पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२४५

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बिग ३४०४ विगाहना उलटि विगे परि पकरा विस सरोवर साथा |---संत० दरिया, विगति- ० [हिं० २० विगत' । गमावार । न हाल पृ० १०५ पाल | 10-अपर विनिमीतु यह पत्री पाटी हाय । विग-वि. [अं. ] वा । स्थूल । विपुल । वृहत् । समाचार जाने सधै गुनो हामी गाय । -दर , विगड़ना-त्रि० प्र० [ म. विकृत ] १. किसी पदार्थ को गूण या भा०१,०६३॥ रूप धादि मे ऐमा विकार होना जिससे उसकी उपयोगिता विगर-nिe f० [५० यगर ] चिना। हिर। गैर। 3.- घट जाय या नष्ट हो जाय । अनसी रूप या गुण या नष्ट तमा गुमिरि मय पाज, मिदिन गुमचीन है। रगन हो जाना। सराब हो जाना । जैसे, मशीन बिगहना, मनार यस गुमन, विधन बिगर पूनम -गज विगढ़ना, दूध विगटना, काम बिगड़ना। २. पिसो पदार्थ (१०)। के बनते या गटे जाते समय उममे कोई ऐमा विकार विगरना-'क० प्र० [हिं० पिगाना : 'विमटना' । न- उत्तन्न होना जिससे यह ठीर. या पूग न उतरे । जैसे,-- (क) विगत मन मन्याग मे जर नागा घाम गे गो। (क) यह तस्वीर अब तप तो ठीक बन रही थी पर -गुगमी (गम०) । (स) माय पवार मोलि मिरिग शव बिगर पली है । (रा) देखते है कि तुम्हारे कारण ही मत गुग, गिरन मोर बनाए ।-बी००, ना०, यह बनती हुई बात विगढ़ रही है। ३. दुरवस्था को प्राप्त पृ०१६ । होना । खराब दशा मे पाना। प्रान रह जाना। बिगराइल-f० [हिं० विगतमा वाइन (प्रत्य)] १.टी। से,--(क) किती जमाने मे इनकी हालत बहात पच्ची थी, to 'fanet'i 7. fares i fanzi P911 TO पर याजकन ये विगट गए हैं। (रा) विगहे पर पी यात गटिल गुरूपिनो उदाम पर बैठी या दिगगाम जाने दो। ४. नीतिपय से प्रष्ट होना । बदचलन होना। चिनागिन पाम है।ट्रना (२०) । चाल चतन का सराब होना । जैसे,-पाजाल उन का तना बिगरायला- [fr.]३० मिनरल । उ०-दो तो दिग- विगड़ रहा है, पर वे युछ ध्यान ही नहीं देते। ५.स गयत पोर को गिरोन विपरिये ।- तुलसी (नन्द०)। होना। गुरसे में प्राकर उपट करना । जैसे,- अपने नौकरो पर बहुत बिगड़ते हैं। ६. विरोधी होना। विगलित-वि० [१० विगलित] सीमूव । पाई ! REPार । टा. विद्रोह करना । जैसे,—सारी प्रश विगढ़ राठी १६ । ७. फूटा । उ०-फालित वेद विनित वचन लगियतु पपित गात|-10 साक,०३८४। (पशुमो भादि का ) अपने स्वामी या रक्षा की प्राशा या अधिकार से बाहर हो जाना। जैसे, घोड़ा विगहना, हायी विगसना-नि०प० [हिं०] शिलना 1 :- विकसना' । उ०—कन विगहना। ८. परस्पर विरोध या वैमनस्य होना। लड़ाई बिरयनि मों सपटि लता फूलो मूली जन । दिनमत सारस झगड़ा होना। सटकना । जैसे,-प्राजकल उन दोनो में हम बस विगमस अंबुज दन ।-नंद० ग्रं, पृ० ३५ । बिगड़ी है। ६. व्यर्थ व्यय होगा। बेफायदा गचं होना । विगसाना@-कि० स० [हिं० विगसना ] : विकसाना'। जैसे,—आज बैठे बैठाए ५) बिगड़ गए । विगसाना-पि.० म ०० यिसना'। 30-4) नियमुन संयो० कि०-जाना। सरद कमल जिगि किमि काहि जाय । निसि मतीन यह निस विगड़े दिल-संशा पु० [ हिं० विगदना + प्रा. दिल ] १. यह जो दिन यह विगसाय।-तुलसी (शब्द०)। (स) सब बात बात मे विगढ़ खड़ा हो। हर बात में लड़ने म.गहने- गुरु चरण गहे हिप माही। भानु उदय पंकज विगमाही। -वीर सा०, ० ८३७ । वाला। २. वह जो बिगड़ा हुघा हो । गुमार्ग पर चलने- वाला। विगहरि-शा पुं० [सं० युक, हिं० विग, पीग+हर (प्रत्प०); बिगड़े ली [हिं० विगढ़ना+ऐल (प्रत्य०) या बिगहेदिल ] १. या सं० वृक+हर (= पीता) ] भेठिया, पीता प्रादि हिसया जो बात बात में विगढ़ने लगता हो। हर बात में गोध जतु । 30-साथिय एक कुँबर सो कहा । चन विगहरि सों करनेवाला । जो स्वभाव से गोधी हो । हठी। जिद्दी। दो प्रहा।-द्रा०, पृ०२८ । ३. जो विगड़ा हुपा हो। तुमार्ग पर घरानेवाता | बुरे विगहा-संज्ञा पुं॰ [ देश० ] दे० 'पीपा । रास्ते पर चलनेवाला । खराव चाल परानवाता । विगही।-संश स्त्री० [ देश० ] क्यारी । बरही । विगत-संज्ञा पुं० [स० विगत (= त्यतीत) ] १. चीता हया। विगाह-शा पुं० [हिं० विगदना] १. बिगड़ने की क्रिया या भाव । २. २. ब्यौरा । विवरण । उ०—(क) बजिका ज्यारा विगत रागयी । बुराई । दोष । ३. वैमनस्य । द्वेष । झगड़ा | लड़ाई। अवर न फोय उपाय |-रघु० २०, पृ० १३ ॥ विगाड़ना-क्रि० स० [सं० विकार] १. किसी वस्तु के स्वाभाविक गुण बिगताविगत-संज्ञा पुं० [स० विगत+अविगत] अतीत और वर्तमान या रूप को नष्ट कर देना। किसी पदार्थ में ऐसा विकार का रूप। ज्ञेयाज्ञेय । उ०--विमल एक रस उपजे न विनसे उत्पन्न करना जिससे उसकी उपयोगिता नष्ट हो जाय । जैसे, उदय अस्त दोउ नाही । विगताविगत घट नहिं कबहूँ वसत फल बिगाड़ना, रसोई बिगाड़ना । २. किसी पदापं को बनाते बस सब माही।-रे० वानी, पृ० ४५ । समय या कोई काम करते समय उसमें कोई ऐसा विकार ।