पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५१

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बिजली २४९० बिजली जिससे फभी कभी ताप और प्रकाश भी उत्पन्न होता है। विद्युत् । विशेप-यह शक्ति सब वस्तुओं में और सदा नहीं होती, बल्कि कुछ विशिष्ट क्रियाओं की सहायता से उत्पन्न होती है। यह शक्ति एक तो घर्षण से और दूसरे रासायनिक क्रियानों से उत्पन्न होती है। मोरपंख को थोड़ी देर तक उँगलियों से, लाह के टुकड़े को फलालीन से पथवा शीशे को रेशम से रगड़ने पर यह शक्ति उत्पन्न होती है। ऐसी बिजली के धनात्मक और ऋणात्मक ये दो भेद होते हैं । जब दो वस्तुमों को एक साथ रगड़ते हैं, तो उनमे से एक से धन विद्युत् पौर दूसरी में से ऋण विद्युत उत्पन्न होती है । विजली कुछ विशिष्ट पदार्थों में चलती भी है और प्रत्यत वेग से (प्रति सेकंड २६०००० मील पथवा प्रकाश के वेग की अपेक्षा ड्योढ़े वेग से) चलती है। ऐसे पदार्थों को चालक कहते हैं । इनके एक सिरे पर यदि बिजली पहुँच जाय तो वह तुरंत उनके दूसरे सिरे पर जा पहुँचती है | धातुएँ, जल, वृक्ष, शरीर, बर्फ श्रादि पदार्थ चालक हैं। कुछ पदार्थ ऐसे भी होते हैं जिनमे बिजली का संचालन नहीं होता और जिनको प्रवरोधक कहते हैं। जैसे, चूना, हवा, रेशम, शीशा, मोम. ऊन, लाह, पादि । घपण से जो विजली उत्पन्न होती है, वह बहुत ही थोड़ी होती है और उसके उत्पादन में परिश्रम भी अधिक होता है । इसलिये वैज्ञानिको ने अनेक रासायनिक प्रयोगों और क्रियात्रों की सहायता से बिजली उत्पन्न करने के उपाय निकाले हैं। ऐसे उपायों से थोड़े व्यय और कम परिश्रम से कम समय में बहुत अधिक विजली उत्पन्न की जाती है जो एकत्र या संग्रह करके भी रखी जाती है। ये यंत्र अनेक प्राकार पौर प्रकार के होते है और इनसे बहुत अधिक ,मान में विजली उत्पन्न होती है। इस प्रकार उत्पन्न की हुई बिजली से आजकल अनेक प्रकार के कार्य लिए जाते हैं । जैसे, रोशनी करना, पंखा चलाना, अनेक प्रकार की गाड़ियां चलाना, एक धातु पर दूसरी धातु चढ़ाना, समाचार भेजना, इत्यादि, इत्यादि । भाजकल भारत के बड़े बड़े नगरों में ऐसी ही विजली की सहायता से ट्राम गाड़ियां और हानेक प्रकार की मशीनें चलती हैं 'पौर रोशनी होती है। इससे अनेक प्रकार के रोगो की चिकित्साएं भी होने लगी हैं। यदि यह बिजली अधिक मान मे हो और मनुष्य के शरीर से उसका स्पर्थ हो जाय तो उससे तुरंत ही मृत्यु भी हो सकती है । विजली का प्राविष्कार पहने पहल थेल्स नामक एक व्यक्ति ने किया था जो ईसा से प्रायः ६०० वर्ष पूर्व हुआ था। उसने पहले पहल इस बात का पता लगाया था कि रेशम के साथ कुछ विशिष्ट वस्तुनों को रगड़ने से उसमें यह शक्ति पा जाती है कि वह कागज के टुकड़ों अथवा इसी प्रकार के कुछ और हलके पदार्थों को अपनी ओर खीचने लगती है। प्रारंभ के वैज्ञानिकों में से फ्रांक्लिन