पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२६८

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बिलग ३५०७ पिललानी 1 निष्प्रभ वा संकुचित करना । उ०-काम तून तल सरिस जानु पिलटी-शा स्त्री॰ [ अं० बिलेट ] रेल द्वारा भेजे जानेवाले माल जुग उरु कार कर फरभहि विलखाति । -तुलसी पं०, को वह रसीद जो रेलवे कंपनी से मिलती है। रेलवे रसीद । पृ०५१५ । विशेष-जिस स्थान से माल भेजा जाता है, उस स्थान पर बिलग'-वि० [सं० उप० वि (=पार्थक्य या राहित्य)+ लग्न; यह रसीद मिलती है। पीछे से यह रसीद उस व्यक्ति के पास हिं० लगना ] [अन्य रूप - बिलगि, विलगु ] अलग । भेज दी जाती है, जिसके नाम माल भेजा जाता है। निर्दिष्ट पृथक् । जुदा । उ०—बिलग बिलग ह चलहु सब निज निज स्थान पर यही रसीद दिखलाने पर माल मिलता है। इसमें सहित समाज । -तुलसी (शब्द०)। माल का विवरण, तौल, महसून, प्रादि लिखा रहता है। षिलग-संज्ञा पुं० [हिं० बि (प्रत्य०) + लगना ] [अन्य रूप बिलगि बिलनी'-सञ्ज्ञा खी० [हिं० बिल या सं० भृङ्गिन् ] काली भौरी जो विलगु] । १. पार्थक्य । अलग होने का भाव । २. द्वेष या दीवारों पर या किवाड़ों पर अपने रहने के लिये मिट्टी की और कोई बुरा भाव । रंज । उ०—(क) देवि करौ कछु बांबी बनाती है। यही वह 'भृगी है जिसके विषय में यह बिनय सो विलगु न मानब ।—तुलसी (शब्द॰) । (ख) इनको प्रसिद्ध है कि वह किसी कीड़े को पकड़कर मुंगी ही बना बिलगुन मानिए कहि केशव पल आधु । पानी पावक पवन डालती है। भ्रमरी। प्रभु त्यों असाधु त्यों साधु-केशव (शब्द॰) । बिलनी-संज्ञा स्त्री० भांख की पलक पर होनेवाली एक छोटी सी। क्रि० प्र०-मानना। गुहाजनी। बिलगर-संज्ञा पुं० | गिरगिट्टो नाम का वृक्ष जो प्रायः वागों में शोभा के लिये लगाया जाता है। वि० दे० 'गिरगिट्टी' । पिलपनाg+-क्रि० स० [सं० विलपन ] विलाप करना । रोना । चिलगाना-क्रि० स० [हिं० बिलग-अाना (प्रत्य॰)] १. अलग बिलफेल-क्रि० वि० [ प्र० विलफ़ल ] इस समय । अभी । सप्रति । होना । पृथक् होना । दूर होना । उ०—निज निज सेन सहित वर्तमान अवस्था मे। जैसे,-बिलफेल १००) लेकर काम विलगाने ।-तुलसी (शब्द०)। २. पृयक् या स्पष्ट रूप से चलाइए; फिर पीर ले लीजिएगा। दिखाई देना। बिलबिलाना-क्र० स० [अनु० ] १. छोटे छोटे कीड़ों का इधर बिलगाना-क्रि० स० अलग करना । पृथक् करना। दूर करना। उधर रेंगना । जैसे,—उसके घाव में कीड़े बिलविलाते हैं । उ०-(क)ज्यों सर्करा मिले सिकता महं बल ते न कोउ २. व्याकुल होकर बकना । असंबद्ध प्रलाप करना । ३. कष्ट बिलगावै । -तुलसी (शब्द॰) । (ख) भलेउ पोच सब विधि के कारण व्याकुल होकर रोना चिल्लाना। ४. भूख से बेचैन उपजाए । गनि गुन दोष वेद बिलगाए ।-तुलसी (शब्द०)। हो उठना। २. छांटना । चुनना। बिलमg+-संज्ञा स्त्री० [सं० विलम्ब ] दे० 'विलंब' । उ०-कह पिलगाव-संज्ञा पु० [हिं० बिलग+श्राव (प्रत्य॰)] पृथक् वा पतिसाह नहिं बिलम किज्जे । ४० रासो, पृ० ८७ । अलग होना । पृथक्त्व । अलगाव । बिलगी-संञ्चा पु० [देश॰] एक प्रकार का संकर राग । बिलमनाल-क्रि० प्र० [सं० विलम्बन ] १. विलंब करना । देर करना। २.ठहर जाना। रुकना । उ०-बीच में बिल में विलगुण-शा पु० [हिं०] दे० 'विलग'। उ०—स्वामिनि घविनय विराजे विष्णुथल में। सुगंगा जू के जल में अन्हाए एक छमब हमारी । बिलगु न मानब जानि गवारी। -तुलसी (शब्द०)। पल में। -पद्माकर (शब्द॰) । ३. किसी के प्रेमपाश में फैसकर कहीं रुक रहना । उ०-माधव विलमि बिदेस बिलच्छन-वि० [सं० विलक्षण ] दे० 'विलक्षण' । रहे । —सूर (शब्द०)। विश्राम करना । ठहरना । उ०-क्या बिलछना-क्रि० अ० [सं० वि + लक्ष ] लक्ष करना । ताड़ना । बिलम सकेगा वह नदन के प्रांगन मे ।-पून०, पृ० ८६ । पिलछाना-क्रि० प्र० [ स० वि+ लक्ष्य ( = दृष्टि )] दृष्टि से परे होना। दूर होना। समाप्त होना। उ०-कहै बिलमाना-क्रि० स० [हिं० 'बिलमना का सक० रूप] रोक कवीर सुनो भाई साधो, लोक लाज विल छानी।-संतवानी०, रखना। मटका रखना। उ०-कहेसि को मोहि बातन विलमावा । हत्या केर न तोहि डेरावा । —जायसी (शब्द०)। भा०२, पृ० १२। बिलछाना-क्रि० स० [सं० वि+ लक्ष ( = देखना)] पृथक् पृथक् २. प्रेमपाश में फंसा रखना । प्रेम के वशीभून कर रोक करना। धुनना । बीछना। उ०-प्रथम कहों अंडज की रखना | ७०-ठाने अठान जेठानिन हू सब लोगन हप्रकलंक बानी । एकहि एक कही बिलछानी ।-कवीर सा०, लगाए । सासु लरी गहि गाँस खरी ननदीन के बोल न जात पृ०३९। गनाए। एती सही जिनके लिये मै सखि ते कहि कोने कहाँ पिलटना-क्रि० प्र० [ स० विनष्ट ] बर्बाद होना। खत्म होना । विलमाए । पाए गरे लगि प्रान पै फेसे है कान्हर प्राजु अजी नष्ट होना। 30-अगर पाप इस तरह दो चार महीने नहिं पाए ।-कोई कवि (शब्द०)। पौर फर्स्ट क्लास जेंटलमैन बनेंगे तो बिलट ही जाइएगा। विललाना-क्रि० अ० [सं० विलयन विलाप+हिं० ना (प्रत्य॰)] फिसाना०, भा० ३, पृ०, ५८ । (स) रोजी बिलटी हाय हाय, १. बिलखकर रोना। विलाप करना। उ०-पौवाई सीसी सब मुखतारी हाय हाय। -भारतेंदु , भा०२, पृ०६७८ । सुलखि बिरह परी विलवात । बोचहि सूखि गुलाब गो छोटो छुई