पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग 7.djvu/२८३

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व्यंजन । योजगणित ३५२२ बोजोर वीजगणित-संज्ञा पुं० [सं०] गणित का वह भेद जिसमें प्रक्षरौ वीजल'-संज्ञा पुं० [०] वह जिसमें वीज हो। को संख्याओं का द्योतक मानकर कुछ सांकेतिक चिह्नों और वीजल-वि० वीजवाला । बीजयुक्त । निश्चित युक्तियों के द्वारा गणना की जाती है मौर विशेषतः बीजल-संज्ञा स्त्री० [हिं० ] तलवार । प्रज्ञात संख्याएं प्रादि जानी जाती हैं। बोजल ४-संज्ञा स्त्री० [सं० विद्युत्, प्रा० बिज्जल ] दे० 'विजली' बोजगर्भ-संज्ञा पुं० [सं०] परवल । उ०—(क) बीजल ज्यों चमके वाढाली काइर कादरि भाज। वीजगुप्ति-संज्ञा स्त्री० [सं०] १. सेम । २. फली । ३. भूमी। -सुंदर ग्र०, भा०२, पृ० ८८५। (ख) हैजम हुजाब सिर वीजत्व-संज्ञा पुं० [सं०] बीज का भाव । वीजपन । उच्छटो वीजलि के अंबर परी।-पृ० रा०, १२।१४८ । वोजदर्शक-सज्ञा पुं० [सं०] नाटकों में अभिनय का परिदर्शक । बोजवपन-संज्ञा पुं॰ [सं०] वीज बोना । २. खेत (को॰] । वह व्यक्ति जो नाटक के अभिनय की व्यवस्था करता हो । योजवाहन-संज्ञा पुं० [स०] शिव । बोजद्रव्य-संज्ञा पुं० [सं०] मूल द्रव्य या तत्व (को०] । वोजवृक्ष-संज्ञा पुं० [सं०] प्रसना का पेड़ । वीजधान्य - संज्ञा पुं० [सं०] धनियाँ । वोजसू-संज्ञा स्त्री० [सं० ] पृथ्वी। वीजन-सञ्ज्ञा पुं० [सं० व्यजम ] वेना । पखा । उ०-खासे रस बीजहरा, बीजहारिणी-संज्ञा स्त्री० [सं०] एक ढाकिनी का नाम । वीजन सुखाने पौन खाने खुले, खस के खजाने, खसखाने खूब घोजांकुर-सज्ञा पुं० [सं० बोजाइ र ] अंखुपा । अकुर [को०] ! खस खास । -पद्माकर (शब्द॰) । (२. बिजन । भोजन । बाजांकुरन्याय-सज्ञा पुं॰ [सं० वोजाक र न्याय] एक न्याय जिसका व्यवहार दो संवद्ध स्तुषों के नित्य प्रवाह का दृष्टांत देने के वीजना-संज्ञा पुं० [सं० व्यजन] दे० 'वीजन'। उ०—सोहत चंद लिये होता है। बीज से अंकुर होता है और अकुर से बीज चिराग दीजना करत दसौं दिस |-व्रज० प्र०, पृ० १२१ । होता है। इन दोनों का प्रवाह अनादि काल से चला पाता वीजना-क्रि० स० [सं० व्यजन ] १. पंखा डुलाना। उ०-केइ है। दो दस्तुपों में इसी प्रकार का प्रवाह या संबंध दिखलाने कोमल पद ले कर रीजत। केइ ले कुसुम बीजना बीजत । के लिये इसका उपयोग होता है। -नंद० न० पृ० २७७ । २ि. रात्रि का भोजन करना । बीजा-वि० सं० द्वितीय पा० द्वितियो, प्रा० दुनो, बिइज्ज, अप० व्यालू करना। विजय, पु० हिं• दूज्जा ] [वि॰ स्त्री० यीजी ] दूसरा । घोजनिर्वापण~संज्ञा पुं॰ [स० बीज बोना [को०। अन्य | उ०-ए मन के गुण गुथत जे पहिचानता जानकी वीजपादप-संज्ञा पुं० [सं०] भिलावा । और न बीजो। हनुमान (शब्द॰) । वीजपुष्प-संज्ञा पुं० [सं०] १. मरुप्रा । २. मदन वृक्ष । बीजा-पंज्ञा पुं० [सं० बजिक, प्रा० चीजय, वीज] १. दे० वोजपूर, वीजपूरफ-संज्ञा पुं० [सं०] १. बिजौरा नीवू । २. 'बीज' । २. वीजक । असना का वृक्ष । विजेसार वृक्ष जिसकी लकडी मजबूत होती है। -शुक्ल प्रमि० प्र० (विविध), बीजपेशिका–संज्ञा स्त्री० [सं० ] अंडकोष । पृ०१४॥ घोजप्ररोह, वोजप्ररोही-वि० [सं० यीजप्ररोहिन् ] वीजोत्पन्न । बीजाकृत--संज्ञा पुं० [सं०] १. वह खेत जो बीज बोने के बाद जोता वीज से पैदा होवेवाला [को । गया हो। २. बोया हुप्रा खेत। वह खेत जिसमें बीजवपन हुप्रा हो [को०] । वीजफलक-संज्ञा पुं० [सं०] विजौरा नीबू । बीजाक्षर-संज्ञा पुं० [सं०] किसी बीज मंत्र का पहला अक्षर । वीजवद-रचा पुं० [हिं० बीज+चाँधना ] खिरैटी के बीज । वरियारे के बीज । बला । बोजाख्य-संज्ञा पुं० [सं० ] जमालगोटा । वोजमंत्र-सज्ञा पुं॰ [ सं० बीजमन्त्र ] १. किसी देवता के उद्देश्य से बीजाट्य-वि० [सं०] बीजयुक्त । बीज से पूरित [को०] । निश्चित किया हुमा मूलमंत्र । २. किसी काम को करने का बीजाध्यक्ष-पंज्ञा पुं० [सं०] शिव । बीजापहारिणी-संज्ञा स्त्री॰ [ सं० ] दे० 'बीजहरा' [को०] । घोजमातृका-संज्ञा स्त्री० [सं०] कमलगट्टा । बोजार्थ-वि० [सं०] संतति की कामनावाला । संतान का बीजमार्ग-संज्ञा पुं० [सं०] वाममार्ग का एक भेद । इच्छुक [को०] । बीजमार्गी-संज्ञा पुं० [सं० बोजमागिन् ] बीजमार्ग पंथ के अनुयायी। घोजाश्व-संज्ञा पुं० [सं०] सज्जित अश्व (को०] । वीजरत्न-संज्ञा पुं० [सं०] उड़द की दाल । बीजित-वि० [सं०] जिसमें बीज बोया जा चुका हो । बोया हुआ। पोजरी-संश स्रो० [हिं०] दे० 'बिजली' । बीजी-वि० सं० बीजिन् ] १. बीजवाला । २. वीज संबंधी। जिसका संबंध बीज से हो । बीजरुह-संज्ञा पुं० [सं०] धान्य । मन्न [को०] । बीजी-संज्ञा स्त्री० [सं० बीज+ई (प्रत्य॰)] १. गिरी। मोगी। चीजरेचन-संज्ञा पुं० [सं०] जमालगोटा । २. गुठली। चकोतरा। असली ढंग । मूलमत्र । गुर ।