का मत था कि बिजली बहुत ही सूक्ष्म और गुरुत्वहीन द्रव पदार्थ । पीछे से सेमर ने कल्पना की कि यह धन और ऋण दो गुरुत्वहीन द्रव पदार्थो के संयोग से उत्पन्न होती है। परंतु अभी तक इसके संबंध में कुछ विशेष निर्णय नहीं हो सका है। तो भी यह वात प्राय. निषिचत सी है कि विगती कोई द्रव पदार्थ नही है। इसके अतिरिक्त इसका द्रव्य होना भी निश्चित नहीं है, क्योंकि इसमें कोई गुरुत्व नही होता । २. आकाश में सहसा उत्पन्न होनेवाला वह प्रकाश जो एक वादल से दूसरे बादल में जानेवाली अथवा किसी वादल से पृथ्वी की घोर पानेवाली वातावरण की बिजली के कारण उत्पन्न होता है। चपला। विशेष साधारणतः वातावरण में सदा कुछ न कुछ बिजली रहती है जो प्रायः घनात्मक होती है और जो पृथ्वी से कुछ ऊँचाई पर पाई जाती है। वैज्ञानिको का मत है कि मूर्य की किरणों के कारण पानी से जो भाप बनती है, उसके साथ इस बिजली का विशेष संबध है; क्योकि प्रात:काल वातावरण मे यह विली घोड़े परिमाण में रहती है और ज्यो ज्यो दिन चढता है, त्यो त्यों बढती जाती है। इसके अतिरिक्त बादलो मे भी कही धनात्मक और कहीं ऋणात्मक विजली रहती है। जब इनात्मक और ऋणात्मक विजली- वाले दो बादल आमने सामने प्राते हैं, तब पहले उन दोनों की विजली में प्रावपण होता है और तब उसका विसर्जन होता है जिससे प्रकाश देख पड़ता है। जिस समय कोई धन विद्युत्वाला वादल पृथ्वी के सामने प्राता है, उस समय पृथ्वी के ऊपर की अोर ऋण विद्युत् उत्पन्न होती है और तब दोनों मिलकर विसर्जित होती हैं जिससे प्रकाश होता है। यही बिजली आकाश से तिरछी रेखा के रूप में पृथ्वी की पोर बड़े वैग से चलती है और उसके मार्ग मे जो कुछ पड़ता है, उसे जला या नष्ट कर देती है। इसी को साधारण वोलचाल की भाषा में बिजली गिरना या बिजली पड़ना आदि कहते हैं। इसके मार्ग मे पहनेवाले वृक्ष घोर घर गिर जाते है और मनुष्य या दूसरे जीव मर जाते हैं। यह प्रकाश प्रायः मोलो लंबा होता है और इसकी गति प्रायः वक होती है । गति की वक्रता का कारण यह है कि वातावरण में इसे जिधर सबसे कम अवरोध मिलता है, उधर ही यह बढ़ चलती है। वादलों के गरजने का कारण भी यही विजली है; क्योकि जव बादलो में से इसका विसर्जन होता है, तव वायु मे बहुत अधिक गड़बड़ी उत्सन्न हो जाती है। कभी ऐसा भी होता है कि यह प्रकाश एक लंबी चादर के रूप में दिखाई पड़ता है। पर यह प्रायः क्षितिज के पास पौर उसी समय दिखाई देता है जब वर्षा अथवा तूफान बहुत दूर पर हो। कभी कभी बिजली के गोले भी आकाश से नीचे गिरते हुए दिखाई देते हैं जो पृथ्वी तक पहुँचने से पहले ही भीषण शब्द उत्पन्न करते हुए फट जाते हैं । पर ऐसे गोले बहुत ही कम गिरते हैं और कुछ ही क्षणो तक दिखाई देते हैं। क्रि० प्र०-चमकना। मुहा०-बिजली गिरना या पड़ना-दे० ऊपर विशेष बिजली कड़कना= बिजली के विसर्जन के कारण माकाश में बहुत