पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२७२

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दिल्ली लोटन -- । मुहा०-बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना जो वस्तु प्राप्त होने यिवसाइ@+-संज्ञा पुं० [सं० व्यवसाय, प्रा० विवसाइ ] दे० में कठिनाई हो, उसकी प्राप्ति आसानी से हो जाना । उ०- 'व्यवसाय'। कितना ही स्थान खाली है बंगले की कोई सुध लेनेवाला नहीं विवस्वत-वि० [सं० वैवस्वत ] दे० 'वैवस्वत' । उ०-त्यों हि है, बिल्ली के भाग्य से छींका टुटा । —किन्नर०, पृ० ६५ । उपाधि संयोग ते सीसत पाहि मिल्यो मो विकारा। काढ़ि विल्लयों से चूहों की न चलना = ताकतवर से कमजोरो की लिए जु विपार विवस्वत सुंदर शुद्घ स्वरूप है न्यारा |-- न चलना । उ.-विल्लियो से चली न चूहों की । छिपकली मुदर , गा० २, पु० ६०५ । से रुके न कोड़े पल ।-चुभते०, पृ० ६६ । बिवहार-संशा पुं० [ मं० व्यवहार ] दे० 'व्यवहार । उ०-( क ) २. किवाड़ की सिटकनी जिसे कोढ़े में डाल देने से ढकेलने पर कुल विवहार वेदविधि चाहिय जंह जस । उपरोहित दोउ किवाड़ नहीं खुल सकते । एक प्रकार का अर्गल । विलेया। करहिं मुदित मन तहे तस । -तुलसी ०, पृ० १५६ । (ख) ३. एक प्रकार की मछली जो उत्तरीय भारत में और बरमा जबही मैं क्रीडत विविध विवहार होत काम क्रोध लोभ की नदियों में होती है। पकड़े जाने पर यह मछली काटती मोह जल मैं संहार है ।-सुंदर स, भा॰ २, पृ० ६१४ । है जिससे विष सा चढ़ जाता है। विवाई-सशा झी० [सं० विपादिका ] पैर में होनेवाला एक प्रकार विल्ली लोटन-संज्ञा स्त्री० [हिं० बिल्ली+लोटना ] एक प्रकार की का रोग जिसमें पैर की उंगलियों के बीच का भाग या बूटी जिसके विषय मे प्रसिद्ध है कि उसकी गंध से बिल्ली तलुए का चमड़ा फट जाता है। उ०- जाके पैर न फटी मस्त होकर लोटने लगती है। यह दवा में काम पाती है। बिवाई । सो का जानै पीर पराई ।-कहावत (शब्द०)। यूनानी हकीम इसे 'वादरंजबोया' कहते हैं। क्रि०प्र०--फरना। बिल्लूर-संज्ञा पुं० [फा० विल्लूर ] दे० 'बिल्लौर'। विवाना पुं० [सं० विमान, प्रा० विवाण ] दे०-'विमान'। बिल्लौर-संज्ञा पु० [ मं० वैदूर्य, प्रा० बेलुरिय, तुल० फ़ा० विल्लूर] विवायां -संश सी. [ सं० विपादिका ] दे० 'विवाई। १. एक प्रकार का स्वच्छ सफेद पत्थर जो शोशे के समान बिवाय-संज्ञा पुं॰ [ सं० व्यपाय (= विश्लेष, अंत ? ) विघ्न । पारदर्शक होता है। वाधा । (हिं० )। विशेप-अणुषों की योजना की विशेषता के कारण इसमें यह विवेचना-कि० स० [सं० विवेचन ] व्याख्या करना । गुणदोष गुण होता है जैसा कि मिश्री की स्वच्छ डली में देखा जाता है। कहना। २. स्वच्छ शीशा जिसके भीतर मैल आदि न हो। बिवोगनी-संज्ञा स्त्री॰ [देश० तुल० सं० वियोगिनी] दे० 'वियोगिनी'। बिल्लौरी-वि० [हिं० थिल्लौर + ई (प्रत्य॰)] विल्लौर का बना उ.-दरसन कारनि विरहनी, बैरागनि होवे । दादू विरह हुप्रा । विल्लोर पत्थर का । जैसे, बिल्लौरी चूड़ियां । २. विवोगनी, हरि मारग जोवै ।-दादू० बानी, पृ० ५७ । बिल्लौर के समान स्वच्छ । बिशप-संज्ञा पुं० [अं] ईसाई मत का सबसे बड़ा पादरी। बिल्व-संज्ञा पुं० [सं० चिल्व ] १. बेल का पेड़ । २. वेल का फल । विष-संज्ञा पुं॰ [सं० विप] दे० विष' । ३. एक तोल जो एक पल होती है। ४. छोटा तालाब या विषमाई-संज्ञा सी० [सं० विषमयता या सं० विपम+हिं० थाई गड़हा (को०)। (प्रत्य-)] विष का गुण । भयंकरता । जहरीलापन । उ०-- विल्वकीया-पंशा सां० [सं० विल्वकीया] वह भूमि जहाँ बैल के वृक्ष देखहु दै मधु की पुट कोटि मिट न घटै विष की विषमाई । उगाए गए हों [को०] । -केशव ग्रं, भा०१, पृ०१८। विल्वदंड-मंज्ञा पु० [स० विल्वदण्ड ] शिव का एक नाम को०] ! विपय@-अव्य० [ सं० विपये ] दे० 'विखय', 'विखें'। उ०- बिल्हण-संज्ञा पु० [सं० विल्हण ] विक्रमांकदेवचरित नामक संस्कृत अन्य अनेकन काज विषय प्रादेश हेतु नत ।-प्रेमघन॰, प्रबंधकाव्य के कर्ता। भा० १, पृ०१५ विवछना@-क्रि० प्र० [देश॰] दे॰ 'विबछना'। विषय-संज्ञा पुं० [सं० विपय दे० 'विषय'। षिवरना-क्रि० स० [सं० विवरण ] १. सुलझाना । एक में गुथी विपयाधु-संज्ञा रती० [सं० विपय ] विषय की वासना । कामेच्छा । हुई वस्तुओं को अलग अलग करना। २. बंधे या गुथे हुए विषहर-वि० [सं० विपहर] विष के प्रभाव को हरण करनेवाला। वालों को हाथ या कंघी आदि से अलग अलग करके साफ मांत्रिक । विषवैद्य । उ०—यह विपहर धावतरि पायो। करना । बाल सुलझाना। मूर मंत्र पढि तोहि जियायौ।--हिं० के० का०, पृ० २१८ । विवरना-क्रि० प्र० सुलझना । विपान-संज्ञा पुं॰ [सं० विघाण ] दे० 'विपाण' । विवराना-क्रि० स० [हिं• घिवरना का प्रे० रूप] १. बालों को विपार, विपारा-वि० [सं० विप+हिं० श्यार या पारा (प्रत्य॰)] खुलवाकर सुलझवाना । उ०—पुनि निज जटा राम विवराए । जहरीला । विषयुक्त। गुरु अनुसासन मागि नहाए । —तुलसी (श०६०) । २. घाल पिपिया-संशश सी० [सं० विषय ] दे० 'विषया' । सुलझाना। चिप-संशा पुं० [सं० विपग ] दे० विषय' । उ०-जो तज