पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५३

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पिज्जू ४२ विठ्ठल ते चंद उजासै । तारे के तेज तें तारे उदीसत बिज्जुल तेज देषो यह संसार विझको रे ।-सुदर ग्र, भा॰ २, पृ० तें विज्जु चकास । -सुदर म०, भा० २, पृ० ६१८ । ६१०॥ बिज्जू-संशा पु० [ देश० ] बिल्ली के प्राकार प्रकार का एक जंगली विटंडg-सशा पु० [ सं० यितण्टा ] दे० 'वितंडा' । हुज्जत । शरा- जानवर जो प्रायः दो हाथ लंबा होता है। बीजू । रत। उ०-काह अवनि पाएँ प्रस गरसी। करसि विटंड विशेष-यह प्रायः जगलो मे बिल खोदकर अपनी मादा के भरम नहिं करसी । पद्मावत, पृ० २५४ । साथ उसी मे रहता है । दिन के समय वह जल्दी वाहर नहीं विटंबन-संज्ञा पु० [सं० विडम्बन] दे० 'विटंबना' । उ०-नाना निकलता, पर रात को बाहर निकलकर चूहो, मुरगियो रंग बोलहि वह बानी । घर भेष विटंबन ठानी 1-द० श्रादि का शिकार करता और उनको खा जाता है। कभी सागर, पृ० २४ । कभी यह वनो को खोदकर उनमें से मृतक शरीर को निकाल- विट-मंज्ञा पुं० [सं० विठ् ] १. साहित्य में नायक का वह सखा जो कर भी खा जाता है। सब कलाओं में निपुण हो। उ०—पीठमदं विट चेट पुनि विज्जूहा-संज्ञा पुं॰ [ ? ] एक वर्णिक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण बहुरि विदूषक होई । मोचे मान नियान को पीठमदं है मोई। मे दो 'रगण' होते हैं। जैसे--पुन्य के पाल हैं। दीन के -पद्माकर ( शब्द०)। २. वैश्य । उ०-वम्त वसी ब्रह्म द्याल हैं । सीय के हेत है । नन से भेत हैं। इसी का नाम छत्री बिट शूद्र जाति अनुसारा।-रघुराज (शब्द०)। ३. 'विमोहा' और 'विजोहा' भी है। पक्षियो की विष्टा । बीट। ४. नीच । सल । धुतं । २०- नट भट बिट ठग ठाठ पीक पाच है सवन को।-ग्रज. विज्ञान-सज्ञा पु० [सं० विज्ञान] दे० 'विज्ञान' । उ०-जेहि विज्ञान पं०, पृ० १६ । मगन मुनी ज्ञानी।-मानस, १ । १११ । विज्ञानी-संज्ञा पुं० [सं० विज्ञानी ] वह जो विशिष्ट ज्ञानयुक्त विटप-संज्ञा पुं॰ [सं० विटप ] १. वृक्ष । २. क्षुप । ३. टहनी । घिटक ---सज्ञा पु० [स०] [ सी. बिटक ] फोड़ा । फुसी (को०] । हो । वह जो ज्ञान की परिधि को पार कर गया हो। उ०- ह्व गइ दसा अरूढ़ ज्ञान तजि भई विज्ञानी । - पलटू०, विटपी-संशा पु० [ सं० विटपी ] ३० 'विपी' । भा०१, पृ० ३०॥ विटरना-फ्रि० प्र० [हिं० विटारना का अक० रूप ] १. घंघोला विमँवारी-संज्ञा स्रो॰ [देश॰] छत्तीसगढ़ में बोली जानेवाली एक जाना। २. गंदा होना। प्रकार की बोली। विटामिन-संज्ञा पु० [पं० विटामिन ] जीवनतत्व । पोषक तत्व | बिझकना-कि० अ० [हिं०] दे॰ 'विझुकना' । उ०—जिसमे विटामिन भले ही कम हो किंतु फिलोरी शक्ति बिझरा-सञ्ज्ञा पुं० [हिं० मेझरना (= मिलाना)] एक मे मिला हुआ अधिक रहती है। किन्नर०, पृ०७ । मटर, चना, गैहूँ और जो। विटारना-क्रि० स० [सं० विलोढन] १. घंघोलना। घंघोलकर गंदा विझुकना-क्रि० अ० [हिं० भोका ] १.भड़कना । उ०-वोले फरना । उ०-वगुली नीर विटारिया सायर चढ़ा फलंक । झुकै उझक अनवोल फिरै विझुके से हिये मह फूले । पौर पसेरू पीविया हस न बोरै चंच ।-फवीर (शब्द०)। केशव (शब्द०)। २. डरना। भयभीत होना। पिटालना-क्रि० सं० [हिं० विडारना ] फैलाना । बिखेरना । उ०-हसि उठ्यो चाइको रिसभरी घुघोलना। विझुकै सरसाइकै ।-गुमान (शब्द॰) । ३. टेढा होना। घिटिनिया, विटिया-सा सी० [हिं०] दे० 'वेटी' । तनना । उ०-नेह उरझे से नैन देखिवे को बिरुझे से विझुकी विटोरा, विटौरा-सा पु० [हिं० बटोरना ] [अव० विटहुर, सी भौहें उझके से उरजात हैं । केशव (शब्द०)। विठहरा ] उपलों का ढेर । उ०-कान जिनि गह्यो तिनि विझुका-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे० 'विजूका'। उ०-बुधि मेरी सूप सौ बनाइ कह्यो, पीठि जिनि गही तिनि विटोरा बतायो किरषी, गुर मेरो विका, आखिर दोउ रखवारे ।-कबीर है।-सुदर म, भाग २, पृ० ६२० । ग्रं॰, पृ० २१६ । बिट्टी, विट्टो-पशा स्त्री॰ [ हिं० विटिया ] दे० 'बेटी' । उ०-पूछा, विझुकाना@+-[हिं० विमुकना का सक० रूप ] १. भड़काना । अरी बिट्टो तुम्हें क्या हुमा ।-कुकुर०, पृ० ४४ । उ.-भाग बड़ो जु रची तुम सो वह तो विझुकाइ कहो कह बिट्ठल--संज्ञा पु० [सं० विष्णु, महा० विठोवा ] १. विष्णु का एक कीजै।-केशव (शब्द०)। २. डराना । उ०-दान दया नाम । २. बंबई प्रांत में शोलापुर के अंतर्गत पंढरपुर नगर शुभ थील सखा विझुके गुण भिक को विझुकावै ।-केशव फो एक प्रधान देवमूर्ति । उ०-बाल दशा बिट्ठल पानि (शब्द०)। जाफ पय पीयो मृतक गऊ जिमाइ परचो पसुरन को दियो। विमूका--संज्ञा पुं० [हिं०] १. दे० 'बिजूका' । उ०-जगत --नाभा (शब्द०)। विभूका देषि करि मन मृग मान संक । सुदर कियो बिचार विशेष--यह मूर्ति देखने में बुद्ध की मूति जान पड़ती है । जैन जब मिथ्या पुरुप करंक ।- सुदर ग्रं॰, भा॰ २, पृ० ७२६ । लोग इसे अपने तीर्थंकर की मूर्ति और हिंदू लोग विष्णु २. धोखा। छल । फरेव । उ०-मजहूँ बेगि समुझि किन भगवान की मूर्ति बतलाते हैं। नरनायक