पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२४३

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विकरम' २४८२ थिकाम अर्थ में केवल विकना पाद का भी प्रयोग होता है। घिकवाना-गि० स० [हिं० वियना का रूप ] वैपने का जैसे,ठानहैं ऐसी नही करिफे फर तोप चिते जेहिं कान्ह काम पूसरे से कराना। दूसरे को धेचने में प्रवृत्त करना। बिकानु है ।-तोष (शब्द०)। फिपी से विक्री कराना। विकरमा-सा पु० [स० विक्रम] ० "विक्रमादित्य' । उ० विकसना-कि० प्र० [in पिकसम ] १. गिलना । पूलना। भोज भोग जस माना विकरम साका कीन्ह । परिरा सो रतन प्रस्फुटिस होना । २. प्रफुस्तित होना । बहुत प्रसन्न होना। पारसी सबइ लस लिसि दीन्द ।... जायसी (शब्द०)। विकसाना-कि० ० [i० विझपन] २० दिकराना' । ३०-पाहन २. परानाम | विक्रम । वीर फमम पिसाही पम में पगिनि जरे।र (२०६०)। विफरम-वि० [ स० चि (-युग) कर्म ] सराब काम । चुरे विकसाना-गि० म० १. विनासित परना। गिलाना। २. काम । उ०-करम विकरम करत नहिं दरिद । -सुदर प्रफुल्लित करना । प्रसन्न करना । पं०, भा० २, पृ० ४०२ । विका-संत पु० [?] एक पिट | घिसान-2. [ हिं० विकमना ] चियनित होनेवाला । गिनने. विकरार-वि० [ फा० बेकरार ] व्यागुल । विशाल | बेगैन । चाला । 30-ल प्रहै पै पषिय समान । पलिय पद है उ.- पावल टार गहि गई विफरारा। कामु पुकार बिगान -ग्रा०. पृ०४३। पापनहारा ।—जायसी (शब्द०)। पिकाऊ-बहि० पिकना याऊ (प्रत्य॰)] जो चिकने के लिये विकरार-वि० [ स० विकराल ] याठिन । भयानगः । उरावना । हो। जो बंपा जानेवाना हो। यिनेयाना। जैसे.-कोई भयंकर । उ०—(ग) नाफ कान चिनु भा विकरारा।- पालमाग चिमाजको गोहमसे गहना । मानस, ३।१२। (स) पुष्कर पुष्कर नयन पल्यो वृतासुन यिकाना-कि०म० [हिं०] विाना, पिफगरो ।--गोपाल (श०५०)। पिकार-० [मे० विकार या विकराल ] जिगती मा विकराल-वि० [ स० विकराल ] रायना । विकराल | To विकृत हो। २. विफगल । विफट । भीषण । 30-तुम माली मेघमाल बनपाल विकराल भटनीफे राय माग सीने जाग यालक दादि जमूना श्याम मेरो जागिहै। पंग सारी सुधासार नीर फे। -तुलसी (शब्द०)। गुरा विकारो टिपर तोहिं नागिहै। -गर (गन्द०)। विफर्म-संडा पुं० [सं० यिन फर्ग ] सराय माग । चुरा काम । पिफार@R-गापु० [सं० विकार ] १. बिगड़ा हुमा रूप। उ.-कर्म न विफर्म कर भाव न अमाव धरै सुभ प्रसुभ विकृति । विनिया । ३०-चारिद बचन मुनि पुनि सोस पर यातें निपरक है।-सुंदर ग्रं, भा॰ २, पृ० ६३६ । सचिवनि कहे दससीस ईन वामता विकार है।-तुतसो विकला-वि० [सं० विफल ] १. व्याकुल । घबराया कृपा। २. (शब्द०)। २. रोग। पीला । दुःग। ३. दोप। ऐय। बेचैन । उ०-विकल विराोकि सुतहि समुझायति ।-मानस, रारापी । बुराई । पप गुण । ३०-गड़ चेतन गुण दोषमय २।१६१ । विश्व कोन्ह करतार । संत हेग गुन गहहिं पर परिहरि वारि विकलई -संशा सी० [सं० विफल--हिं० ई (प्रत्य०)] ध्यागुलता । विकार । -तुलसी (स.)। ४. बुरा फल । पापकर्म । वेचैनी। विकलाई। उ.-गर्न रघुराज कापण्य पएम पौधरी है जग के विकार विफलप-संशा पुं० [सं० विकरुप ] दे० 'विकल्प-१' । उ०- जेठे सबै सरदार है।-रघुराज (गम०) । ५. कुवासना । दरिया विफलप मेट के, भज राम सहाई।-दरिया० बानी, उ.-रंजन संत पसिरा पधगजन मंजन विषय विकारहि । पृ० ६२. -तुलसी (शब्द०) । विशेष ३० "विकार। विकलाई-संशा स्त्री० [सं० विकल+हिं० प्राई(प्रत्य॰)] व्याकुलता। विकारी-वि० [सं० विकार ] १. विकृत रूपवाला । जिसका बेचैनी । उ०—(फ) दासिन्ह दीप सचिव विकलाई । कौसल्या रूप बिगडफर भौर का पोर हो गया हो। २. महितकर । गृह गई लवाई।-मानस, २।१४८ । (ख) ऐसी फलाई बुरा । हानिकारक | उ०-अशुभ होय जिनके सुमिरन ते लखे विकलाई भई कल प्राई नही दिन राती।-अयोध्या वानर रीघ बिकारी। तुलसी (शब्द०)। सिंह (शब्द०)। विकारी-संश सी० [सं० विकृत या वह पपया हिं० विकार+ई विकलाना@+-क्रि० प्र० [स० विकल १. व्याकुल होना। (प्रत्य॰)] एक प्रकार की टेठी पाई जो श्रकों मादि के वेचैन होना । 30-हरिमुख राधा राधा पानी । धरनी परे पागे संस्था या मान यादि सूचित करने के लिये सगाई जातो अचेत नही सुधि सखी देखि विकलानी।-सूर (शब्द०)। है। लिखने में रूपए पैसे या मन सेर प्रादि का चिह जिसका विकलाना-क्रि० स० व्याकुल फरना । वेचैन करना। जिसफा रूप ) तथा ऽ होता है । उ०-वक विकारी देत ज्यों विकल्प-ता पुं० [सं० विकल्प] एक प्रलंकर । वि० दे० 'विकल्प'। दाम रुपैया होत ।-विहारी (शद०)। उ०-ताहि विकल्प वखानही, भूपन कवि सब कोय । विकाल-संश पुं० [बंग] दिन का परा भाग। अपराह्न काल । भूपण न०, पृ०। सकाल का उलटा।