पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२२८

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पाल वार १४६७ बारै-वि०, संज्ञा पु० [हिं० बारह ] बारह । उ०-वारे अरु द्वं २. वह जिसको समझ न हो। नासमझ पादमी। ३. मूक । वरष परि सुदि अपाढ़ सनि सोइ ।-ह० रासो, पृ० ७६ । अनेकार्थ०, पृ० १४७ । ४. सुगंधवाला नामक गध । ५. किसी पशु का वच्चा। बछेड़ा। ६. करम । हाथी का पांचवांय धारोंधार+-क्रि० वि० [ सं० वारम्वार ] दे० 'वारबार' । उ०- वच्चा (को०)। ७. नारियल (को०) । ८. दुम ! ६. हाथा या राम को नाम जो लेव वारोवार । त्या पाऊँ मेरे तन की पैजार !-दविखनी०, पृ० १०१ । • घाड़े की दुम (को०)। वारोठा-संज्ञा पु० [सं० द्वार -- रथ (प्रत्य॰)] १. वह रस्म जो वाल-संशा क्षा० [ स० याला ] दे० 'वाला' । उ० - तन मन मेट खेद सब तज उपाधि को चाल । सहजो साधू रामक विवाह के समय वर के द्वार पर आने के समय की जाती तजे कनक और बाल ।-सहजो०, पृ० १७ । है। २. द्वार । दरवाजा । उ०-वारोठे को चार करि कहि बाल-वि० १. जो सयाना न हो । जो पूरा बाढ़ को न पहुंचा हो । केशव अनुरूप। द्विज दुलह पहिराइयो पहिराए सब भूप । २. जिसे उगे या निकले हुए थोड़ा हा दर हुई ह।। जस, -केशव (शब्द०)। बालरवि। बारोमीटर-संज्ञा पु० [६० वैरोमीटर ] दे० 'वैरोमीटर' । बाल-सञ्ज्ञा पु० [सं०] सूत की सो वस्तु जो दूध पिलानेवाले बार्जा-संज्ञा पुं० [ फ़ा० यारजह, या अं० वाज (= हाउसबोट)] ३० 'वारजा'। उ०-जालपा भी संभलकर वाजे पर खड़ी हो जतुओं के चमड़े क कार इतनी अधिक हाता है कि उनका गई।-गवन, पृ० ३५२ । चमड़ा ढका रहता है । लोम और केश । बार्डर-संज्ञा पुं० [अं] किसी चीज के किनारों पर बना हुपा विशेष-नाखून, सीग, पर आदि के समान वाल भी कड़े पड़े बेल बूटा । हाशिया। किनारा । हुए त्वक् के विकार ही हैं। उनमें न तो सवेदनसूत्र होते हैं न रक्तवाहिनी नालिया। इसी से ऊपर से बाल को कतरने बाबर १-वि० [सं०] बर्बर देश का । बर्वर देशोत्पन्न । से किसी प्रकार की पीड़ा का अनुभव नही होता । बाल का पावर-संज्ञा पुं० [फा० वार ( = हुँच)+ बर (चाला)] वजीर । कुछ भाग त्वचा से बाहर निकला रहता है और कुछ भीतर सलाहकार । उ०-तारीखे फिरोजशाही से जान पड़ता है कि रहता है। जिस गड्ढे मे बाल की जड़ रहती है उसे रोमकूप, सुलतान तुगलकशाह (गयासुद्दीन) ने गद्दी पर बैठते ही अपने लोमकूप कहते हैं । बाल की जड़ का नीचे का सिरा माटा भतीजे असदुद्दीन को नायव बार्बर (वजीर) बनाया था। और सफेद रग का होता है । वाल के दो भाग होते हैं, एक -राज०, पृ० ५०२। तो बाहरी वह और दूसरा मध्य का सार भाग । तार भाग घाबरीट-संशा पुं० [सं०] १. श्राम की कोइली । आम की गुठली । आड़े रेशों से बना हुआ पाया जाता है। वहाँ तक वायु का २. कल्ला । कनखा । कोपल । ३. पुश्चलो या वेश्या का संचार होता है। पुत्र । ४. टिन [को०]। मुहा०-बाल घाँका न होना = कुछ भी कष्ट या हानि न बाहे-वि० [सं०] [वि० सी० घा_ ] बहं अर्थात् मोरपंख का । पहुँचना । पूर्ण रूप से सुरक्षित रहना । उ०-होय न बांको मयूरपंख संबंधी । मोरपंख का बना हुआ को०] । बार भक्त को जो कोउ कोटि उपाय करै ।-तुलसी (शब्द०) चाहद्रथ-सज्ञा पु० [ स० ] बृहद्रथ का पुत्र जरासंघ [को०) । बाल न पाकना= बाल बांका न होना। उ०-जेहि जिय मनहिं होय सत भारू । परै पहार न बोके वारू-जायसी बाहेस्पत'-वि० [सं०] वृहस्पति से संबद्ध । बृहस्पति संबंधी। (शब्द०)। नहाते बाल न खिसना कुछ भी कष्ट या हानि बार्हस्पत २-सज्ञा पुं० एक संवत् का नाम [को०] । न पहुँचना । उ॰-नित उठि यही मनावति देवन न्हात खसे वाईस्पत्य -सज्ञा पु० [सं०] १. बृहस्पति का एक भौतिकवादी जनि वार-सूर (शब्द०)। (किसी काम में) बाल अनुयायी। २. अग्नि । ३. बृहस्पति द्वारा रचित एक प्रर्थ पकाना = (कोई काम करते करते) वुड्डा हो जाना । बहुत शाल । ४. भौतिकवादी। नास्तिक । दिनो का अनुभव प्राप्त करना । जैसे,—-मैने भी पुलिस की बाहिण-वि० [सं०] [ वि० सो० वाहिणी ] मयूर संबंधी [को०] । नौकरी में ही बाल पकाए हैं। पाल परायर बहुत सूक्ष्म । घालगा-सशा पु० [ फ़ा० चालिंगू] जीरे की तरह काले रंग का बहुत महीन या पतला। वाल परापर न समझना=कुछ भी एक बीज जो बहुत पुष्टिकर माना जाता है और प्रौषध के परवा न करना । अत्यंत तुच्छ समझना। बाल घराघर फर्क काम में प्राता है। इसे पानी में डालने से बहुत लासा होना जरा सा भी भेद होना। सूक्ष्मतम अंतर होना। निकलता है । तुरुमवालंगू । तूतमलंगा । उ०-जो कह दे वही हो जाए। मजाल क्या जो बाल बाल-संशा पु० [सं०] [ पी० बाला ] १. वालक । लड़का । वह बरावर फर्क हो।—फिसाना०, भा० ३, पृ० १४४ । पान जो सयाना न हो। वह जो जवान न हुप्रा हो। उ०-बाल बाल बचना = कोई आपत्ति पड़ने या हानि पहुँचने में बहुत विलोकि बहुन मैं वांचा।-मानस, १ । घोड़ो कसर रह जाना । जैसे,-पत्थर पाया, वह वाल वाल विशेष-मनुष्य जन्मकाल से प्रायः सोलह वर्ष की अवस्था तक वच गया। बाल या बालक कहा जाता है। वाल-संभ पु० [ देश० 1 कुछ मनाजों के पौषों के डंठल का वह