ऊँची पक्की जमीन जिसे बारक'-सज्ञा स्त्री० [ अं० बैरक ] छावनी पादि मे सैनिको के रहने नदियों ने न बनाया हो । उ०-मनुष्यों के विभिन्न झुडो की के लिये बना हुप्रा पक्का मकान । तीन तरह की विभिन्न परिस्थितियां थी-समुद्र तट, सघन बारकत-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक पौधा जो सांप काटने की औषध वन और सूखे बागर या बार ।-भारत नि०, पृ० ४ । है। इसकी जड़ पीसकर उस स्थान पर लगाई जाती है जहाँ बार-संशा पु० [हिं० ] दे० 'बाल' । केश । उ०-भ्रू पर अनूप साँप काटता है। मसि बिंदु वारे बार 'बिलसत सीस पर हेरि हरै हियो है। बारगह-संज्ञा श्रो[ फ़ा० बारगाह ] १. डेवढ़ी । २. डेरा । खेमा। -तुलसी पं०, पृ० २७३ । तवू । उ० चितौर सीप वारगह तानी। जहँ लग सुना कूच बार"-सज्ञा पुं० [फा०: मि० सं० भार] १. बोझा । भार । उ०- सुलतानी।-जायसी (शब्द०)। जेहि जल तृण पशु बार वूड़ि अपने संग बोरत । तेहि जल बारगाह-सज्ञा पुं० [फा० बारगाह ] खेमा । शामियाया। उ०- गाजत महावीर सब तरत अंग नहिं डोलत ।—सूर (शब्द०)। तवू बारगाह छत्र मेहराव प्रादि खड़े किए गए । हुमायू, यौ०-बारवरदार । घारबरदारी । बारदाना। पृ०१०६। मुहा०-बार करना = जहाज पर से बोझ उतारना । (जहाजी)। बारगीर-संज्ञा पुं० [ फा०] १. वह जो घोड़े के लिये घास लाता २. वह माल जो नाव पर लादा जाय । (लघ०)। ३. ऋण का और उसकी रक्षा आदि में साईस को सहायता देता हो। बोझ । ४. वृक्ष की शाखा या टहनी (को०) । ५. फल (को०)। घसियारा । २. बोझा ढोनेवाला जानवर । ६. इजलास । दरवार सभा (को०) । ७. गर्भ । भ्रूण बारपा-सज्ञा पु० [फा० बारचह्] १. छोटा दरवाजा । दे० (को०) । ८. गुजर । पहुँच । प्रवेश । रसाई । पैठ । उ०-देस 'वारचा' [को०) । देस के राजा प्रावहिं । ठाढ़ तवाहि बार नहिं पावहिं।- वारजा-सज्ञा पुं० [हिं० घार (= द्वार)+ जा(= जगह)] १. मकान चित्रा०, पृ० ६० । के सामने के दरवाजो के ऊपर पाटकर बढ़ाया हुमा बरामदा । पार–प्रत्य० [फा०] बरसनेवाला । २. कोठा। अटारी। ३. वरामदा। ४. कमरे के आगे का विशेप-संज्ञा पदो में प्रयुक्त होकर यह प्रत्यय उक्त अर्थ देता है छोटा दालान । जैसे,—गोहरवार, दरियावार प्रादि । बारटा- संज्ञा पुं॰ [ देश० ] भाट। वारहठ । बारठ । उ०-बारट घार-वि० [हिं०] दे॰ 'बाल' और 'वाला' । एक स्वरूपा नामू। जाका भया प्रदाणा धामू।-राम० वारी-संज्ञा पुं० [सं० वारि ] जल । धर्म०, पृ० ३५७ । बार-संज्ञा पुं० [सं०] छिद्र । छेद । दरार । विल [को०] । वारठ-संशा पु० [हिं० वार( = द्वार)+3] दे० 'वारट' । उ०- वार-संज्ञा पुं॰ [फा० बहूह (=प्रश) या बहू (= छंद) ] अंश । कहियो वारठ केहरी, विध रचतां करियाम । पाऊँ वोल भाग । हिस्सा । उ०–मेच्छ मसूरति सत्ति के बंच कुरानी पंचायती, हूँ लाऊं संगराम ।-रा० रू०, पृ० २६३ । बार।-पु० रा.,२६ । बारडा-संज्ञा पु० [ देश० ] दे० 'बारट'।