पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२४१

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" बाह्रीक ३४८० विधिया बाह्रीक-ज्ञा पु० [स० ] कांबोज के उत्तर के प्रदेश का प्राचीन प्रकार्थ न दीजिए विद्या बिंद रु जिंद |---रघुनाथदास नाम जहाँ आजकल बलख है। (शब्द०) । ४. विदी। माथे का गोल तिलक । उ०—(क) विशेष—यह स्थान काबुल से उत्तर की ओर पडता है। इसका मृगमद विंद भनिद सास खामिद हिंद भुव ।-गोपाल प्राचीन पारसी नाम बक्तर है जिससे यूनानी शब्द वैक्ट्रिया (शब्द०)। (ख) किधी सु अधपक प्राम मै मानहुँ मिलो वना है। अमद । किधौ तनक है तम दुरयो के ठोढ़ी को विद।- बिंग'-पज्ञा पुं० मं० व्यङ्ग्य ! १. वह चुभती हुई बात जिसका पद्माकर (शब्द०)। गूढ अर्थ हो । व्यंग्य । काकूक्ति । विशेष—दे० 'व्यग्य' । बिदक-वि० [सं० विन्दक ] जानकार । ज्ञाता। दे० 'विंदक' । उ०—(क) करत विंग ते बिंग दूसरी जुक्त अलंकृत माहीं । उ०-चौरासी ग्रासन वर जोगी। षटरस विंदक चतुर सूरदास ग्वालिन की बातें को कस समुझन होही ।-सूर सुभोगी।-जायसी प्र० (गुप्त), पृ० ३३४ । (शब्द०)। (ख) प्रेम प्रशसा 'विनय विंग जुत सुनि विधि बिंदवि 1-सञ्ज्ञा स्त्री० [सं० विन्दवि ] वूद । बिंदु (को०] । की वर बानी । तुलसी मुदित महेस मनहिं मन जगत मातु विंदा'-सज्ञा स्त्रो० [सं० वृन्दा ] एक गोपी का नाम । उ०—इंद्रा मुमुकानी । —तुलसी (शब्द०) २. भाक्षेपपूर्ण वाक्य । ताना । विंदा राधिका श्यामा कामा नारि |-सूर (शब्द०)। क्रि० प्र०-छोड़ना ।-बोलना । विदा-सज्ञा पु० [स० विन्दु ] १ माथे पर का गोल और वडा बिंगा-वि० [ स० वक्र या व्यग्य ] [ ना बिगी । वक्र । टेढ़ा । टीका । बेदा । बुंदा । बड़ी बिंदी । उ०-मृगमद बिंदा ता में उ०-मैं कुंभारी छोरियो की एक लबी साँस हूँ। दो दिलों राजे । निरखत ताहि काम सत लाजे ।-सूर (शब्द०)। मे चुबनेवाली एक विंगी फाँम हूँ।-दविखनी०, पृ० २६५ । २. इस प्राकार का कोई चिह्न । बिंग्याए-सझा पु० [स० व्यङ्गय ] दे० 'बिंग'। 30-- रस धुनि बिंदो--संशा मो. [ स० विन्दु ] १. सुन्ना | शून्य । सिफर । बिंदु । गुनि अरु लच्छना बिंग्य सब्द अभिराम । सप्त सही या मैं २ माथे पर लगाने का गोल छोटा टीका | विदुली । ३. इस सही धरयो सतसई नाम । -स० सप्तक, पृ० ४०० । प्रकार का कोई चिह्न। बिछो-सज्ञा स्त्री० [स० वृश्चिक हिं० विच्छी, बिच्छू, बीछी ] दे० बिंदु-सज्ञा पु० [सं० विन्दु, प्रा० विदु ] दे० 'विदु'। 'बीछा' । उ०—काहर कंधन कितक कितक स्वानन मुख बिंदुक-सज्ञा पु० [सं० विन्दुक ] बूद । दे० 'विंदु' [को०] । टुट्टत । विछो सर्प विपंग मत्रवादी मिल लुट्टत ।