पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२५८

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बिदोरना विधानी - बिदोरना-क्रि० स० [सं० विदीर्णन ] फैलाना । चलाना। मुहा० --विध मिलाना = अाय व्यय का हिसाव ठीक करना । निपोरना । उ०-खाय के पान विदोरत मोठ हैं वैठि सभा यह देखना कि प्राय और व्यय की सब मदें ठीक ठीक लिखी मे बने अलबेला ।-कविता कौ०, भा० १, पृ० ३६६ । गई हैं या नहीं। विदोखgf-संज्ञा पु० [सं० विद्दप] वैर । वैमनस्य । विधना'-संज्ञा पुं० [सं० विधि + हिं० ना (प्रत्य॰)] ब्रह्मा । कर्तार । विद्दता-संज्ञा स्त्री० [अ० विदअत ] १. पुरानी अच्छी बात को विधि । विधाता । उ०-अहो विधना तो पे अचरा पसारि बिगाड़नेवाली नई खराब वात । २. खराबी । बुराई । दोष । मांगौ जनम जनम दीजो याही ब्रज बसिबो ।-(शब्द०)। ३. कष्ट । तकलीफ । ४. विपत्ति । प्राफत । ५. अत्याचार । विधनारे-क्रि अ० [सं० विद्ध ] विद्घ होना। वेधा जाना । दे० ६. दुर्दशा। 'बिधना। क्रि० प्र०–में पड़ना । -भोगना ।-सहना।—होना । बिधना-क्रि० स० फंसाना । विद्घ करना । विद्दतो-वि० [हिं० बिद्दत + ई ] विद्दत करनेवाला । बिधबंदी-संज्ञा स्त्री० [हिं० बिधि (= जमा)+फा० बंदी] भूमिकर विद्ध - वि० [सं० विद्ध ] वेधा हुप्रा । बिंधा हुआ । विद्ध । देने की वह रीति जिसमें वीघे आदि के हिसाब से कोई कर विद्धि-संज्ञा स्त्री० [सं० विधि ] भांति | प्रकार । दे० 'विधि' । नियत नही होता बल्कि कुल जमीन के लिये यो ही अंदाज उ.-कमलति चंपक चारु फूल सब बिद्धि फल । सरद रित्त से कुछ रकम दे दी जाती है । बिल मुकता । ससि सीस मरुत्त त्रिविद्ध चल 1-पृ० रा०, २११३६ । विधवना-क्रि० स० [ स० विद्ध ] वैधना । विद्ध करना । फंसाना । उ०-जैसे बधिक अधिक मृग विधवत राग रागिनी बिद्यारथी-संज्ञा पुं० [सं० विद्यार्थी ] दे० 'विद्यार्थी' । उ०- ठानी।-सूर (शब्द०)। बिद्यारथिन करावहु यहि विधि सत सिच्छा दय ।-प्रेमघ०, भा० १, पृ०२१ । विधवपना-मज्ञा पुं० [सं० विधवा+हिं० पन (प्रत्य॰)] रँडापा । विद्यावाही ए-पंज्ञा पु० [सं० विद्या + वाहिन् ] १. विद्वान् । २. वैधव्य । उ०-लीन्ह विधवपन अपजस बापू । दीन्हेउँ प्रजाहिं सोक संतापू ।-मानस, २।१८० । पंडित । उ०—विद्यावाही पढ़हिं ग्रंथ गुनि गूढ़ि अनेकहिं ।- विधवा-वि० [सं० विधवा ] वह स्त्री जिसका पति मर गया रत्नाकर, भा० १, पृ०६६। हो । रीढ़ । वेवा। बिद्रुम-संज्ञा पुं० [सं० विद्रुम ] दे० 'विद्र म' । उ०-हीरा गहै सो विद्र म धारा । बिहसत जगत होइ उजियारा । —जायसी बिधवाना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'बिंधवाना'। ग्रं. (गुप्त), पृ० १६० । बिधाँसना-क्रि० स० [सं० विध्वंसन ] विध्वंस करना । नष्ट घिद्वेस-संज्ञा पुं० [सं० विद्वेप] विद्वेष । वैर । शत्रुता ।' उ०- करना । नाश करना। उ०-जनहुँ लंक सब लूसी हनु संतन को बिदस जु प्राहि । मृत्युमात्र जिनि जानहु ताहि ।- विधांसी बारि। जागि उठेठ अस देखत सखि कहु सपन विचारि ।—जायसी (शब्द॰) । नंद० ग्र०, पृ० २३३ । बिधाइनी--वि० स्त्री॰ [सं० विधायिनी ] विधान करनेवाली। बिधंस-संज्ञा पुं० [सं० विध्वंस J विनाश । विध्वंस । उ०- करहि विघंस पाव दसकंधर ।-मानस ६/८४ । दे० 'विधानी' । उ०-पूरनमासी भगवती, सिद्घ विघाइनि सोय। -भारतेंदु प्र०, भा० ३, पृ० ६४८ । विधंसक-वि० [सं० विध्वंसक ] दे० 'विध्वंसक' । उ०-मतिभ्रंसक सब धर्म विधंसक । निरदै महा विस्थ पसुहिसक ।-नंद० बिधाई-सज्ञा पुं॰ [सं० विधायक ] वह जो विधान करता हो। ग्रं॰, पृ० २५२ । विधायक । उ०-जति सौमिभि रघुनंदनानंदकर रीछ कपि विधंसनाg+-कि० स० [सं० विध्वंसन ] नाश करना। विध्वंस कटक संघट बिघाई। -तुलसी (शब्द०)। करना। नष्ट करना । उ०-चन विघंसि सुत वधि पुर विधात-संज्ञा पुं० [सं० विधाता ] दे० 'विधाता' । उ०-पार्छ जारा।-मानस, ६।२४ । अद्भुत निरखि विधात । चक्यो थक्यो जहँ फुरै न वात । विधंसना-क्रि० स० [सं० विध्वंसन ] दे० 'विघंसना' । -नद० न०, पृ०२६८ । विध-संज्ञा पुं० [सं० विधि ] हाथियों का चारा या रातिव । विधान-संज्ञा पुं० [सं० विधान ] ३० "विधान' 1 50-गान निसान विध-सज्ञा नी० [सं० विधि ] १. प्रकार । तरह । भांति । उ०- बितानवर, बिरचे विविध विधान । -तुलसी न०, पृ० ८५ । जद्यपि करनी है करी मैं हर भात मुरार । प्रभु करनी कर विधाना-क्रि० प्र० [हिं० बिंधना] दे० 'बिंधाना'। उ०- मापनी सब विध लेहु सुधार ।-रसनिषि (शब्द०) ! २. वाहन विधाए बांह जंधन जघन माह कहे छोड़ो नाह नाहि ब्रह्मा । विधाता। गयो चाहै मुचि के।-देव (शब्द०)। विध-संज्ञा स्त्री० [सं० विधा ( = लाभ) ] जमा खर्च का हिसाब । बिधानीg+-संज्ञा पुं० [सं० विधान] विधान करनेवाला। बनाने- प्राय व्यय का लेखा। वाला । रचनेवाला। ७-३१