-पृ० रा०, बिदुका-सशा पु० [सं० विन्दु + हिं० का (प्रत्य॰)] १. विदी। ६।१०५ । गोल टीका । उ०-लट लटकनि मोहन मिस बिंदुका तिलक बिजन - सज्ञा पु० [स० व्यञ्जन, प्रा. विजन ] भोज्य पदार्थ । भाल सुखकारी ।—सूर (शब्द०)। २. इस प्रकार का कोई खाने की सामग्री । उ०-(क) मागमय तेहि कोन्हि रसोई । चिह्न। बिजन बहु गनि सकइ न कोई । -तुलसी (शब्द०) । (ख) बिदुमाधव-नज्ञा पु० [ सं० विन्दुमाधव ] दे० 'विदुमाधव । सुदर विजन सुदर छोके । कधिनि धरि लिए लागत विदुरा -सज्ञा स्त्री॰ [ स० विन्दु ] १. माथे पर का गोल टोका । नीके ।-नंद० ग्र०, पृ० २५६ । विदी। विदुली। टिकुलो । २. इस प्रकार का कोई चिह्न । विझ-संज्ञा पु० [ स० विन्ध्य प्रा० विझ ] दे० 'विध्य' । उ०- विंदुलरथी-पञ्चा पु० [ देश० ] वेत ।-नद० न०, पृ० १०७ । जाऊँ वेगि थरि प्रापनि है जहाँ बिझ बनाह । -जायसी न विदुली-सझा स्वा [ स० विन्दु ] विदी। टिकुली। उ०- वंदन ( गुप्त), पृ० ३७१। विदुली भाल की भुज प्राप बनाए । —सूर (शब्द०)। बिझनो-शा बी० [स० वन्ध्या, प्रा० वंझा, हिं० बॉम, बाझिन] बिंद्रावन-सा पु० [सं० वृन्दावन, प्रा. विद्रावण ] दे० 'वृदावन' । दे० 'बाझ' । उ०-सब सौति कह्यो दुख सुनहु तुम्म, राजन्न बिंधा-संशा पु० [सं० विध्य, प्रा० विध ] दे० 'विंध्याचल'। तनय हमसो न क्रम्म | को जानि मात बिझनी पीर, सौति को उ.-विध न इंधन पाइए, सायर जुरे न नीर |-तुलसी साल साले सरीर --पृ० रा०, १॥३७५ । ग्रं०, पृ० ६२ विंटनाg+-क्रि० स० [सं० वेष्टन, प्रा०विंटन, गुज० विटबु ] लपे- बिंधना-क्रि० प्र० [सं० बेधन, प्रा० विधण ] १. बीधना का टना । वेष्टित । करना । उ०—मुख केस पास बित्यि विसाल । अकर्मक रूप । बीघा जाना । छेदा जाना। २ फँसना । वध्यो कि सोम सोभा सिवाल ।-पृ० रा० ११३७२ । उलझना। बिटुलना-क्रि० स० [ स०० वेष्टन प्रा० विंटन ] बटोरना। विधाना@-क्रि० स० [हिं० विधना] छिद्रित कराना । वेधित एकत्र करना । उ० -बिटुलिय बार पाना नरिंद। बोसल कराना। उ०-(क) सुदर क्यों पहिले न संभारत, जो तड़ाग मधि द्रव्य कद ।-पृ० रा०, ११६०६ । गुर पाइ सु कान बिंधावै ।-सुदर ग्रं, भा॰ २, पृ० ४०२ । विंद-सज्ञा पु० [सं० विन्दु प्रा० विदु] १. पानी की बूद । (ख) जो गुड़ खाय सो कान बिंधावै ।-( कहावत )। २. दोनो भवो के मध्य का स्थान । मध्य । ३. वीर्यबुद । बिंधिया-सज्ञा पुं० [हिं० बाँधना + इया ( प्रत्य॰)] वह जो उ०-जो कामी नर कृपण कहि करै प्रापनी रिद । तदपि मोती वीषने का काम करता हो । मोती में छेद करनेवाला ।